SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भनेकान्त १९६५ में प्रथम पुरस्कार जो महाकवि कुरुप के नाम एक निर्धन अध्यापक जिसकी मानवीय सदाशयता में घोषित हुआ था, वह उनकी इसी कोटि को काव्य रचना पास्था अन्त तक मडिग रहती है। उसे विश्वास है कि "भोटक्कुषल बांसुरी" पर दिया गया। प्रथम पुरस्कार मानवता अपनी पूरी-पूरी प्राब के साथ एक बार फिर के लिए पुस्तकों की प्रकाशन अवधि थी १९२० से १९५८ से सिर ऊंचा करके चलने लगेगी। तक। अब दूसरे पुरस्कार के लिए श्री ताराशकर की यद्यपि उपन्यास में संक्रमणकालीन बंगाल के ग्राम्यकृति को सन् १९२५ से १९५६ तक की अवधि में प्रका जीवन का ही चित्रण है। परन्तु प्रतीकरूप में यह पूरे शित प्रथों में से चुना गया है। समकालीन भारतीय ग्रामों का प्रतिनिधित्व करता है। पुरस्कार प्रदायिनी संस्था भारतीय ज्ञानपीठ की उपन्यासकार ने अपने पात्रों को हाड़-मांस के सजीव स्थापना सन् १९४४ में श्री शान्तिप्रसाद जैन ने की थी। चरित्रों के रूप में प्रस्तुत किया है जो व्यक्तिगत गुणों ज्ञानपीठ प्रकाशनों की संख्या अब ५०० से ऊपर हो के साथ-साथ समूहगत प्रतिनिधित्व भी होकर सामने चुकी है। इनमें संस्कृत, प्राकृत, पाली, अधमागधी, पाते हैं। सामिल एवं कन्नड की प्राचीन पाण्डुलिपियों को वैज्ञा- उपन्यासकार श्री ताराशंकरजी का जन्म २५ जुलाई निक पद्धति से सम्पादित कर प्रकाश में लाये गए शोध १८०८ को लाबपुर, जिला बीरभूम, पश्चिम बंगाल के प्रन्थ तया सुप्रसिद्ध एवं नवीन लेखकों के मूल हिन्दी तथा एक जमींदार परिवार में हुप्रा था। यह स्व० श्री हरिदास अन्य भारतीय भाषामों से अनूदित साहित्यिक ग्रन्थ बनर्जी के ज्येष्ठ पुत्र हैं। नागबाबू केवल पाठ वर्ष के ही सम्मिलित हैं। ये जब इनके पिता का देहान्त हो गया। इनका पालन वार्षिक साहित्यिक पुरस्कार की प्रवर परिषद के पोषण अपनी माता श्रीमती प्रभावती देवी के संरक्षण में अध्यक्ष हैं डाक्टर सम्पूर्णानन्द। परिषद के अन्य सदस्य ही हमा, जो अभी तक जीवित हैं। हैं-काका साहब कालेलकर, डा. प्रार०पार० दिवाकर, अपने गांव के अंग्रेजी हाई स्कूल से ही ताराबाबू ने हा0 हरेकृष्ण महताब, डा. नीहार रंजन रे, डा. मैट्रिक परीक्षा पास की । स्कूल जीवन के अंतिम वर्षों में गोपाल रेड्डी, डा. कर्णसिंह, डा. वी राघवन, श्रीमती इनका संपर्क क्रान्तिकारियों से हो चुका था। मैट्रिक रमा जैन तथा श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन । ये अन्तिम दो ज्ञान करने के बाद प्रापने कलकत्ता के सेण्ट जेवियर्स कालेज में पीठ का प्रतिनिधित्व करते हैं। श्रीमती रमा जैन ज्ञान में प्रवेश किया। यहां प्राकर क्रान्तिकारियो से सम्पर्क पीठ की अध्यक्षा है तथा श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन इसके मोर बढ़ा तथा फलस्वरूप इन्हें कालिज की पहाई छोर मंत्री हैं। कर अपने गाव में नजरबन्द होना पड़ा। प्रबर परिषद की इस बैठक ने पुरस्कार का उच्च निर्णय मर्वसम्मति से किया । गांव में यों तो इनका काम अपनी छोटीसी जमीदारी की देखभाल करना था, मगर इनका मन लेखन कार्य में गणदेवता तथा इसके लेखक श्री ताराशंकर वनों ही रमता था। प्रतः इन्होने इसी क्षेत्र का चयन कर गणदेवता बगाल के उस ग्राम्य जीवन एव समाज लिया, और कविताए तथा नाटक लिम्वने लगे । का प्रतिबिम्ब है जो स्वतन्त्रता संग्राम के प्रारम्भिक वर्षों में विद्यमान था। इस उपन्यास में प्राचीन ग्राम्य सन् १९२८ में तारा बाबू ने कहानियां लिखनी व्यवस्था के विघटन तथा नये पैदा हए लालची धनिक शुरू की। प्रापकी पहली कहानी 'कल्लोल' नामक वर्ग के उभरने की प्रक्रिया का यथातथ्य चित्रण है। पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। परिपाल में चित्रित हैं-छोटे-छोटे प्रापसी झगडे तथा फिर राष्ट्रीय प्रान्दोलन ने इन्हें खीचा पौर प्राप शोषण की मनोवृत्ति जिनके बीच प्रकेला जूझना हा स्थानीय कांग्रेस के रूप में जेन पने गमे । जेन जाने
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy