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________________ महावीर मौर बुद्ध के पारिपाश्विक भिक्षु-भिक्षुरिणया जाते थे। ५. अनेक भिक्ष जल्लोषध लब्धि के धारक थे। जैन परम्परा उक्त समारम्भ पूर्ण उपक्रम को भिक्षु उनके शरीर के मेल से दूसरो के रोग मिटते थे। के लिए प्राचरणीय नहीं मानती और न वह लब्धि-बल ६. पनेक भिक्षु विषोषध लब्धि के धारक थे। को प्रयुज्य ही मानती है, पर लब्धि-बल की क्षमता और उनके प्रस्रवण की बूद भी रोग-नाशक होती थी। प्रयोग की अनेक अद्भुत घटनाएं उसमें भी प्रचलित हैं। ७. अनेक भिक्षु मामपौषध लब्धि के धारक थे। महावीर द्वारा संदीक्षित नन्दीसेन भिक्ष ने जो श्रेणिक उनके हाथ के स्पर्श-मात्र से रोग मिट जाते थे। राजा के पुत्र थे, अपने तपोबल से वेश्या के यहा स्वर्ण ८. भनेक भिक्षु सर्वोषध लब्धि वाले थे। उनके मुद्रामों की वृष्टि कर दिखाई ।। केश, नख, रोम प्रादि सभी प्रौषध रूप होते थे। महावीर ने पंगुष्ठ-स्पर्श से जैसे समय मेरु को ६. अनेक भिक्षु पदानुसारी लब्धि के धारक थे; जो प्रकम्पित कर इन्द्र को प्रभावित किया; बौद्ध परम्परा में एक पद के श्रवण-मात्र से अनेकानेक पदों का स्मरण कर लेते थे। मौद्गल्यायन द्वारा वैजयन्त प्रासाद को अंगुष्ठ-स्पर्श मे १०. अनेक भिक्षु संभन्निश्रोत लम्धि के धारक थे, प्रकम्पित कर इन्द्र को प्रभावित कर देने की बात कही जाती है। कहा जाता है, एक बार बुद्ध, मौद्गल्यायन जो किसी भी एक इन्द्रिय से पांचो इन्द्रियों के विषय प्रहरण कर सकते थे। उदाहरणार्थ-कान से सुन भी प्रति पूर्वाराम के ऊपरी भौम मे थे। प्रासाद के नीचे भी सकते थे, चख भी सकते थे प्रादि । कुछ प्रमादी भिक्ष वार्ता, उपहास प्रादि कर रहे थे। उनका ध्यान खीचने के लिए मौद्गल्यायन ने अपने ऋद्धि ११. अनेक भिक्षु प्रक्षीणमहानम लब्धि के धारक थे, बल से सारे प्रासाद को प्रकम्पित कर दिया। सविग्न । जो प्राप्त अन्न को जब तक स्वयं न खालेते थे; तब तक और रोमाचित उन प्रमादी भिक्षुषो को बुद्ध ने उद्बोधन शतश:- सहस्रशः व्यक्तियों को खिला सकते थे। दिया । १२. अनेक भिक्षु विकुर्वण ऋद्धि के धारक थे। अपने नाना रुप बना सकते थे। प्रोपपातिक सूत्र में महावीर के पारिपाश्विक भिक्षुग्रो के विषय में बताया गया है : १३. अनेक भिक्ष जंघाचारण लन्धि के धारक थे । वे जंधा पर हाथ लगाकर एक ही उड़ान में तेरहवें रुचकवर "१. अनेक भिक्ष ऐसे थे, जो मन से भी किसी को द्वीप तक और मेरु पर्वत पर जा सकते थे। अभिशप्त और अनुगृहीत कर सकते थे । १४. अनेक भिक्ष विद्याचारण लब्धि के धारक थे। २. अनेक भिक्षु ऐसे थे, जो वचन से ऐसा कर वे ईषत् उपष्ठम्भ से दो उडान में पाठवें नन्दीश्वर द्वीप सकते थे। तक और मेरुपर्वत पर जा मकते थे। ३. भनेक भिक्ष ऐसे थे, जो कायिक-प्रवर्तन से ऐसा १५. अनेक भिक्षु पाकाशातिपाती लब्धि के धारक कर सकते थे। थे। वे ग्राकाश में गमन कर सकते थे। माकाश से रजत ४. अनेक भिक्ष श्लेष्मौषध लब्धि वाले थे। उनके प्रादि इष्ट पनिष्ट पदार्थों की वर्षा कर सकते थे।" श्लेष्म से ही सभी प्रकार के रोग मिटते थे। 1. अप्पेगइया मण सावाणुग्गहसमत्था, वएणं 1. धम्मपद अट्ठकथा, ४-४४ । सावाणुग्गहसमत्था, काएण सावाणुग्गहममत्या, अप्पेगइया 2. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रम् पर्व १०, सर्ग ६।। खेलोसहिपत्ता, एव जल्लोसहिपत्ता, विप्पोमहिपत्ता,मागमो3. मज्झिमनिकाय, चूलतण्हासंखय सुत्त । सहिपत्ता, सम्वोमहिपत्ता, ......"पयाणुसारो, संमिन्न4. संयुत्तनिकाय, महावग्ग, ऋद्धिपाद सयुत्त, मोप्रा, अक्खीणमहारणसियो, विउव्व रिगड्ढपत्ता, चारण, प्रासादकम्पनवम्ग, मौगालान सुत्त । विज्जाहरा, मागासाइवाइगो। --उववाइय मुत्त१५
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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