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अनेकान्त
थी। देवेन्द्र उसे देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ। तत्क्षण वह उन सुवर्ण मुद्राओं को लेकर वह अपनी स्वामिनी के पास विमान से उतर कर पूर्वोक्त जिन मदिर मे गया। मंदिर पहुंचा। मुनादी की बातों को सुनाकर वह गुणवती से के दर्शन करने के उपरात देवेन्द्र ने मंदोदरी से कहा कि मैं कहने लगा कि इस महत्वपूर्ण धर्म कार्य के लिये आप ही तुम्हारी भक्तिसे बहुत खुश हैं। इसलिये तुम कोई अभीष्ट सर्वथा योग्य है । क्योकि मै आपकी पातिव्रत्य की महिमा वस्तु मागो। मदोदरी ने उसका उत्तर दिया कि मुझे को कई बार देख चुका हूँ। बाद नौकराना के प्राग्रह से किसी भी चीज की कमी नहीं है । हा स्वर्ग मे आपके द्वारा गुणवतीको उस बहुमानको स्वीकार करना पडा । राजाज्ञा पंजी जाने वाली जिन प्रतिमा को प्राप मुझे दे दें तो बड़ी के अनुसार दूसरे दिन प्रातःकाल गुणवती स्नान आदि से कृपा होगी। तब देवेन्द्र ने मदोदरी को सानद मरकत रत्न शुचिभूत होकर सुवर्ण थाल में पूजा द्रव्य लेकर अपने पूज्य निर्मित अपनी जिन प्रतिमा को दे दिया। इस जिन प्रतिमा पति तथा नौकराना के साथ राजमहल में पहची। वहा को मंदोदरी बडी भक्ति से बराबर पूजती रही। राम- से राजा शकर गड अपनी रानियो, मत्री, सेनानायक, सेना रावण के युद्ध काल मे डर कर मदोदरी ने इस प्रतिमा हाथी, घोड़ा, बाजा आदि के साथ बर्ड घम-धाम से निकला को समुद्र में डाल दिया। इसके बाद की कथा सुनिये। और ठीक समय पर समुद्र तीर में पहुंचा। उसी समय सती एक दिन एक भील ने राजा शकर गड से निवेदन
गुणवती सकेत पाकर अपने पातिव्रत्य के बलसे पानी के ]
ऊपर पैदल ही जिन प्रतिमा के पास पहची। वहा पर किया कि प्रातःकाल मध्यान्ह और सायंकाल तीनों काल
बड़ी भक्ति से भगवान की पूजा कर स्तुति-स्तोत्र पूर्वक समुद्र में हाव-भाव के माथ दर्शन देने वाली और डूबने
उक्न प्रतिमा को भक्ति से शिर पर उठा लायी । तीर में वाली जिन प्रतिमा का एक बार आप अवश्य दर्शन करे ।
पहचते ही एक नवीन विशिष्ट गाडी पर मूर्ति को विराजइस बात को सुनकर दूसरे दिन शकर गड अपने मत्री एव पहु
मान कर सभी नगर की ओर बढ़े। चलते-चलते नगर जब पुरवासियों के साथ ममुद्र तीर में जाकर वहा से नाव के
८-१० माल पर रह गया था, तब अकस्मात वह गाडी रुक द्वारा प्रतिमा स्थित स्थान पर पहंचा वहा पर भील की
गयी। उस समय पूर्व के स्वप्न की सूचना को भूल कर बात यथार्थ निकली। बाद सूर्यास्त के समय पर राजा
शकर गड ने मुड कर पीछे देखा । फल स्वरूप वह माणिक शकर गड अपने महल मे लौट आया। पर उसके मन मे
___स्वामीकी प्रतिमा वही पर स्थिर हो गयी। उस स्थान का उक्त प्रतिमा को लाकर पूजा करने को बलवती अभिलापा
नाम कुलपाक या कोलिपाक था । निरुपाय हो उसी स्थान सताने लगी। उसी दिन रात को निद्राधीन शकर गइ से
पर राजा के द्वारा पूर्वोक्त प्रतिमा को स्थापित करना यक्षी ने प्राकर कहा कि तुम्हारे राज्य की किसी सुशीला,
पड़ा। यही सक्षेप में पूर्वोक्त रचना का सार है। अब इस पतिव्रता स्त्री की सहायता से सागर स्थित वह प्रतिमा
कथा को ऐतिहासिक दृष्टि से देखना है। महल में लाई जा सकती है। पर लाते समय उक्त प्रतिमा को तुम मुडकर मत देखना । अगर देखोगे तो प्रतिमा उसी
उक्त कुलपाक एक जमानेमे कर्णाटकमे शामिल रहा। स्थान पर स्थिर हो जायगी अर्थात् प्रागे नही जावेगी। पूर्वान कथामे प्रतिपादित राजा शकर गड दशवी शताब्दीके दूसरे दिन राजा शकर गडने अपने प्रास्थान मे गत रातकी उत्तरार्ध मे राज्य करने वाला एक ऐतिहासिक व्यक्ति था। घटना को कह सुनाया। तब मत्रियों ने राजा से निवेदन वह राष्ट्रकूट चक्रवर्ती तृतीय कृष्ण का महासामताधिपति किया कि अपने नगर में किसी पतिव्रता स्त्री का पता ।
होकर बनवा सिमे शासन करता रहा । उसी समय उपर्युक्त लगाना चाहिये । इसके लिये सुवर्ण मुद्राओं के साथ मुनादी
कृष्ण के प्रास्थान-महाकवि पोन्न को 'उभय भाषा कवि करना ही सबसे उत्तम उपाय है । इसी प्रकार किया गया।
चक्रवती की उपाधि एवं उसी कृष्ण मांडलिक परिकेसरी
के प्रास्थान में सेनानायक तथा कवि के रूप में विराजने - इस मुनादी को धनदत्त श्रेष्ठी की पत्नी गुणवती के वाले महाकवि पंप को कविता गुणार्णव की उपाधि दी गयी नौकरानाने सुना और उसने राज दूतों से बहुमान स्वरूप थी। थोड़े ही समय के बाद चालुक्य चक्रवर्ती तलपदेवने