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जैन ग्रन्थों में राष्ट्रकूटों का इतिहास
श्री रामवल्लभ सौमारणी
दक्षिण भारत के राष्ट्रकूट राजानो के गौरवपूर्ण जैन दर्शन के महान् विद्वान भट्ट अकलक इसके समय में शासनकाल मे जैनधर्म की अभूतपूर्व उन्नति हई। कई हुए थे। इनके द्वारा विरचित ग्रन्थों में लघीयस्त्रय, प्राचार्यों ने उस समय कई महत्त्वपूर्ण ग्रन्थो की सरचना तत्त्वार्थ राजवात्तिक, अष्टशती, सिद्धिविनिश्चय और की जिसमे समसामयिक भारतके इतिहास के लिए उल्लेख- प्रमाण-सग्रह आदि बड़े प्रसिद्ध है। इन ग्रन्थो में यद्यपि नीय सामग्री मिलती है।
सम सामयिक गजात्रों का उल्लेख नहीं है किन्तु कथाराष्ट्रफूट राज्य की नीव गोविदराज प्रथम ने चालुक्य
कोश नामक ग्रन्थ में इनकी सक्षेप में जीवनी है । इसमे राजाओं को जीतकर डाली थी। इसका पुत्र दतिदुर्ग बडा ।
इनके पिता का नाम पुरुषोत्तम बतलाया है जिन्हे राजा उल्लेखनीय हुआ है। इसका उपनाम साहसतुग भी था।
शुभतुग का मत्री वणित किया है। यह राजा शुभतुग
निस्सदेह कृष्णराज प्रथम है और इसी आधार पर श्री के. इसके बाद राजा लक्ष्मणदास इमके वशज का विव- बी. पाठक ने इनको कृष्णराज प्रथम का सम सामयिक रण देकर फिर मुनीम मागीलाल (मथुरा का माहेश्वरी माना है। इसके विपरीत श्रवण बेल्गोला की मल्लिषेण वैश्य और सेठ लक्ष्मीचन्द का प्रधान मुनोम) उसके पुत्र प्रशस्ति मे इन्होंने राजा माहमतुग की सभा मे बड़े गौरव लाला नारायणदास, लाला श्रीनिवासदास का विवरण के साथ यह कहा था कि हे राजन् ! पृथ्वी पर तेरे समान दिया गया है उसे नीचे दिया जा रहा है
तो प्रतापी राजा नही है और मेरे समान बुद्धिमान भी गोकुलदास पारिख (मृत्यु स० १८८३) नही है। 'अकलक स्तोत्र; नामक एक अन्य ग्रन्थ मे कुछ मनीराम मुनीम (मृत्यु स० १८९३)
पद ऐसे भी है जिन्हे किसी राजा की सभा में कहा जाना वणित है लेकिन इसमें कई स्थलो पर "देवोऽकलङ्का कली"
पद पाया है। अतएव प्रतीत होता है कि ग्रन्थ किसी सेठ लक्ष्मीचन्द सेठ राधाकृष्ण सेठ गोविन्दास अन्य के द्वारा लिखा हमा' है। मल्लिषेण प्रशस्ति के (मृ०सं० १९२३) (मृ०स० १६१६) (मृ०स० १६३५) उक्त इलोक सम्भवत जन श्रुति के आधार पर लिखे गये
है जो सही प्रतीत होते है।
श्री पीर सेनाचार्य भी प्रसिद्ध दर्शन शास्त्री थे। ये सेठ द्वारकादास
सेठ दामोदरदास
१ जनरल बम्बई ब्राच रायल एशियाटिक सोसाइटी भा० सेठ गोपालदास (गोद) सेठ मथुरादास (गोद)
१८ पृ० २२६, कथाकोष मे इस प्रकार उल्लेख है:सेट भगवानदास (गोद) (विद्यमान)
२ गजन् साहसतुग सति बहवः श्वेतात पत्रा नृपाः । चौरासी के दि० मन्दिर मूर्तियों के शिलालेख व पुराने
किन्तु त्वत्सदृशारणे विजयिनस्त्यागोन्नता दुर्लभाः । कागजात प्राप्त है, प्रकाश मे लाना चाहिए। मैं मथुरा- तद्वत्सन्ति बुधा न सन्ति कवयो वादीम्बरा. वाग्मिनो। दासादि पर विशेष जानकारी प्राप्त नहीं कर सका दि० नाना शास्त्रविचार चारुचातुरधियाः काले कलीमद्विधः ।। जैन मन्दिर मूर्तियों के लेख ध्यानपूर्वक संग्रह कर प्रकाश
-जन लेख स० भा० २ लेख २९० में लाना चाहिए।
३ न्यायकुमुदचन्द्र की भूमिका पृ० ५५ ।
(दिवंगत)