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________________ अनेकान्त का नामग्राह उल्लेख भी किया करते थे। और विक्षिप्त मनुष्य को छोड़ कर ऐसा कौन मनुष्य त्रिपिटक साहित्य में बुद्ध के पारिपाश्विक भिक्षुप्रों होगा, जिसे प्रायुष्मान् सारिपुत्र न सुहाते हों। आयुष्मान का भी पर्याप्त विवरण मिल जाता है। सारिपुत्र, मौद्- सारिपुत्र महाज्ञानी हैं, महाप्राज्ञ हैं। उनकी प्रज्ञा प्रत्यन्त गल्यायन, मानन्द, उपालि, महाकाश्यप, प्राज्ञाकौण्डिन्य प्रसन्न, अत्यन्त तीव्र है।' प्रादि भिक्षु बुद्ध के अग्रगण्य शिष्य थे। जैन परम्परा में सारिपुत्र के निधन पर बुद्ध कहते हैं-"माज धर्मगणधरो का एक गौरवपूर्ण पद है और उनका व्यवस्थित रूप कल्प वृक्ष की एक विशाल शाखा टूट गई है।" बुद्ध दायित्व होता है। बौद्ध परम्परा में गणधर जैसा कोई सारिपुत्र को धर्म सेनापति भी कहा करते थे। सुनिश्चित पद नही है, पर सारिपुत्र प्रादि का बोद्ध भिक्षु सौ संघ में गणधरों जैसा ही गौरव व दायित्व था। सारिपुत्र मौद्गल्यायन का नाम भी सारिपुत्र के साथ-साथ बुद्ध के प्रधान शिष्यों में पाता है। ये तपस्वी और ऋद्धिगौतम की तरह सारिपुत्र भी बुद्ध के अनन्य महचरी मान थे । जैन परम्परा में जैसे गौतम के लब्धि-बल के में थे। वे बहन सूज-बूझ के धनी, विद्वान् और व्याख्याता विषय में अनेक बाते प्रचलित है, उसी प्रकार मौद्गल्यायन थे। बुद्ध इन पर बहुन भरोसा रखते थे। एक प्रसंगविशेष पर बुद्ध ने इनको कहा-“सारिपुत्र | तुम जिस के ऋद्धि-बल की अनेक घटनाएं बौद्ध परम्परा में प्रचलित हैं । गौतम का एक ही सीर-पात्र से पन्द्रह सौ तीन दिशा में जाते हो, उतना ही पालोक करते हो, भिक्षुषों को मनोहत्य खीर खिलाना और मौदगल्यायन जितना कि बुद्ध ।" पागम-साहित्य में केशी-गौनम-चर्चा का ऊचाई पर बंधे चन्दन पात्र को प्राकाश में उडकर का बहत ऊँचा स्थान है। केशीकुमार श्रमगा पाँच मौ उतार लाना दोनो के तपोबल की उल्लेखनीय घटनाए हैं। भिक्षु पो के नेता और पार्व-परम्पग के अनुयायी थे। गौतम भी पाच मौ भिक्षयों के परिवार मे विहार करते पाचसौ वज्जी भिक्षुप्रो को देवदत्त के नेतृत्व से मुक्त थे। दोनो का मिलन हया । पाश्र्व और महावीर के करने में मारिपुत्र के साय मौद्गल्यायन का भी पुग हाथ प्राचार-भेदों पर मान्विक चर्चाएं हई । गौतम को रहा है । प्रत्युत्पन्न मेधा मे प्रभावित श्रमण केशीकुमार अपने बुद्ध की प्रमुख उपामिका विशाखा ने सत्ताईस करोड भिमू-समुदाय के साथ महावीर की अनुशासना में प्रविष्ट स्वर्ण मुद्रामो की लागत से बुद्ध और उसके भिक्ष-संघ के लिए एक बिहार बनाने का निश्चय किया। इस कार्य के लिए मारिपुत्र की सूज-बूझ का भी एक अनूठा उदाहरण विशाखा ने बुद्ध से एक मार्ग-दर्शक भिक्ष की याचना की। त्रिपिटक साहित्य में मिलता है। बुद्ध का विरोधी शिष्य बुद्ध न बुद्र ने कहा- 'तुम जिस भिक्ष को चाहती हो, उसी का देवदत्त जब ५०० वज्जी भिक्षुप्रो को साथ लेकर भिक्षु चीवर और पात्र उठालो।' विशाखा ने यह सोचकर कि सघ से पृथक हो जाता है तो मुख्यत: सारिपुत्र ही अपने मौद्गल्यायन भिक्षु ऋद्धिमान है, उनके ऋद्धि-बल से मेरा बुद्धि-कौशल से उन पांच सो भिक्षुप्रो को देवदत्त के । कार्य शीघ्र सम्पन्न होगा, उन्हे हो इस कार्य के लिए चंगुल से निकाल कर बुद्ध की शरण में लाते हैं। मागा । बुद्ध ने पांच सौ भिक्षुषों के परिवार से मौद्गल्याएक बार बुद्ध ने प्रानन्द से पूछा-"तुम्हे सारिपुत्र । यन को वहां रखा। कहा जाता है, उनके ऋद्धि-बल से सुहाता है न ?" प्रानन्द ने कहा-"भन्ने । मूर्ख, दुष्ट विशाखा के कर्मकर रात भर में साठ-साठ योजन से बडे बडे वृक्ष, पत्थर ग्रादि उठा ले पाने में समर्थ हो 1. अंगुत्तर निकाय, अटकथा, १-४-१ 2. उत्तरध्ययन सूत्र, अ० २३ 1. संयुक्त्तनिकाय, प्रनाथपिण्डिकवग्ग, सुसिमसुत्त । 3. विनयपिटक, चुल्लवग्ग, संघ-भेदक-सन्धक । 2. विनयपिटक, चुल्लवग्ग, सघ-भेदक-खन्धक ।
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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