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________________ दर्शन और विज्ञान के परिपेक्ष्य में : स्याद्वाद और सापेक्षवाद अणुव्रत परामर्शक मुनि श्री नगराज स्यावाद भारतीय दर्शनो को एक सयोजक कडी और बाल ही बच पाया व देश काल की धारणाओं ने भी एक जैन दर्शन का हृदय है। इसके बीज प्राज से सहस्रों वर्ष नया रूप ग्रहण किया। अस्तु; बहुत सारे विरोधो के पूर्व सभापित जैन आगमो में उत्पाद्, व्यय, ध्रौव्य, स्या- पश्चात् अपनी गणित सिद्धता के कारण आज वह अपेक्षादस्ति स्यान्नास्ति, द्रव्य, गुण, पर्याय, सप्त-नय आदि वाद निविवादतया एक नया आविष्कार मान लिया गया विविध रूपो मे बिखरे पड़े है। सिद्धसेन, समन्तभद्र आदि है। इस प्रकार दार्शनिक क्षेत्र में समुद्भूत स्यावाद और जैन दार्शनिको ने सप्तभगी आदि के रूप में ताकिक वैज्ञानिक जगत् मे नवोदित सापेक्षवाद का तुलनात्मक पद्धति से स्याद्वाद को एक व्यवस्थित रूप दिया। तद- विवेचन प्रस्तुत निबन्ध का विषय है। नन्तर अनेकों प्राचार्यों ने इस पर अगाध वाङ्मय रचा नाम साम्य: जो आज भी उसके गौरव का परिचय देता है विगत १५०० वर्षों मे स्याद्वाद दार्शनिक जगत् का एक सजीव स्याद् और वाद दो शब्द मिलकर स्याद्वाद की संघपहलू रहा और आज भी है। टना हुई है। स्यात् कथचित् का पर्यायवाची संस्कृत भाषा सापेक्षवाद वैज्ञानिक जगत् मे बोसवी सदी की एक का एक अव्यय है। इसका अर्थ है "किसी प्रकार से महान् देन समझा जाता है। इसके आविष्कर्ता सुप्रसिद्ध किसी अपेक्षा से' । वस्तु तत्त्व निर्णय मे जो वाद अपेक्षा वैज्ञानिक प्रो० अलबर्त आईस्टीन हैं जो पाश्चात्य देशों में की प्रधानता पर आधारित है, वह स्याद्वाद है । यह इसकी शाब्दिक व्युत्पत्ति है। सर्वसम्मति से संसार के सबसे अधिक दिमागी पुरुष माने गये है। सन १९०५ में आईस्टीन ने 'सीमित सापेक्षता' सापेक्षवाद (Theory of Relativity) का हिन्दी शीर्षक एक निबन्ध लिखा जो 'भौतिक शास्त्र का वर्ष पत्र' अनुवाद है । वैसे यदि हम इसका अक्षरश. अनुवाद करते नामक जर्मनी पत्रिका में प्रकाशित हुआ। इस निबन्ध ने है तो वह होता है 'अपेक्षा का सिद्धान्त' पर विश्व की वैज्ञानिक जगत् में अजीब हलचल मचा दी थी। सन् रूपरेखा, विज्ञान हस्तामलक प्रभति हिन्दी ग्रन्थों में इसे १९१६ के बाद उन्होंने अपने सिद्धान्त को व्यापक रूप में सापेक्षतावाद या सापेक्षवाद ही कहा गया है। तत्त्वतः. दिया, जिसका नाम था-'असीम सापेक्षता' । सन् १९२१ सापेक्षवाद का भी वही शाब्दिक अर्थ है जो स्याद्वाद का। मे उन्हे इसी खोज के उपलक्ष मे भौतिक विज्ञान का 'प्रपेक्षतया सहित सापेक्ष' अर्थात् अपेक्षा करके सहित जो 'नोबेल' पुरस्कार मिला। सचमुच ही प्राईस्टीन का है वह सापेक्ष है । अतः वह अपेक्षा सहित वाद सापेक्षवाद अपेक्षावाद विज्ञान के शान्त समुद्र मे एक ज्वर था। है। इस प्रकार यदि स्याद्वाद को सापेक्षवाद व सापेक्षवाद उसने विज्ञान की बहुत सी बद्धमूल धारणाओं पर प्रहार को स्याद्वाद कहा जाय तो शाब्दिक दृष्टि से कोई आपत्ति कर एक नया मानदण्ड स्थापित किया। अपेक्षावाद के नहीं उठती। यही तो कारण है कि हिन्दी लेखको ने जैसे मान्यता में आते ही न्यूटन के काल से धाक जमाकर बैठे थियोरी ग्राफ रिलेटिविटी का अनुवाद सापेक्षवाद (स्याहए गुरुत्वाकर्षण (Law of Gravitation) का सिहासन द्वाद) किया वैसे ही सर राधाकृष्णन् प्रभति अंग्रेजी लेखकों डोल उठा । 'ईथर' (Ether) नाम शेष होने से बाल- ने अपने ग्रन्थों में स्याद्वाद का अनुवाद (Theory of
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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