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________________ श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथ वस्ती मंदिर तथा मूलनायक मूर्ति श्री पं० नेमचन्द धन्नूसा जैन (गतांक अक्टूबर १९६७ से आगे) [यह पंच परमेष्ठी की प्रचीन प्रतिमा खंडित होने ने उसे पूछा, "क्यों क्या हपा ? " पर भी अखंड है । यह प्रतिमा एक ऐतिहासिक घटना को तब सरदार ने जवाब दिया, "नंगे से खदा डरे।" सूचित करने वाली है। तात्पर्य यह मूर्ति नगी याने नग्न दिगवर है यह सुस्पष्ट इस प्राचीन मूर्ति का ऐतिहासिक महत्त्व: है। ऊपर की ऐतिहासिक घटना स्मृति देने वाली और मूल कहते है कि जब बादशाह औरगजेब सवारी के लिए नायक मूर्ति को बचाने के लिये उसके प्राघात का स्वयं दक्षिण में आया था, तब उसका सरदार श्री देवाधिदेव स्वीकार करने वाली दिगबर जैन यह प्रतिमा प्रष्ट अतरिक्षपार्श्वनाथ की कीति मुन कर उसे नष्ट भ्रष्ट प्रातिहार्य से युक्त है। करने आया। इस गंध वार्ता को सुन कर यहा के कर्म- यहां यह बात ध्यान में लाने योग्य है कि, यह मंदिर चारियों ने उस मूर्ति का भोयरा बद कर ऊपर यह पंच- । अगर प्रारम्भ से ही दिगबरों का न होता तो, उस समय परमेष्ठी की प्राचीन प्रतिमा रख दी। यह दिगबरी मूर्ति वहा पर कैसे रवी जाती? इस मूर्ति नियत समय पर सरदार वहां आया और उसने वह की नग्नता और वीतरागता मूल नायक मूर्ति के याने श्री खंडित कर दी। बडे संतोप से वह वापिस जा रहा था, अंतरिक्ष पार्श्वनाथ के मूर्ति के दिगंबर स्वरूप को ही सिद्ध तो फितुरो को इस बात का पता चला। उन्होने सच बात करती है। पाखे होने पर भी यह न देखने वालों के लिये सरदार को सुनाई। इससे यह सरदार द्वेप से बेभान बन- और क्या लिखा जा सकता है । तया यहा पाने वाले कर फिर मदिर मे पाया । उसको मालूम कर दिया गया था यात्रियों से भीग्व मागने वाले भिग्वारी भी जोर-जोर से कि मूतिके ऊपर नाग का बडा व काला फणाकार है। इस चिल्लाते है कि, “नगे बाबा के नाम पर कुछ दान करो लिये वह सोचने लगा कि मूर्तिके पहले मैं नाग को ही बाबा ।" यह दीन गरीवों की पुकार भी जो सुन नही नष्ट कर दूगा, बाद में मूर्तिको भ्रष्ट करूगा नही तो...। सकते, उनके लिये अधिक कहना कहां तक ठीक होगा? वस इस द्विविध विचार से उसका भान चला गया। नगी तो आईये, इस दालान के पांचों वेदियो तथा तलवार हाथ में थी। समवसरणस्थिति सब दिगंबरीप्रतिमाओं का दर्शन पूजन उसका वह रौद्र स्वरूप देख कर असली भोयरे का कर, आगे बहिये । इस हालत के अंत में यह दिगबर पेटी मार्गखोला वटा के अंधेरा के कारण मशालचीपरले को ऊपर जाने का रास्ता है। तथा सामने यह प्राचीन उतरा। बेभान रहने से या नागफणा को देखने से भोयरे भोयरे में उतरने के लिये व चौक में जाने के लिये स्वतत्र मे उतरते समय सरदार का चोला चला गया कोई कहते माग है। यह भोयरा तथा धर्मशाला नं० ३ गांव में के है किसी भुजंग ने उसी समय उस पर फुन्कार करने से प्राचीन मदिर का अवशेष भाग है। इसमें ही पहले श्री सरदार घबराया, और वह गिरने वाला था कि वहां के अतरिक्षपाश्वनाथ प्रभू की प्रसिद्ध मूर्ति विराजित थी। मशालची ने उसे सम्हाला और ऊपर लाया। नही तो दमवीं सदी में जहा मूर्ति स्थिर हो गयी थी, और उसकी तलवार का वह ही शिकार बन जाता। उसकी मूर्ति पर ही जहां श्रावक लोगों ने जो मंदिर बंधवाया था धामाघूम अवस्था घबड़ाया हुवा मुख देख कर साथी दारों वह यह ही स्थान है यह भोयरा जैसा आज दिखता है इससे
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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