SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन डा० गोकुलचन्द जैन, प्राचार्य, एम. ए., पो-एच. डो. सोमदेव सरिकृत यशस्तिलक महाराज यशोधर के मंत्री का व्यवहार रखा और उन्हे अपने यहाँ व्यापार की जीवनचरित्र को आधार बनाकर गद्य और पद्य मे लिखा मुविधाए दी। इस वग के राजाम्रो का विरुद् वल्लभराज गया एक महत्त्वपूर्ण संस्कृत ग्रंथ है। इसमे आठ पाश्वास प्रसिद्ध था जिसका रूप अरव लेखको में बल्हरा पाया या अध्याय हैं। पूरे ग्रन्थ मे दो हजार तीन सौ ग्यारह जाता है। पद्य तथा शेप गद्य है। मोमदेव ने गद्य तथा पद्य दोनो गष्टकटो के राज्य में साहित्य, कला, धर्म और दर्शन को मिलाकर आठ हजार श्लोक प्रमाण बताया है। को चतुर्मखी उन्नति हुई। उस युग की सांस्कृतिक पृष्ठयशस्निलक का रचनाकाल निश्चित है, इसलिए इसके भूमि को आधार बनाकर अनेक ग्रन्थो की रचना की गई। अनुशीलन मे वे अनेक कठिनाइयाँ नही पाती, जो समय यशस्तिलक उमी युग की एक विशिष्ट कृति है। की अनिश्चितता के कारण भारतीय साहित्य के अनुशीलन यशरितलक की रचना गद्य और पद्य मे हुई है। में साधारणतया उपस्थित होती है। सोमदेव ने यशस्तिलक माहित्य की इस विधा को समीक्षको ने चम्पू कहा है । के अन्त में स्वय लिखा है कि चैत्र शक्ल त्रयोदशी शक स्वय मोमदेव ने इमं महाकाव्य कहा है। प्रत्येक प्रादवाम मंवा ८१ (६५६ ई.) को जिस समय श्रीकृष्णगनदेव के अन्त में जो प्रणिका वाक्य पाया जाता है, उममे 'यशोपाण्डय, मिहल, चोल, चेर आदि राजाश्री का जीतकर धरमहागजग्नि यग्तिनकापरनाम्नि महाकाव्ये' पद मैलपाटी मेना शिविर में थे, उम ममय उनके चरणकम पाया है। वास्तव में यह अपने प्रकार का एक विशिष्ट प्रथ लोपजीवी, चालुक्य वशीय अरिकेमरी के प्रथम पुत्र सामन है और अपने प्रकार की स्वतन्त्र विधा । एक उत्कृष्ट काव्य वहिग (वद्यग) की राजधानी गगपाग में यह काव्य ग्वा के सभी गुण मम विद्यमान है। कया और आख्यायिका के शिलाट, गेमा चकारी पोर गेचक वर्णन, गद्य और पद्य राष्टकट नरेश कृष्णगज तृतीय के एक दानपत्र में भी के सम्मिश्रण का चि वैचित्र्य, रूपक के प्रभावकारी और सोमदेव के विवरण के ममानही कृष्णगजदेव की दिग्विजय हृदयग्राही मग्न कथनोपकथन, महाकाव्य का वृत्तविधान का उल्लेख है। यह दानपत्र मोमदेव के यस्तिलक की रसमिद्धि, प्रलकृत चित्राकन तथा प्रसाद और माधुयं युक्त रचना के कुछ ही सप्ताह पूर्व फाल्गुन वृष्ण त्रयोदशी शक सरम शैली, मगचिपुणं कथावस्तु और माहित्यकार के मंवत् ८८० (६ मार्च सन ६५६ ई०) को मेलपाटी (वर्त- दायित्व का कलापूर्ण निर्वाह, यह याम्तिनकका माहित्यिक मान मेलाडी जो उनर अकोट की वादिवाय तहशील में स्वरूप है। गद्य का पद्यो जमा मग्ल बिगाम, प्राकृत है) लिया गया था। छन्दों का मस्कृत में अभिनव प्रयोग तथा अनेक प्राचीन राष्ट्रकूट मध्ययुग में दक्षिण भारत के महाप्रतापी अमिद्ध शब्दो का मकलन यशस्तिलक के साहित्यिक म्वनरेश थे। धारवाड कर्नाटक तथा वर्तमान हैदराबाद प्रदेश रूप की अतिरिक्त विशेषताएं है। मस्कृत माहिन्य मर्जन पर गष्ट्रकूटों का अखण्ड गज्य था। लगभग पाठवी शती के लगभग एक सहस्र बों में सुबन्धु बाण और दण्डि के के मध्य में लेकर दशम शती के अन्त तक गष्ट्रकूट सम्राट् ग्रन्थो मे गद्य का, कालिदास, भवभूति और भार्गव के न केवल भारतवर्ष में, प्रत्युत पश्चिम के अरब साम्राज्य महाकाव्यों में पद्य का तथा भास और शुद्रक के नाटको में में भी अत्यन्त प्रसिद्ध थे। अरबों के माथ उन्होंने विशेष म्पक रचना का जो विकास हुआ, उमका और अधिक गया । ।
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy