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________________ दर्शन और विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में : स्यावाद मौर सापेक्षवाद १०३ तब भी इर्द-गिर्द के तारों की अपेक्षा गति करते रहेगे। बात सापेक्षवाद में भी पद पद पर मिलती है। जिस सूर्य भी यदि गति-शून्य हो जाये तो भी ग्रह दूरस्थ निहा- पदार्थ के विषय मे साधारणतया हम कहते है कि यह रिकाओं की अपेक्षा से गतिशील ही मिलेगे। आकाश में १५४ पौण्ड का है। सापेक्षवाद कहता है यह है भी और इस प्रकार यदि हम आगे से आगे जायेगे तो हमें पूर्ण नही भी । क्योकि भूमध्य रेखा पर यह १५४ पोण्ड है पर स्थिति जैसी कोई वस्तु नहीं मिलेगी।" तात्पर्य यह हुआ दक्षिणी या उत्तरी ध्रुव पर यह १५५ पौण्ड है। गति कि सापेक्षवाद के अनुसार प्रत्येक ग्रह व प्रत्येक पदार्थ तथा स्थिति को लेकर वह और भी बदलता रहता है। चर भी है और स्थिर भी है। स्याद्वादी कहते है-पर- इसी तरह गुरुत्वाकर्षण के विषय मे आईस्टीन ने एक माणु नित्य भी है और अनित्य भी; ससार शाश्वत भी प्रयोग के द्वारा बताया---एक आदमी लिफ्ट में है। है और प्रशाश्वत भी। यहाँ यह देखने की आवश्यकता उसके हाथ मे सेम है। ज्यो ही लिफ्ट नीचे गिरना शुरू नहीं कि स्याद्वाद के निर्णय सापेक्षवाद को व सापेक्षवाद होता, वह आदमी सेम को गिराने के लिए हथेली को के निर्णय स्यावाद को मान्य है या नही किन्तु देखना यह पौधा कर देता है। स्थिति यह होगी-क्योकि लिफ्ट के है कि वस्तुतथ्य को परखने की पद्धति कितनी समान है साथ गिरने वाले मनुष्य की नीचे जाने की गति सेम से और दोनो ही वाद कितने अपेक्षानिष्ठ है । भी अधिक है, अत. मनुष्य को लगेगा कि सेम मेरी हथेली 'अस्ति', नास्ति, की बात जैसे स्याद्वाद में पद-पद पर से चिपक रही है तथा मेरे हाथ पर उसका दबाव भी मिलती है वैसे ही है और नही' (अम्ति, नास्ति) की पड़ रहा है। परिणाम यह होगा कि पृथ्वी पर खड़े मनुष्य की अपेक्षा से तो सेम गुरुत्वाकर्षण से नीचे प्रा १. Rest and motion are merely relative रही है, किन्तु लिफ्ट मे रहे मनुष्य को अपेक्षा से गुरुत्वा terms. A ship which is becalmed is at कर्षण कोई वस्तु नही है। इसीलिए वह है भी और नहीं rest only in a relative sense-relative to भी । यहाँ आईस्टीन ने गुरुत्वाकर्षण को केवल उदाहरण the earth; but the earth is in motion के लिए ही माना है। वैसे उसने वैज्ञानिक जगत् से relative to the sun, and the ship with it. उसका अस्तित्व ही मिटा दिया है। If the earth which stayed in its course ___स्याद्वाद बताता है-“वस्तु अनन्त धर्मात्मक है।" round the sun. The ship would become अर्थात् वस्तु अनन्त गुण व विशेषताओं को धारण करने at rest relative to the sun, but both वाली है। जब हम किसी वस्तु के विषय मे कुछ भी कहते would still be moving through the surro है तो एक धर्म को प्रमुख व अन्य धर्म को गौण कर देते unding stars. Check the sun's motion है। हमाग वह सत्य केवल आपेक्षिक होता है। अन्य through the stars and there still remains the motion of the whole galactic system अपेक्षामों से वही वस्तु अन्य प्रकार की भी होती है। निम्बू के सामने नारगी को बडी कहते है किन्तु पदार्थ of stars relative to the remote-nebula. And these remote-nebula move towards धर्म की अपेक्षा से नारगी में जैसे बड़ा पन है, वैसे ही or away from one another with speeds छोटापन भी। किन्तु वह प्रकट तब होता है जब खरबूजे के माथ उसकी तुलना करते है। गुरुत्व व लघुत्व जो of hundreds miles a second or more; by going futher into space we nof only find हमारे व्यवहार में आते हैं वे मात्र व्यावहारिक या प्रापेstandard of obsolute rest, but encounter क्षिक है। वास्तविक (अन्य) गुरुत्व तो लोकव्यापी महाgreat and greater speed of motion. Cosmology Old and New, p. 205. -The Mysterious unixerse by sir . Cosmology Old and New, p. 197. James Jeens, p. 79. ४. अनन्त धर्मात्मकं सत् ।
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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