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________________ १०१ मनकान्त स्वद्रव्य, क्षेत्र, काल, भावकी अपेक्षासे 'अस्ति'(है)स्वीकार (Hidden reserves) की दृष्टि से जितनी अधिक सच्ची करती है और परद्रव्य, क्षेत्र, काल, भावसे नास्ति नहीं है। कम्पनी होगी, वह उतना ही अधिक होगा।" स्वीकार करती है । जैसे हम एक घट के विषय मे कहते स्याद्वाद के क्षेत्र मे भगवान् महावीर ने सैकड़ों प्रश्नों हैं कि यह मिट्टी का घड़ा है, यह राजस्थान का बना है, का उत्तर अपेक्षामो के माधार पर विभिन्न प्रकार से यह ग्रीष्म ऋतु मे बना हुआ है, यह गौर वर्ण अमुक नाम दिया । सृष्टि के मूलभूत सिद्धान्तों को भी उन्होंने सापेक्ष का है। उसी समय उस घट के विषय में दूसरा व्यक्ति बताया। परमाणु नित्य (शास्वत) है या अनित्य-इस कहता है-यह स्वर्ण का घट नही है, यह विदर्भ प्रान्त प्रश्न पर उन्होंने बताया-"वह' नित्य भी है और अनित्य का घट नहीं है, यह हेमन्तकाल का घट नही है, यह भी। द्रव्यत्व की अपेक्षा से वह नित्य है। वर्ण पर्याय श्याम वर्ण व अमुक प्रकार का घट नहीं है। यहाँ 'है' (बाह्य स्वरूप) आदि की अपेक्षा से अनित्य है, प्रतिक्षण व 'नहीं है देश-काल सापेक्ष है । स्याद्वाद की तरह सापेक्ष- परिवर्तनशील है।" यही उत्तर भगवान् महावीर ने बाद मे भी तथाप्रकार के सापेक्ष उदाहरणो की बहुलता आत्मा के विषय मे दिया। प्राकृतिक स्थितियो के विषय है जो नयवाद व सप्त भगी द्वारा समर्थन पाते है। प्रो० मे आईस्टीन भी अपेक्षा-प्रधान बात कहते है । सापेक्षवाद एडिंगटन दिशा की सापेक्ष स्थितियो पर प्रकाश डालते के पहले सूत्र में उन्होने यह कहा-"प्रकृति ऐसी है कि हुये लिखते हैं-"सापेक्ष स्थिति को समझने के लिये किसी भी प्रयोग के द्वारा चाहे वह कैसा भी क्यो न हो, सबसे सहज उदाहरण किसी पदार्थ की दिशा का है। वास्तविक गति का निर्णय असम्भव ही है।" ऐसा क्यो? एडिनवर्ग की अपेक्षा से केम्ब्रिज की एक दिशा है और इसका उत्तर सर जेम्स जीन्स के शब्दो मे पढिये-"गति लन्दन की अपेक्षा से एक अन्य दिशा है। इसी तरह और और स्थिति प्रापेक्षिक धर्म है। एक जहाज जो स्थिर है और अपेक्षामों से । हम यह कभी नही सोचते कि उसकी बह पृथ्वी की अपेक्षा से ही स्थिर है लेकिन पृथ्वी सूर्य वास्तविक दिश) क्या है ?" उसी पुस्तक में प्रागे वे सत्य की अपेक्षा से गति में है और जहाज भी इसके साथ । और वासविक सत्य को सुस्पष्ट करते हुये लिखते है- यदि पृथ्वी भी सूर्य के चारो ओर घूमने से रुक जाय तो "तुम किसी कम्पनी के आय-व्यय का चिट्ठा लो जो गणि- जहाज सूर्य की अपेक्षा स्थिर हो जायेगा। किन्तु दोनो तज्ञ के द्वारा परीक्षित है। तुम कहोगे यह सत्य है पर - १. परमाणु पोग्गलेण भन्ने ! सासए, प्रसासए? गोयमा । वह वास्तव मे सत्य क्या है ? मै यह किसी धूर्त कम्पनी सिय सासए सिय प्रसासए । से कण ठेण भन्ते ! के लिये नही कह रहा हूँ पर सच्ची कम्पनी के चिट्ठ मे एव बुच्चइ मिय सासए, सिय असासए ? गोयमा । भी वस्तुओं की उस क्षण की कीमत और उसकी अकित दम्बठयाए सासए वण्ण पचमेहि जाव फासवज्जवेहि कीमत मे महान् अन्तर होगा; अत: हीडन रिजर्व प्रसासए से तेण ठेण जाब सिय सासए । 8. A more familiar example of a relative -भगवती शतक १४-३४ quantity is direction' of an object. There २. जीवाण भन्ने । कि सासया प्रसासया ? गोयमा ! is a direction of Cambridge relative to जीव सिय सासया सिय प्रसासया । से केण ठेण Edinburgh and another direction relative भने । एव बुच्चइ जीवा सिय सासया सिय प्रसto London, and so on It never occurs मया । गोयमा? दबठयाए सासया भावठयाए to us to think of this as discrepancy or प्रसासवा। -भगतवी श० ७, उ०२ to suppose that there must be some di- Nature is such that it is impossible to rection of Cambridge (at present undis- determine absolute motion by any expericoverable) which is obsolute. ment whatever. The Nature of physical World, p. 27. ---Mysterious Univers, p. 78
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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