SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर और बुद्ध के पारिपाश्विक भिक्षु भिक्षुणियां ( मुनि श्री नगराज जी ) अवश्य ऐसे होते हैं जो के लिए अमर रहते हैं किसी भी महापुरुष की जीवन-कथा में कुछ पात्र उस जीवन कथा के साथ सदा महावीर और बुद्ध की जीवनयोग भौर भी बहुलता से मिलता । चर्या में ऐसे पात्रों का है । महावीर के साथ ग्यारह गणधरो के नाम अमर हैं । नायक थे। इन्होंने ही द्वादशागी ये सब भिक्षु संघों के का प्राकलन किया। गौतम गौतम उन सब में प्रथम थे और महावीर के साथ अनन्य रूप से संपृक्त थे। ये गूढ से गूढ़ और सहज से सहज प्रश्न महावीर से पूछते ही रहते थे। इनके प्रश्नो पर ही विशालतम श्रागम विवाह पण्णत्त (भगवती सूत्र ) गठित हुआ है । ये अपने लब्धि-बल से भी बहुत प्रसिद्ध रहे है । गौतम का महावीर के प्रति असीम स्नेह था । महावीर के निर्वाण प्रसग पर तो वह तट तोड़ कर ही बहने लगा। उन्होने महावीर की निर्मोह वृत्ति पर उलाहनों का अम्बार खड़ा कर दिया, पर पन्त में सम्भले । उनको वीतरागता को पहचाना और अपनी सरागता को । पर-भाव से स्वभाव में आए। प्रज्ञान का प्रावरण हटा। कैवल्य या स्वयं श्रहंत हो गये । गौतम द्वारा प्रतिबुद्ध पन्द्रह सौ तापस भिक्षुओ को जब सहज ही कैवल्य प्राप्त हुम्रा, गौतम को अपने पर ग्लानि हुई। उनके उस अनुताप को मिटाने के लिए महावीर ने कहा था- "गौतम ! तू बहुत समय से मेरे साथ स्नेह से संबद्ध है। तू बहुत समय से मेरी प्रशसा करता श्रा रहा है । तेरा मेरे साथ चिरकाल से परिचय है । तूने चिरकाल से मेरी सेवा की है। मेरा प्रनुसरण किया है, कार्यों में प्रवर्तित हुआ है । पूर्ववर्ती देव-भव तथा मनुष्य-भव में भी तेरा मेरे साथ सम्बन्ध रहा है, धौर क्या, मृत्यु के पश्चात् भी इन शरीरों के नाश हो जाने पर दोनों समान, एक प्रयोजन वाले तथा भेद रहित (सिद्ध) होंगे ।" 1 उक्त उद्गारों से स्पष्ट होता है, महावीर के साथ गौतम का कैसा अभिन्न सम्बन्ध था । चन्दनबाला चन्दनबाला महावीर के भिक्षुणी संघ में प्रग्रणी थी। पद से वह 'प्रवर्तिनी' कहलाती थी। वह राज- कन्या थी । उसका समग्र जीवन उतार-चढाव के चलचित्रों में भरा पूरा था । दासी का जीवन भी उसने जिया । लोहश्रृंखला में भी वह प्राबद्ध रही, पर उसके जीवन का प्रतिम अध्याय एक महान् भिक्षुणी संघ की सचालिका के गौरवपूर्ण पद पर बीता । कल्पसूत्र' के अनुसार महावीर के भिक्षु संघ में सातवी भिक्षु, चउदह सौ भिक्षुणियों ने कैवल्य (सर्वशत्व) पाया । तेरह सौ भिक्षु भिक्षुणियो ने अवधि ज्ञान प्राप्त किया । पाँच सौ भिक्षु मनः पर्यवज्ञानी हुए। तीन सौ चतुर्दश-पूर्वघर हुए तथा इनके अतिरिक्त अनेकानेक भिक्षु भिक्षुणियाँ लब्धिधर, तपस्वी, वाद-कुशल आदि हुए । महावीर कभी-कभी भिक्षु भिक्षुणियों की विशेषतानों 1. समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं ग्रामंलेता एव वयासी - 'चिरसंमिट्टो ऽमि में गोयमा ! चिरसथुप्रो ऽसि मे गोयमा । चिरपरिचिनो ऽसी मे गोयमा । चिरजुसिनोऽसि मे गोयमा ! चिरागोऽसि मे गोमा । चिराणुवत्तीसि मे गोयमा ! प्ररणतर देवलोए प्रणंतरं ! चुता माक्स भवे, किं परं ? मरणा कायस्स भेदा, इम्रो दो वि तुल्ला एगट्ठा श्रविसेस मरणागता भविस्सामो । - भगवती सूत्र, श० १४, उ०७ 2. सूत्र सं० १३८-४०, ४२, ४४ ॥
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy