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________________ ग्वालियर के तोमर राजवंश के समय जैनधर्म परमानन्द जैन शास्त्री 'तोमर' शब्द एक प्रतिष्ठित प्राचीन क्षत्रिय जाति डोल हो गई थी। इसी समय अवसर पाकर वीरसिंह ने का सूचक है। इस वंश के राजा अनंगपाल प्रथम द्वारा ग्वालियर किले पर अधिकार कर लिया था। वीरसिंह दिल्ली को बसाये जाने का श्रेय प्राप्त है। इतना ही नहीं एक वीर पराक्रमी शासक था और राजनीति में दक्ष था। किन्तु इस वश के अनेक राजानों ने दिल्ली और उसके वह बड़ा साहसी और विवेकी था, उसमे दोषों को पचाने पास-पास के प्रदेशो पर शासन किया है। सभवत. ग्वा- और उनका निग्रह करने की क्षमता थी। लियर का तोमर राजवंश भी दिल्ली के तोमर वश का उद्धरण देव वीरसिंह का पुत्र था२ जो अपने पिता के वशज हो, लगता है दिल्ली का राज्य चले जाने पर वह बाद गद्दी पर बैठा था। मभवत. सन् १४०० (वि० स० वश ग्वालियर की प्रोर चला गया हो। ग्वालियर के १४५७) के पास-पास ही राज्य सत्ता इसके हाथ में पाई तोमर वश ने डेढ सौ वर्ष के लगभग शासन किया है। थी। इसने थोडं ही समय राज्य किया है। इसके राज्य ग्वालियर के तोमर राजामो के नाम इस प्रकार है - समय की कोई घटना मेरे अवलोकन में नहीं पाई। वीरसिंह, उद्धरणसिंह, वीरमदेव, गणपतिदेव, डूंगर वीरमदेव उद्धरणदेव का पुत्र था ३ । सन् १४०२ सिह, कीतिसिह या करणसिंह, कल्याणमल, मानसिंह और (वि०म० १४५६) या उसके कुछ समय बाद राज्य सत्ता विक्रमादित्य । वीरमदेव के हाथ में पाई थी४। यह राजनीति में चतुर इनमे वीरसिंह १ दिल्ली के बादशाह की सेवा में रह और पराक्रमी शासक था। इसने अपने राज्य की सुदृढ कर ग्वालियर का किलेदार नियत हुमा था। परन्तु वहा व्यवस्था की थी। शत्रु भी इसका भय मानते थे। इसके के शय्यद किलेदार ने वीरसिंह को किला सोपने से इकार ममय हिजरी सन् ८०५ सन् १४०५ (वि० स० १४६२) कर दिया। फिर भी वीरसिंह ने उससे मित्रता बढ़ाने का मे मल्लू इकबाल खा ने ग्वालियर पर चढाई की। परन्तु यत्न किया और उसको अपने यहा मेहमान कर नशीली उसे निराश होकर ही लौटना पडा। फिर उसने दूसरी चीजो से मिश्रित भोजन कराया और जब वह बेहोश हो बार वालियर पर घेरा डाला, किन्तु इस बार भी उसे प्रासगया तब उसे कैद कर लिया। यह सन् १३७५ (वि० स० पास के इलाके नट-पाट कर दिल्ली का रास्ता लेना पड़ा। १४३२) की घटना है। उस समय भारत पर तैमूरलग ने प्राक्रण किया था, तब भारत मे मुस्लिम सता डाबा- २. ईश्वर चुडारत्नं विनिहत करघातवत्तसंहातः । चन्द्र इव दुग्धसिंधोस्तस्मादुद रणभूपतिजनित. । + देशोस्ति हरियानाख्या पृथिव्या स्वर्गसन्निभ । -यशोधरचरित प्रशस्ति ढिल्लकाख्यापुरी तत्र तोमरैरस्ति निम्मिता ।।१॥ ३ तत्पुत्रो वीरमेन्द्रः सकलवसुमतीपालचूडामणियः, -दिल्ली म्यूजियम लेख ।। प्रख्यातः सर्वलोके सकलबुधकलानदकारी विशेषात् । १. जातः श्रीवीरसिंह. सकलरिपुकुलवातनिर्घातपातो, तस्मिन् भूपाल रत्ने निखिलनिधिगृहे गोपदुर्गे प्रसिद्धि, वशे श्रीतोमराणा निजविमलयशोख्यातदिक्चक्रवाल । भुजाने प्राज्यराज्यं विगतरिपुभय सुप्रजः सेव्यमानः ।। दाननि विवेकनं भवति समता येन साक नृपाणा, -यशोधरचरित प्रशस्ति केशामेषा कवीनां प्रभवति धिषणा वर्णने तद्गुणाना।। ४. वि० स० १४६० की लिखित प्रशस्ति मे वीरमदेव -यशोधरचरित प्रशस्ति के राज्य का उल्लेख है, जिसे आगे दिया गया है।
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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