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________________ जैन अन्य संग्रहालयों का महत्त्व २०१ आचार्य धर्मकीर्ति कृत न्यायविन्दु, श्रीधर भट्टकृत न्याय- नेर प्रादि है। इसलिए इनके शासकों एवं राजस्थान के कदली प्रादि की पाण्डुलिपियों का अच्छा संग्रह है। नाटक नगरी एवं कस्बों के नाम खूब मिलते हैं जिनके प्राधार पर साहित्य में विशाखदत का मुद्राराक्षस नाटक, भट्ट नारायण यहाँ के ग्राम और नगरों का इतिहास पर भी अच्छा प्रकाया कृत वेणीसहार, मुरारी कृत अनघराघव नाटक एवं डाला जा सकता है।। कृष्णमिश्र का प्रबोध चन्द्रोदय नाटक, मुबन्धु कृत वासव- लेखक प्रशस्यिों के समान ही जो ग्रय प्रशस्तियों होती दत्ता नाटक एव अन्य सैकडों कृतियां भी इन भंडारो में है वे और भी महत्त्वपूर्ण होती है उनमे लेखक, अथवा सब मिलती है। हिन्दी राजस्थानी ग्रंथों की भी इन ग्रंथकार अपने इतिहास के साथ-साथ अपने ग्राम नगर का भंडारों में भारी संख्या मे पाण्डुलिपिया मिलती है। अभी भी अच्छा वर्णन करता है। अपभ्रश, हिन्दी, राजस्थानी हाल मे हिन्दी की एक प्राचीनतम कृति जिणदत चारत प्रथो मे हम तरह के वर्णन मिलते है। १७वी शताब्दी मे की एक पाण्डुलिपि उपलब्ध थी। इस काव्य का रचना होने वाले एक कवि ने अपनी यशोधर चौपाई में बदी एव काल संवत् १३५४ है। हिन्दी भाषा को सवतोल्लेख उसके शासक का निम्न शब्दो मे वर्णन किया है। बाली कृति प्रथम बार प्राप्त हुई है। जो डा० माताप्रसाद बूंदो इन्द्रपुरी जखिपुरी कि कुबेरपुरी, जी गुप्त एवं मेरे द्वारा सम्पादित होकर प्रकाशित भो रिद्धि सिसि भरी द्वारिका सी घटी घर में। हो चुकी है। इसी तरह १४वी एव १५वी शताब्दियों में धोलहर धाम घर घर में विचित्र वाम, रचित ग्रथ भी यहाँ कितनी ही सख्या में मिलते है । इन्ही नर कामदेव जैसे सेवे सुखसर में। भडारों में पृथ्वीराज रासो, कृष्णरुक्मिणी वेलि, मधुमालतो वागी वाग वारूण बाजार वीयो विद्या वेर, कथा सिंहासनबत्तीसी, रसिफप्रिया एव विहारी सतसई की विबुध विनोद वानी बोले सुखि नर में। भी प्राचीनतम प्रतियां भी उपलब्ध हुई है। तहां करे राज राव भावस्थंध महाराज, हिन्दु धर्म लाज पातिसाहि वाज कर में। अब मैं इतिहास को दृष्टि से इन शास्त्र भडारों के महत्व पर प्रकाश डालना चाहेगा। इन भडारों में इसी तरह १८वी शताब्दी में होने वाले कवि दिलाराम ने ऐतिहासिक कृतियो के अतिरिक्त जो अन्य पाण्डुलिपियाँ अपने 'दिलाराम विलास मे बूदी नगर का वर्णन किया है है उनमे जो प्रशस्तियां होती है वे इतिहास की दृष्टि से जो उक्त वर्णन के ही समान है। सन १७६८ मे कवि अत्यधिक महत्वपूर्ण है। ये प्रशस्ति ११वी शताब्दी से लेकर श्रुतसागर ने भरतपुर नगर एव उसके संस्थापक महाराजा १६वीं शताब्दी तक की है। वैसे प्रशस्तियों दो प्रकार मूरजमल का निम्न प्रकार वर्णन किया है। की है एक स्वयं लेखक द्वारा लिखी हुई तथा दूसरी लिपि देस काठहड़ विरजि में, वदनस्पंघ राजान, कारों द्वारा लिखी हुई होती हैं। ये दोनो ही प्रामाणिक ताके पुत्र हैं भलौ, सरिजमल गुणधाम । होती हैं और जिनकी प्रामाणिकता मे कभी शका नहीं की तेजपुंज रवि है मनो न्यायनीति गुगवान जा सकती। ऐसा मालूम पड़तो है कि इन ग्रंथकारो एवं ताको सुजस है जगत में नयो दूसरो भान लिपिकारों ने इतिहास के महत्त्व को बहुत पहिले ही तिनहु ज नगर बसाइयो नाम भरतपुर तास समझ लिया था और इसीलिए ग्रंथ लिखवाने वाले थावकों ता राजा समविष्टि है पर विचार उपवास । का, उनकी गुरूपरम्परा तथा तत्कालीन सम्राट् अथवा १७वी शताब्दी में कविवर बनारसीदास हिन्दी के अच्छे शासक के नामोल्लेख के साथ-साथ उनके नगर का भी कवि थे वे प्राध्यात्मिक कवि तो थे ही किन्तु वे पहिले उल्लेख किया जाता था। राजस्थान के इन जैन भडारो मे कवि है जिन्होंने अपना स्वयं का प्रात्मचरित लिखा था संग्रहीत प्रतियों के मुख्य केन्द्र देहली, अजमेर, जैसलमेर, और जिसका नाम अर्द्धकथानक है। कवि ने देहली पर नागौर तक्षकगढ़ : टोडारायसिंह : चम्पावती : चाकसू : लीन बादशाहो का शासन काल देखा था। बादशाह डूगरपुर, सागवाड़ा, चित्तौड़, उदयपुर, पामेर, बूदी, बीका- अकबर की मृत्यु के समाचार जब कवि को मिले तो
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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