________________
११२
अनेकान्त
प्रतिष्ठान की बड़ी भारी साख थी और वह इस क्षेत्र का वह अपने कार-बार को देखने लगा था और उसने सबसे अधिक धनी माना जाता था। ग्वालियर नरेश अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान की बडी उन्नति की थी। दौलतराव सिधिया के देहावसान के पश्चात् रानी बायजा- मनीगम के पश्चात् उसके कार-बार, धन-वैभव और यश बाई ने सेठ मनीराम को ग्वालियर राज्य का खजाची की इतनी वृद्धि हुई कि उसका नाम समस्त उत्तर भारत नियुक्त किया था। वहां के सरकारी कागजो से ज्ञात मे प्रसिद्ध हो गया था। वह 'नगर सेठ' कहलाता था। होता है कि उस काल मनीराम का ग्वालियर राज्य में और उसके प्रतिष्ठान 'मनीराम लक्ष्मीचन्द की व्यापारिक बड़ा प्रभाव था।
साख उस काल में सर्वत्र व्याप्त थी उसके विषय मे श्री उसके धार्मिक कार्यों में उसके द्वारा निर्मित चौरासी ग्राउस ने लिखा है-- का जैन मन्दिर विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उमका "पिछले अनेक वर्षों तक मथुरा जिले का सर्वाधिक देहान्त स० १९६३ में हया था। मनीराम और गोकुलदास प्रभावशाला पुरुष 'मनारा पारिख की सुन्दर छतरियाँ मथुरा के 'यमुना बाग' में बनी मुखिया रहा है। इस गद्दीकी व्यापक और प्रचुर प्रतिष्ठा हुई थी।
इस प्रान्त के किसी अन्य व्यापारिक संस्थान से अधिक ही चौरासी का जैन मन्दिर :
नही है वरन् समस्त भारत में भी उसके समान शायद ही मथुरा के चौरामी नामक प्राचीन सिद्धक्षेत्र में मनी. कोई दूगरी गद्दी हो। इसकी शाखाएँ दिल्ली, कलकत्ता, राम द्वारा निमित यह एक दिगबर जैन मन्दिर है। इसम बम्बई के साथ ही साथ अन्य बड़े व्यापारिक केन्द्रों में भी पहिले श्रीचन्द प्रभु की और बाद में श्री अजितनाथ की
है। जहाँ सर्वत्र उनकी प्रसिद्धि है। हिमालय से कन्याप्रतिमाएं प्रतिष्ठित की गई थी। ब्रज मण्डल में जैनधर्म
कुमारी तक कही भी मथुरा के सेठो की कितनी ही बड़ी
मा का यह सबसे प्रसिद्ध केन्द्र है।
हंडी का भुगतान वैसी ही साख से होता है जैसा इगलैण्ड सेठ लक्ष्मी चन्द :
के बैंक नोट का लदन या पेरिस में किया जाता है।" वह मनीराम का ज्येष्ठ पुत्र और पारिख जी सांस्कृतिक और जनोपयोगी कार्य :का उत्तराधिकारी था । उसने भाग्यवश अपनी सेठ नक्ष्मीचन्द ने अपने यश-वैभव की वृद्धि करने के बाल्यावस्था में पारिख जी की विपुल सम्पत्ति साथ ही साथ व्रज के जनोपयोगी और मास्कृतिक कार्यों प्राप्त की थी। मनीराम के जीवन-काल में ही की प्रगनि में बड़ा योग दिया था। उस काल में यहाँ इम १ रानी बायजाबाई मिधिया के सरकारी कागज-पत्र म
प्रकार के जिनने कार्य किये गये, उनमे प्रमुख प्रेरणा सेठ ६६ का प्रश इस प्रकार है-"मिविया दरबार के मुन्य
लक्ष्मीचन्द की थी। क्या धार्मिक, क्या मास्कृतिक क्या खजाची गोकुल पारिख थे। जब वे ( दौलतगव ) सन्
राजनैतिक मभी क्षेत्रो मे उसकी उदारता की धूम थी। १८२७ ई० ( सवत १८८४ ) मे मर गये। तब उसकी
श्री रंगजी का मन्दिर :-- जगह पर बायजाबाई ने जयपुर निवासी मनीराम सेठ सेठ लक्ष्मीचन्द के दो छोटे भाई गधाकृष्ण और को खजाची नियत किया पहिले यह बहत गरीब थे. परत गोबिद दाम थे। वैष्णव धर्म के रामानुज सम्प्रदाय के प्रागे वे बड़े धनाढ्य हो गये । मिधिया दरबार में उम अनुयायी हो गये थे। उन दिनों ब्रज में रामानुज सम्प्रदाय ममय ये अव्वल दर्जे के मालदार गिने जाते थे। इनका की प्रधान गढ़ी गोवर्धन में थी, जिसमें अध्यक्ष श्रीरगाचार्य उरा समय इतना प्रभाव था कि उनकी मलाह लिये बिना नामक एक विद्वान और तपस्वी धर्माचार्य थे। सेठ गधाकोई मरकार को एक पैसा तक कर्ज नही देना था। उनकी कृष्ण और मेठ गोबिददाम ने अपने ज्येष्ठ भ्राता लक्ष्मीदुकान का नाम 'मनीचन्द' करके मशहर था।" काकगेली चन्द स छिपाकर वृन्दावन मे रामानुज मप्रदाय का एक का इतिहास पृ० ३३ ।
२ मथुग-ए-डिस्ट्रिक्ट मेमोअर (तृतीय संस्करण) पृ. १४