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१४.
अनेकान्त
जाने के कारण उसका अकेले ही लालन-पालन और शिक्षा रावण वो बडा दुख हया। उसका शरीर मदनानल से हुई थी। अयोध्या के राजा के पुत्र रामचन्द्र के साथ झुलम जो रहा था । यह देख मदोदरी रावण से कहती है उनका विवाह हया । केकई के वर के कारण जब राम- -'तुम उसका बलात् सेवन क्यों नही करते ?" तव रावण लक्ष्मण वन को जाने लगे तब सीता भी साथ में गई । ___ कहता है-'मैने मुनिपुगव अनन्त-वीर्य के सम्मुख यह सीता अपने पति राम और लक्ष्मण के साथ वन-वन घूमती नियम लिया था कि जो स्त्री मुझे न चाहेगी मै उसकी हई क्रमशः दण्डक वन मे पहुची। वहाँ कुछ समय सुख से इच्छा न करूगा।" निवास करती है । वन में होने वाले कष्टो से वह न कभी
रोती हुई सीता को देखकर विभीषण ने पूछा-"यह खेद-खिन्न हुई और न समागत प्रापदानो से घबराई। उसे ।
किसकी पुत्री और किसकी भार्या है ?" सुनकर सीता स्वकीय कर्म का विपाक समझ कर सन्तुष्ट रहती थी।
ने कहा-"मै जनक की पुत्री, भामंडल की बहिन तथा कुछ समय बाद रावण कपट से उसे हरण कर ले जाता राम देव की प्रथम पत्नी हूँ, यह पापी (रावण) मुझे है। वह पुष्पक विमान मे रोती-चिल्लाती, ऑसू बहाती अपहरण कर ले पाया हैतथा प्राभूषणो को यत्र तत्र बिखेरती हुई जाती है। रावण पुच्छइ विभोसणो तं रूपमाणि कस्स त दुहिया । लका में पहुचकर उसे किसी उद्यान में ठहरा कर और कस्स वि भज्जा सा वि साहेइ जुहट्ठिय सम्व ॥ रक्षको की व्यवस्था कर अन्तःपुर म चला जाता ह'साता अविय-जणयस्स ग्रह तणया भगिणी भामंडलस्य गणनिहिणो। राम का अनुचिन्तन करती हुई अपने प्रशभोदय का विचार
रामस्स पढम घरिणी प्रवहरियाणेण पावेण ॥ करती है और प्रतिज्ञा करती है कि जब तक राम और
--मीयाचरिउ पृ० ६७-६८ लक्ष्मण का कुशल समाचार नही मिलेगा तब तक मैं अन्न
विभीषण सीता को प्राश्वासन देकर चला गया, वह जल, स्नान और गधमाल्यादि का ग्रहण नही करूगी। वह
मधुर वचनो से रावण से कहता है- "तुम पर-रमणी को कभी मन मे पच परमेष्ठी का स्मरण करती है, कभी राम
क्यों लाए ? परनारी अग्नि-शिखा के समान है, विषलता, लक्ष्मण का चितन करती है और कभी अपने अशुभोदय
नागिन, और कुपित व्याघ्री के समान सताप, विनाश और की निन्दा करती है। सीता रावण के वैभव को तृण के
दुःख का कारण है, कुल का कलक है, यश का घातक है, समान तुच्छ गिनती है। यद्यपि रावण ने सीता को प्रसन्न
मतएव तुम परनारी को छोडो, दुर्गति मे मत पडो।" तब करने के लिए अनेक प्रयत्न किये किन्तु उसे किचित् भी
रावण ने कहा- "संपूर्ण पृथ्वी मेरी है। इसमे किंचित् भी सफलता नही मिली। रावण की परिचारिकाएँ रावण से
वस्तु परकीय नहीं है, तब उसके परित्याग का प्रश्न ही कहती है कि सीता जब भोजन की भी इच्छा नहीं करती, तब वह अापकी कसे इच्छा कर सकती है ? यह सुन ।
नही उठता।"
प्रासासिऊण सीयं महुरगिरेहि विभोसणो भणइ । १. तह विन इच्छइ सिणाण न भोयण गंधमल्लाइ ।
दहवयण कीस तुमए पररमणी प्राणिया इहयं ? ॥ अच्छइ एगग्गमणा झायंती राहव णिच्च ।। इयवहसिहिव्व, विसकन्दलिम्व, भुय गिव्व, कुविय भणइ भोयणविसए न जावदइयस्स बंधुसहियस्स । वग्धिव्व परणारी होइ सताव-विणास-दुहहेउ। मा प्राणेसु लद्धा कुसलपउत्ती भु जामि य भोयण ताव ।।
-सीयाचरिउ पृ. ३८ ३. कि पुण बला वि अबला तीए अलिगणं विहेऊण । २. सीयावइयरमावेइऊण रमणीहि रावणो भणइ । पूरेसि तुम नियए मणोरहे नाह साहेहि ।
जा मुत्तं पि न इच्छइ सा इत्थिइच्छइ कहे णु तुमए । एव पुच्छिनो पणिो दहवयणोसोऊण इमं वयणो मयणानलेण डज्झमाणसव्वंगो। अस्थिमए पडिवन्नो अभिग्गहो अणंतविरियपयमूले। पडियो वसणसमुढे दहवयणो दुक्खियो अहियं ॥ जह भोत्तव्वाजुवई प्रणिच्छमाणा न कइयावि ।। -सीयाचरिउ पृ०८
-सीयाचरिउ पृ० ६६