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अनेकान्त
थे। मत्रियो की संख्या सीमित रखने का उल्लेख सोम- उल्लेख शिलालेखों में भी मिलता है। अन्तःपुर की व्यवदेव ने किया है। मंत्रिमण्डल मे मंत्रियों के अतिरिक्त स्था का भी उल्लेख मिलता है। इसकी रक्षा के लिए अमात्य (रेवेन्यू मिनिस्टर) सेनापति, पुरोहित, दण्डनायक वृद्ध कचुकी गण नियुक्त थे। राजाओं द्वारा जलक्रीडाएं अादि भी होते थे। गाँवों के मुखियों का उल्लेख प्रादि और कई प्रकार की गोष्ठियां किये जाने का भी वर्णन पुराण मे है। तलार जो नगर अधिकारी था का उल्लेख मिलता है। आदिपुराण, नीतिवाक्यामृत और यशस्तिलक चम्पू मे भी है । अप्टादश श्रेणिगण प्रधानो का भी उल्लेख यत्र तत्र सांस्कृतिक सामग्री : मिलता है। नीतिवाक्यामत मे कई प्रकार के गुप्तचरी का
उस समय सांस्कृतिक गतिविधियो के अध्ययन के उल्लेख है। राज्य कर जो प्राय धन के रूप मे लिया
लिए जन सामग्री बहुत ही महत्वपूर्ण है। वर्णव्यवस्था जाता था यह उपज का एक भाग था। इनके अतिरिक्त
वर्णाश्रमधर्म", सामाजिक सस्कार", वेश्यावृत्ति, भोजन शुल्क मंडपिकाओं द्वारा भी संगृहीत किया जाता था।
व्यवस्था", शिक्षा", चित्रकला, सगीत", आभूषण": राजानों के ऐश्वर्य का सविस्तार वर्णन है। इनके राज्या
सौन्दर्य प्रसाधन", चिकित्सा साधन, खेतो की व्यवस्था" भिषेक के समय किये जाने वाले उत्सवो का भी प्रादि
का इनमे सागोपाग वर्णन मिलता है । समसामयिक पुराण मे वर्णन है। राजानो का अभिषेक भी एक
के वास्तुशिल्प का भी सविस्तार वर्णन मिलता है। मादर विशिष्ट पद्धति द्वारा कराया जाता था। राज्याभिषेक के
महल आदि के वर्णनों में इस प्रकार की सामग्री उल्लेखसमय “पट्टबधन" होता था। यह पट्टबधन युवराज पद पर
नीय है। श्री अल्तेकर जी ने अपने ग्रन्थ राष्ट्रकूटाज एण्ड नियुक्त करते समय भी बाधा जाता था। पट्टबधन" का
देयर टाइम्स में इस सामग्री का अधिक उपयोग नही २६ सन्तान क्रमतोगताऽपि हि रम्या कृष्टा प्रभोः सेवया' किया है। इस सामग्री का अध्ययन वांछनीय है।
महामंत्री भरत ने वा परपरागत पद को जो कुछ दिनों के लिए चला गया था पुनः प्राप्त किया।
____३२ प्रादिपुराण १६, १८१-१८८, २४२-२४६, १४७, - महापुराण भा० ३ पृ० १३ ।।
२६-१४२। ३० "बहवो मत्रिण: परस्पर स्वमतीरुत्कर्षयन्ति । १०-७३
' ३३ ३८-४५-४८ और ४२वा पर्व । ३१ पट्टबन्धापदेशेन तस्मिन् प्राध्व कृतेव सा।
- आदि ०११-४२ ३४ ४० और ३६वा पर्व । राजपट्ट बबन्धास्य ज्यायासमवधीरयत्।
-प्रादि पु० ५-२०७ ३६६-१८६-१८८, २०३, १६-७३ । "मणे' के शक सं०७१६ के लेख मे--राष्ट्रकुट ३७ १४-- [१६०, १६१], १६८ [१०५---१२८ । पल्लवान्वयतिलकाभ्या मूर्धाभषिक्त गोविन्दराज १८ [१७०-१६१।। नन्दि वर्मामिधेयाभ्या समुनिष्ठित - राज्याभिषेकाभ्या ३९ १४ |१०-१५०] १२ [२०६-२०६। निजकर घटित पट्ट विभूषित ललाट-पट्टो विख्यात ।" ४० १६ /४४-७१] १६ [८१-८४] । इसी प्रकार पट्टबन्धो जगबन्धो. ललाटे विनिवेशित । ४१ १२ (१७४] ११ | १३१] ६ (३०-३२] । प्रा० पु. १६-२३३ का उल्लेख है। पुष्पदन्त ने ४२ ११-५६, ११, ५८, ११, ६६, ११-७४-७६, गजानों के अभिषेक और चमरो का उल्लेख व्यंग के २८ J३८,४०] । साथ किया है । "चमराणिल उड्डाविय , अट्टि- ४३ २६ [११२-११५] २६ [४०] २६ [१२३-१२७] सेय धोय सुमणत्तणाई॥
२८ [३२-३६] १६ [११७] ।