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सोनागिरि सिडक्षेत्र और तत्सम्बन्धी साहित्य
सा. जयमाल जाल्हण ते प्रणमंति महाराज पुत्र गोशल'। एक अन्य अभिलेख से भी कमलकीत्ति का भद्रारक
+ + + + + हेमकीत्ति के पट्र पर प्रतिष्ठित होना सिद्ध होता है। सं० १५१० वर्षे माघ सुदि ८ सोमे काष्ठासघे भ.
सं० १५०६ जेठ सुदि ... शुके श्रीचन्द्रपाटदुर्ग पुरे कमलकीतिदेव अनोत्कान्वये गर्गगोत्रे तारन भा० देन्ही पुत्र
चौहानवशे राजाधिराज श्रीरामचन्द्रदेव युवराज श्रीप्रतापसदृय भा. वारु पुत्र षेमचन्द प्रणमति'।
चन्द्र देवराज्यवर्तमाने श्रीकाप्ठामधे मथुरान्वये पुष्करगणे + + + + + सवत् १५३० वर्षे माघ सुदि ११ शुके श्रीगोपाचल
प्राचार्य श्रीहेमकीत्तिदेव तत्प? भ. श्रीकमलकीतिदेव । दुर्गे महाराजा श्रीकीतिसिंघदेव काष्ठासघे माथरगच्छे पं० प्राचार्य रडधू नामधेय। पुष्करगणे भ० श्रीहेमकीत्ति तत्प? भ० कमलकीति तत्पट्ट प्रतएव स्पष्ट है कि सोनागिरि क्षेत्र की भट्टारक परंभ० शुभचन्द्र तदाम्नाये अग्रोतकान्वये गर्गगोत्रे स.....। परा मे कमलकीति और शुभचन्द्र के नाम इतिहास की
दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। यह क्षेत्र वि० सं० १५०० के पूर्व सं० १६३६ वैशाख वदि ८ चन्द्रवासरे श्रीकाष्ठासघे
सिद्धक्षेत्र के रूप में मान्य था, तब शुभचन्द्र का कनकपद्दि माथुरगच्छे पुष्करगणे भ० कमलकीत्ति देवाः तत्प भ०
-कनकादि-पर अभिषेक हुआ। शुभचन्द्र के पश्चात् श्रीशुभचन्द्र देवाः तत्पट्टे भ० यश सेनदेवा. तदाम्नाये'... ।
सोनागिरि के साथ भट्टारक यशस्सेन का सबंध रहा है। उपर्युक्त अभिलेखो से स्पष्ट है कि हेमकीत्ति के पट्ट पर इन यशस्सेन द्वारा प्रतिष्ठापित एक दशलक्षणयन्त्र वि. कमलकीत्ति, कमलकीत्ति के पट्ट पर शुभचन्द्र और शुभ- स. १६३६ का प्राप्य है। चन्द्र के पट्ट पर यश सेनदेव आसीन हुए। भट्टारक कमल
कमलकीत्ति भट्टारक के दो शिष्य थे-शुभचन्द्र और कीत्ति ने तत्त्वसार टीका की रचना की है। इस टीका मे
कुमारसेन . सोनागिरि क्षेत्र का अधिकार शभचन्द्र की जो प्रशस्ति अंकित की गई है, उसमे संघ, गण, गच्छ वे
शिष्यपरम्परा के अधीन रहा है। प्रतः वि० स० को १७वीं ही है, जो पूर्वोक्त अभिलेखो मे अकित है। यहाँ कमल
शताब्दी के मध्य तक माथुरगच्छ और पुष्करगण के कोत्ति को भट्टारक क्षेमकीत्ति, हेमकीत्ति और सयमकीत्ति
भट्टारक यहाँ की गद्दी के अधिकारी रहे । सत्रहवी शती के की परम्परा मे अमलकीत्ति का शिष्य लिखा गया है।
उत्तरार्द्ध मे यह क्षेत्र कुछ दिनो तक बलात्कार गण की १ भट्टारक सम्प्रदाय, जैनसस्कृति संरक्षक संघ, शोलापूर, अटेर शाखा के भट्टारको द्वारा उपयुक्त हुआ। अभिलेखों वि० २०१४ लेख संख्या ५६०
के अध्ययन से ऐसा अनुमान होता है कि भट्टारक विश्व२ वही, लेख सख्या ५६२
भूषण के समय तक गोपाचल, वटेश्वर और सोनागिरि ये ३ वही, लेख सख्या ५६३
तीनों ही स्थान एक ही भट्टारक परम्परा के अधीन रहे। ४ वही, लेख सख्या ५६५
एक स्थान का भट्टारक ही तीनों स्थानो की देखभाल करता ५ श्रीमन्माथुरगच्छ पुष्करगणे श्रीकाष्ठसघे मुनिः, था । सोनागिरि क्षेत्र मूलत' बलात्कारगण के भट्टारकों का सम्भूतो यतिसघ नायकमणि. श्रीक्षेमकीतिर्महान् । था, प्रत विश्वभूपण से पश्चात् यहाँ की गद्दी पर स्वतन्त्र तत्पट्टाम्बरचन्द्रमा गुणगणी श्रीहेमकीत्तिर्गुरुः, रूप से भट्टारक अभिपिवत होने लगे। इस परम्परा में श्रीमत्सयमकोतिपूरितादशापूरो गरीयानभूत् ॥१॥ देवेन्द्र भूषण, जिनेन्द्र भूषण, नरेन्द्रभूषण एव चन्द्रभूपण अभवदमलकीत्तिस्तत्पदाम्भोजभानुमुनगणनुत- प्रभृति के नाम उपलब्ध होते है। कीतिविश्वविख्यातकीत्तिः ।
निष्कर्प यह है कि भट्टारको के सम्बन्धों का अध्ययन शम-यम-दम-मूतिः. खडगरातिकीत्ति
करने से सोनागिरि क्षेत्र की मन्यता १५वी शती से पूर्व जंगतिकमलकीत्ति प्राथितज्ञानमूत्तिः ॥२॥ -नग्रन्थ-प्रशस्ति सग्रह प्रथमभाग, वीरसेवा ६ प्राचीन जैनलेखसग्रह, सम्पादक बाबु कामताप्रसाद ।
मन्दिर, पृ० १२३.१२४ ७ भट्टारक-सम्प्रदाय, सोलापुर, पृ. २२६ (लखाडू ५६५)