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________________ २०२ अनेकान्त उन्होंने उसका इस प्रकार वर्णन किया है परणी त्याओ । लड़ाई सावता कही। पणी रावा जैचंद संवत् सोलहस वासठा पायी कातिक पावस नठा । पूंगलो पूज्यो नही । सजोगता सरूप हुई । तहि के बसी छत्रपति प्रकबर साहि जलाल नगर आगरे कोनो काल ।२४६ राजा हुो । सौ म्हैला हौ न रहो । महीना पंदरा वारा ने पाई खबर जोनपुर माह प्रजा अनाथ भई विन नाह। नीसरयो नहीं। पुरजन लोग भए भयभीत हिरदै व्याकुलता मुख पीत ।२४७ 3 इसी तरह इन शास्त्र भन्डारों में बीकानेर, जोधपुर, ही जयपुर नगर की १५वी, १९वी शताब्दी मे रचित काव्यों कोटा, अलवर करौली चेदिराजवंशी का जहां तहां अच्छा मे अच्छा वर्णन मिलता है। इनमे दो काव्य विशेष रूप वर्णन मिलता है। और जिसके समुचित अध्ययन की से उल्लेखनीय है। एक बुद्धि विलास जिसमे जयपुर नगर आवश्यकता है। उदयपुर, डुगरपुर, सागवाड़ा के ग्रथ की स्थापना का जो चित्र उपस्थित किया गया है वह भडारो मे उदयपुर के शासको का जो उल्लेख मिलता है अत्यधिक सुन्दर एवं प्रामाणिक है। बुद्धिविलास एक जैन उनसे कितनी ही इतिहास की विस्तृत कड़ियों को जोडा विद्वान वस्तराम की कृति है जिसे उसने सवत् १८२७ मे जा सकता है। समाप्त किया था जिसका प्रकाशन कुछ वर्षों पूर्व राज जैसलमेर के शास्त्र भंडार मे जो सन् ११५६ में स्थान पुरातत्त्व मन्दिर जोधपुर से हो चुका है। इसमे जयपुर नगर की स्थापना के अतिरिक्त वहाँ के राजवश लिखित उपदेश पद प्रकरण की जो पाण्डुलिपि मिली है उसकी प्रशस्ति मे अजमेर नगर एवं उसके शासक का का भी अच्छा वर्णन किया गया है। इतिहास प्रेमी विद्वानो निम्न प्रकार उल्लेख मिलता है। को इस प्रथ को अवश्य पढना चाहिये । ___ इसी तरह जयपुर के ही एक शास्त्र भण्डार मे संवत् १२१२ चैत्र सुदि १३ गुरौ प्रद्येह श्री अजयसग्रहीत एक पट्टावाली में जयपुर राजवश का बिस्तृत मेरू दुर्गे समस्तराजावलि विराजित परम भट्टारक महावर्णन मिलता है। राजस्थान के शासको के अतिरिक्त राजाधिराज श्री विग्रहदेव विजयराजे उपदेश टीका देहली के शासकों के सम्बन्ध मे भी कितनी ही पट्टा- लेखीति । बलियां मिलती है जिनमे बादशाहो के राज्यकाल का घड़ी राजस्थान के शासकों के अतिरिक्त यहां के नगरों एवं पल तक का समय लिखा हुआ है । जयपुर के ही का इतिहास, व्यापार का उतार चढाव, विभिन्न जातियों दिगम्बर जैन तेरहपथी मंदिर के शास्त्र भन्डार में एक की उत्पत्ति, यहां की सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन एव सस्कृत की "राजवंश वर्णन" कृति है जिसमे पाण्डवों से विभिन्न मान्यतायो के संबंध मे भी यहा प्रभूत साहित्य लेकर बादशाह औरंगजेब तक होने वाले शासको का मिलता है। वास्तव में ये ज्ञान की विभिन्न धारामो के पूरा समय लिखा हुआ है। हिन्दी मे लिखित "पातिसाहि तिसाह भंडार है । ये भडार ज्ञान के समुद्र है जिसके मन्थन से का व्यौरा” नामक कृति मे पृथ्वीराज के सबध मे जो विभिन्न रत्न प्राप्त हो सकते हैं । इसलिए मुझे पूर्ण विश्वास वर्णन किया गया है उसका भी एक प्रश निम्न प्रकार है। कि राजस्थान का इतिहास विशारद राजस्थान के इन तब राजा पृथ्वीराज संजोगता परणी । जहि राजा ज्ञान भंडारों का उपयोग करेंगे और उनमे से राजस्थान कैसा कुल सौला १६ सूरी का १०० हुआ । ल्याके भरोसे के विस्तृत इतिहास के कण कण एकत्रित कर सकेगे ।
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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