SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पडित भगवतीदास कृत वैद्यविनोद ग्रन्थ के मगलाचरण मे भट्टारक महेन्द्रसेन को नाथ स्तुति । इनके अतिरिक्त हमारी जिस पोथी में नमस्कार है । ग्रन्थ की हस्तलिखित प्रति की प्रशस्तियो वैद्यविनोद लिखा है उसी म लेखक की एक रचना से मालूम होता है कि महेन्द्रसेन काष्ठासघ - माथुरगच्छ ज्योतिषसार भी अंकित है। अन्तिम प्रशस्ति के अनुसार के भट्टारक थे, उनके गुरु का नाम सकलचन्द्र और प्रगुरु इसका रचनाकाल म० १६६४ तथा स्थान हिसार का का नाम गुरणचन्द्र था। ग्रन्थ में लेखक ने जोगीदास और वर्धमान मन्दिर था। उदयचन्द मुनि के उपदेश से इस नैन मुख इन दो लेखको का एकाधिक बार अाधार के ग्रन्थ की रचना हुई थी। इसमें द्वादशमासफल काण्ड, रूप में उल्लेख किया है । महाज्वगकुशवटी के वर्णन मे अर्धकाण्ड तथा ग्रहफलादि विचारकाण्ड ये तीन भाग हैं । उन्होने वद्यमहोत्सव नामक ग्रन्थ का भी उल्लेख हिन्दी, अपभ्रश और सस्कृत तीनो भापानी के पद्य किया है। इसमें प्रयुक्त हए है। इसकी रचना की प्रेरणा बिहारी ५ लेखक की अन्य रचनाएं दास साधना ने दी थी। अाधार के रूप मे गर्गमुनि और अनेकान्त में पं० परमानन्दजी शास्त्री ने भगवतीदास भडुली के नाम पाए है । इगी पोथी में द्वाविदद्रकेवली के बारे में समय-समय पर चार लेख लिखे है, जिनमे तथा नवाककेवली ये शकुन ग्रन्थ भी है । पहले को गौतम उनकी कई रचनाश्री के नाम मालूम होते है। ये लेख स्वामी कृत और दूसरे को गर्गाचार्यकृत कहा है तथा वर्ष ५ पृ० १३, वर्ष ७ पृ० ५४, वर्ष ११ पृ० २५ उनके अनुवाद भगवतीदासकृत है ऐसा प्रशस्तियो से तथा वर्ष १४ पृ०२२६ पर छपे है। इनसे ज्ञात होन प्रतीत होता है। दल के अतिरिक्त कापिड विचार यह वाली रचनायो के नाम इस प्रकार हैं शकुनदर्शक रचना भी भगवती दाम के नाम में इमी पोथी ___ मुकति शिरोमणि चूनडी गीत (मवत १६८०) में लिखी है। मीता मतु (मं० १६८४), लघु सीता सतु (स । १६८७) यहाँ पर भी नोट करना जरूरी है कि ब्रह्मविलास मृगाक लेखाचरित्र (सं. १७००)' टंडागागम, प्रादित्य के कर्ता भैया भगवतीदास पासवाल थे। वे वैद्यविनाद व्रतरास, दशलक्षणगम, खिचडीराम, साधुममाधिराम, के कर्ता से भिन्न और उत्तरवर्ती है । उनकी रचनायो जोगीराम, मन करहाराम, रोहिणीव्रतरास, चतुरवनजारा, का समय स० १७३१ से ५५ तक अर्थात् वैविनोद द्वादश अनुप्रेक्षा, मुगधदशमी कथा, प्रादित्य वार कथा, कर्ता से कोई प्राधी शताब्दी बाद का है। अनथमी कथा, वीरजिनिद गीन, राजमती नेमीश्वर ढमाल, सज्ञानी ढमाल, आदिनाथ स्तुति और शान्ति भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा १६६६ का पुरस्कार घोषित श्री ताराशंकर बन्द्योपाध्याय की कृति गणदेवता पर (श्री लक्ष्मीचन्द जैन, भारतीय ज्ञानपीठ) दिल्ली, ११ मई, १९६७ यह द्विगीय पुरस्कार है, प्रथम पुरस्कार मलयालम भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रनिन एक लव रुपये के महाकवि जी कर कुरुप को भेट किया गया था वाधिक माहित्यिक पुरस्कार की प्रवर परिषद ने दिनाक जिसका ममर्पण समारोह गत १६ नवम्बर १९६६ को ११ मई, १९६७ को यहा हुई अपनी बैठक में मन् १९६६ प कोयटा प्रपती टक में मन REE विज्ञान भवन, नई दिल्ली में सम्पन्न हुया था। का पुरस्कार सुप्रसिद्ध उपन्यासकार श्री नागशकर बनर्जी यह पुरस्कार भारतीय भाषामो में से सर्वश्रेष्ठ के पक्ष में घोषित करने का निर्णय किया है। सर्जनात्मक माहित्यिक कृति पर दिया जाता है। सन
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy