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________________ ग्वालियर के तोमर राजवंश के समय जनधर्म वोरमदेवके महामात्य द्वारा मन्दिर और ग्रंथनिर्माण थी। प्रथम पत्नी रल्हो से कल्याणसिंह नाम का पुत्र कुशराज वीरमदेव का विश्वासपात्र महामात्य था, उत्पन्न हुअा था, जो बडा ही रूपवान, दानी पौर जिनजो जैसवाल जैन कुल में उत्पन्न हपा था। राजनीति मे गुरु की चरणाराधना में तत्पर रहता था। दक्ष और पराक्रमी था। इसके पिता का नाम नपाल वीरमदेव के राज्य मे जैनधर्म धारकों को अच्छा और माता का नाम 'लोणा' देवी था। कुशराज के ५ सुअवसर मिला था, क्योंकि जब राज्य में सुस्थिरता होती भाई और भी थे जिनमे चार बड़े और एक छोटा था। है तब जनता पूजा और उपासना में अपना समय ठीक हसराज, सौगज, रेराज, भवराज, ये बड़े भाई थे रूप मे लगा सकती है। यद्यपि वह समय विषम स्थिति और क्षेमराज छोटा भाई था१। इसने ग्वालियर मे चन्द्र- का था। शत्रुनो की दृष्टि उसे हडपने की थी, किन्तु प्रभ जिनका एक विशाल मन्दिर बनवाया था और उसका वीरमदेव ने राज्य को सुदृढ बनाने का यत्न किया था, प्रतिष्ठोन्सव बडे भारी समारोह के साथ सम्पन्न किया और विवेक के साथ उसके सरक्षण पर दृष्टि रखता था। था। कुशगज की तीन पत्निया थी-रल्हो, लक्षणश्री इस कारण शत्रुगण उससे भय खाते थे। प्रतएव जनता और कौशीग। ये तीनो ही धर्मपत्नी सती साध्वी, गुण- उस समय निर्भयता से धर्म साधन कर सकी थी। वती और पतिव्रता थी। नित्य जिनपूजन किया करती कुशराज ने वीरमदेव के राज्य में पद्मनाभ नाम के १. वशेऽभूज्जैमवाले विमलगुणभूलरण साधुरन्न, कायस्थ विद्वान से यशोधरचरित्र (दया सुन्दर विधान) साधुथी जैनपालो भवदुदितयास्तत्सुतो दानशील । नाम का काव्य बनाने का अनुरोध किया था जिसे पद्मनाभ जैनेन्द्र राधनेसु प्रमुदित हृदय सेवक. सद्गुरूणा, ने भ० गुणकीति के आदेशानुसार रचा था। इसके प्रति. लोगगारूपा सन्यशीलाऽजनि विमलमतिजैनपालस्य भार्या रिक्त अन्य कोई ग्रथ उस काल का रचा हा मेरे प्रवजान पटननयास्तयो सुकृतिनो श्रीहसराजोभवत्, लोकन मे नही पाया। नेपामाद्यनमस्ततस्तदनुजः सौराजनामा जनि । वीरमदेव के राज्य में जैन ग्रन्थों की प्रतिलिपियांरैगजोभवरानक ममनि प्ररूपातकीतिमहा वीरमदेव के राज्यकाल मे गोपाचल में लिखी गई ४ साधुश्री कुशराजकस्तदनु च श्री क्षेमराजो लघुः ।।६।। ग्रन्थलिपि प्रशस्तियां मेरे प्रवलोकन मे पाई है जो सवत् जाता: श्रीकुश राज एव सकलक्ष्मापालचूडामणः, १४६०, १४६८, १४६६ पोर सं० १४७६ की लिखी हुई श्रीमत्तामर वीरमम्य विदितो विश्वासपात्रं महान् । है। अन्वेषण करने पर और भी अनेक प्रशस्तिया उपलब्ध मत्री म विचक्षण. क्षणमय क्षीणारिपक्ष. क्षणात् । हो सकती है। क्षोणीमीक्षण रक्षणक्षणमति नन्द्र पूजारत. ७ स० १४६० मे गोपाचल मे साह वरदेव के चैत्यालय स्वर्गपद्धिसमृद्धिको तिविमलश्चत्यालय. कारितो, में भ० हेमकीति के शिष्य मुनि धर्मचन्द्र ने माघवदि १० लोकाना हृदय गमो बहुधनंश्चन्द्रप्रभस्य प्रभो । मगलवार के दिन सम्यक्त्वकौमुदी को प्रति प्रामपठनार्थ यन तत्समकालमेव रुचिरं भव्य च काव्य तथा, लिखी थी। यह ग्रन्थ जयपुर के नेरापथी मन्दिर के शास्त्र साधुश्रीकुशराजकेन सुधिया कीतश्चिरस्थापक || भण्डार में सुरक्षित है। तिम्रस्तस्यैव भार्या गुणचरितयुषस्तासु रल्होभिधाना, पत्नी धन्या चरित्रा व्रतनियमयुता शील शौचेन युक्ता। १ मवत् १४६० शाके ११२५ षष्ठान्दयोमध्ये विरोधी दात्री देवार्चनाढया गृहकृतिकुशला तत्सुत: कामरूपो, नाम मवत्मरे प्रवर्तन गोपाचल दुर्गस्थाने राजा वीरमदाता कल्याणसिंहो जिनगुरुचरणाराधने तत्परोऽभूत् ।। देव राज्य प्रवर्तमाने साहु वरदेव चैत्यालये भट्टारक लक्षणश्रीः द्वितीयाभूत्सुशीला च पतिव्रता । श्री हेमकीतिदेव तत्शिष्य मुनि धर्मचन्द्रेण प्रात्मपठकोशीरा च तृतीयेयमभूद् गुणवती सती ॥१० नार्थ पुस्तकं लिग्वित, माघ वदि १० भौमदिने । -यशोधर चरित प्रशस्ति -तेरापंथी मन्दिर जयपुर
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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