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________________ जैन ग्रन्थों में राष्ट्रकटों का इतिहास विद्वान् थे । पुष्पदन्त का एक नाम खड भी था। ये महा- हो"। महाकवि धनपाल की पाइप लच्छी नाममाला" मात्य भरत और उनके पुत्र नन्न के ग्राश्रित रहे थे। ये के अनुसार यह घटना १०२६ वि० में घटित हुई थी। दानी राष्ट्रकूट राजा कृष्णराजके लिये "तडिग" "बल्लभ- राष्ट्रकूट राजा खोट्टिग के बाद कर्कराज हुमा। परमार नरेन्द्र" और "कण्हराय" शब्द भी प्रयुक्त किये है२ : आक्रमण के बाद राष्ट्रकूट राज्य का अधः पतन प्रारम्भ तिरुक्कलुरुकनरम् के शिलालेख मे 'कण्हरदेय' शब्द इस हो गया और शीघ्र ही चालुक्यो ने वापिस हस्तगत कर राजा के लिये प्रयुक्त किया गया है। यह राजा जब लिया। मेलपाटी के सैनिकशिविर मे था तब सोमदेव ने यशस्तिलक सस्कृत और प्राकृत के साथ साथ कन्नड भाषा मे भी चम्पू ग्रन्थ को पूर्ण किया था। इस ग्रन्थ की प्रशस्ति से कई दानपत्र और ग्रन्थ लिखे गये। इनमें सबसे उल्लेखज्ञात होता है कि अरिकेशरी के पुत्र वद्दिग की राजधानी नीय महाकवि पम्प है। इसके द्वारा विरचित आदिपुराण गगधारा में यह ग्रन्थ पूर्ण हुआ था। इसमे स्पष्टतः वणित चम्पू और विक्रमार्जुन विजय ग्रन्थ प्रसिद्ध है पिछले ग्रन्थ है कि कृष्णराज ने पाण्ड्य, सिंहल, चोल, चेर आदि में अरिकेशरी की जो चालुक्यवशीय था और जा सोमदेव राजापो को जीता था। इस बात की पुष्टि सम साम- के यशस्तिलक चम्पू मे भी वणित है, वशावली दी गई यिक पत्रो से भी होती है । पुष्पदन्त के प्रादिपुराण में है। विकृमार्जुन विजय ऐतिहासिक ग्रन्य है । इसमे राष्ट्रमान्यखेटपुर को मालवे के राजा द्वारा विनष्ट करने का कूट राजा गोविन्द (तृतीय) के विरुद्ध उसके सामन्त उल्लेख है"। यशोघर चरित की प्रशस्ति से ज्ञात होता राजारों के आक्रमण करने और राज्य को बहिगराज को है कि जिस समय सारा जनपद नीरस हो गया था, चारो मोपने का उल्लेख है। वद्दिग अमोघवर्ष (द्वितीय) का ही ओर दुसह दुःख व्याप्त हो रहा था, जगह जगह मनुष्यो उपनाम प्रतीत होता है। की खोपडिया मौर ककाल विखर रहे थे, सर्वत्र करक ही शासन व्यवस्था करक दिखाई दे रहा था उस समय महात्मा नन्न ने मुझे राष्ट्रकूट राजारों के राजनैतिक इतिहास के साथसरस भोजन और सुन्दर वस्त्र दिये अतएव वह चिरायु साथ समसामयिक राज्य व्यवस्था का भी जैन ग्रन्थो में सविस्तार वर्णन मिलता है। प्रादिपुराण और नीतिवाक्या२२ सिरिकण्हरायकरयलणिहिमप्रसिजलवाहिणि दुग्गयरि । मृत में इसका स्पष्ट चित्र खीचा गया है। राजा मोर -प्रादिपुराण अ० ३ की भूमिका पृ० १६ मत्रियो को उस समय वश परम्परागत अधिकार प्राप्त २३ E.I. VOL 3 P. 282 एवं साउथ इडियन इसक्रिपसन भा० १ पृ० ७६. २६ जणवय नीरसि दुरियमलीमसि, २४ 'पाण्डय सिंहल - चोल-चेरम - प्रभृतीन्महीपतीन्प्रसाध्य कइणिदायरि दुसहे दुइयरि। मेलपाटी प्रवर्द्धमानराज्यप्रभावे श्री कृष्णराजदेवे'... पडियकवालइणरककालइ, बहुरकालइ अइ दुक्कालइ । एवं ८८० शक के दान पत्र मे "तं दीण दिण्ण धण पपरागारि सरसाहारि, ण्हि चेलि वरतबोलि । कणयपया महिपरिभमतु मेलाडिणयरु" उल्लेखित महु उवयारिउ पुण्णि परिउ, गुणभत्तिल्लउ णण्णु महल्लउ । २५ दीनानाथ धन सदा बहुजन प्रोत्फुल्ल वल्लीवनं । होउ चिराउस............" मान्याखेटपुरं पुरदर पुरी लीलाहरं सुन्दरम् । -यशोधर चरित ४।३१ पृ० १०० धारानाथ नरेन्द्रकोप शिखिना दग्घ विदग्धं प्रिये। २७ विक्कम कालस्स गए अउणतीसुत्तरे सहस्सम्मि । क्वेदानी बसति करिष्यति पुनः श्री पुष्पदन्तः कविः ॥ मालवरिदघाडीए नूडिए मन्नखेडम्मि । -यह पद सदिग्ध और क्षेपक है) महापुराण ५०वी -पाइअलच्छी नाममाला पृ०४५ सधि। २८ अल्तेकर राष्ट्रकूटाज पृ० १०७-१०८
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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