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________________ अनेकान्त श्रेणिक मौजूद न थे उस वक्त भी कुरिणक ही का राज्य है-उत्तर पुराण, हरिवश तुराण और हरिषेण कथा था ऐमा उत्तर पुराण में लिखा है तब जम्बू के दीक्षोत्सव कोश का। तीनो ही ग्रन्थ प्राचीन हैं। उत्तरपुराण का में श्रेणिक को उपस्थित बताना अयुक्त है। जम्बू की रचना काल वि० स० ११० के करीब । हरिवंश पुराण दीक्षा के वक्त श्रेणिक की विद्यमानता का उल्लेख हरिवश का वि० सं० ८४० और हरिषेण कथा कोश का वि० सं० पुगण और हरिपेण कथा कोश में भी नही है। ९८८ है। इस निबन्ध में ३ कथा ग्रन्थो का उपयोग किया गया पंडित भगवतीदास कृत वैद्यविनोद ( डा० विद्याधर जोहरापुरकर, मण्डला ) १ जैन साहित्य में वैद्यक ग्रन्थ अठारहमूल काढा, गंगाधर चूर्ण आदि औषधियो के प्रयाग प्राचीन जैन प्राचार्यों ने लोकहित की प्रेरणा से का वर्णन है। नीमरे उद्देश्य में ७६ पद्य है तथा प्रर्श, कई लौकिक विषयो पर भी ग्रन्थ लिखे है। वैद्यक भी शूल, कृमि, क्षय ग्रादि रोगो के उपचार बतलाये गये हैं। इन्ही विषथो मे से एक है। यद्यपि अब तक पूज्यपाद चौथे उद्देश्य में ७५ पद्य है तथा इसमे श्वास, कास, नामांकिन वद्यमार और उग्रादित्य विरचित कल्यागा- मदाग्नि. अजीर्ण, विपुची, सर्दी, हिचकी आदि रोगो के कारक ये दो ही जैन वैद्यक ग्रन्थ प्रकाशित हुए है तथापि उपचारों का वर्णन है। इसके बाद ग्रन्थ के अन्त तक अन्य कई अप्रकाशित अवस्था में है। उग्रादित्य के कथन स्त्री-पुरुषो के विशिष्ट रोगो की चिकित्सा बतलाई है। से मालम होता है कि वैद्यक के अनेक प्रगो पर जैन इस प्रकरण का काफी बड़ा हिस्सा पुत्र प्राप्ति के उपायो प्राचार्यों ने ग्रन्थ लिखे थे। उन्होने पूज्यपाद प्रकटित से घिरा हग्रा है। शालाक्य, पारस्वामि प्रोक्त शाल्यतन्य और मिद्धसेन कृत ३ ग्रन्थ रचना का समय और स्थानविपोग्र ग्रहगमन विधि का नामोल्लेख किया है। इन्ही लेखक की अन्तिम प्रशस्ति के अनुसार इस ग्रन्थ की अनुपलब्ध या अप्रकाशित ग्रन्थो में से एक का परिचय रचना शाहजहाँ के काल मे मंवत १७०४, चैत्र शुक्ल कगना इस लेख का उद्देश्य है । १४ गुरुवार को अकबराबाद में पूर्ण हुई थी। यथा२ प्रस्तुत ग्रन्थ वैद्य विनोद सत्रहमइ रुविडोत्तरइ मुकल चतुर्दसि चैतु । यह ग्रन्थ पृगनी हिन्दी में लिखा गया है। इसमें गुरुदिन भनी पूरनु करिउ सुलिता पुरि सह जयतु । ६२४ पद्य हैं। मुख्य रूप से दोहा और चौपाई छन्दो मे ६१६ ये पद्य हैं। कही-कही अडिल्ल, पद्धडिया और सोरठा लिग्विउ अकबराबादि गिर साहजहाँ के राज। साह निमइ माइ सम्मुि देस कोग गज बाजि ।। छन्दों का भी प्रयोग है। ग्रन्थ के पहले उद्देश्य में ५२ पद्य है तथा इसमें मंगलाचरण के बाद वैद्य के गुण-अवगुण ४ ग्रन्थकर्ता पंडित भगवतीदासनाडी के लक्षण, वात, पित्त, कफ, दोषो के लक्षण और साध्य-प्रमाध्य रोगो के लक्षण बतलाये है। दूसरे उद्देश्य अन्तिम प्रशासन मे लेखक ने अपने पिता का नाम में १२० पद्य है। इसमें भिन्न-भिन्न प्रकार के ज्वर, कृष्णदास तथा नगर का नाम बूढिया बताया है, यथामन्निपाल, संग्रहणी, पाण्डगेग, अतिसार ग्रादि रोगो के कृष्णदाम तनुरुह गुणी नयरि बूडियइ बाम् । लिए सुदर्शनचूर्ण, चिन्तामरिण रस, कनकमुन्दरी वटी, सुहिदु जु जोगीदास कउ कवि सु भगवतीदास ।।६२१
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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