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________________ २०४ अनेकान्त भी बड़ा व ऊंचा था। किया वैसा मन्दिर के भी सुनहरी शिखर व कुछ भाग को श्वेतांबर लोग इसी अपूर्ण भोयरों को संपूर्ण प्राचीन नष्ट किया होगा। इसी कारण इस नये मन्दिर का मंदिर बताते है और उसमें स्थित क्षेत्रपाल की एक वेदी निर्माण हुआ । अब प्रश्न यह उठता है कि यह कार्य कब पर श्री अंतरिक्षपाश्र्व प्रभू पश्चिमाभिमुख विराजमान थे, बना ? ऐसा कहते है । यह उनका कथन झूठा और काल्पनिक है ऊपर के विवेचन से इतना तो स्पष्ट हुअा कि इस नये इसके तीन कारण है मन्दिर का पुनर्गठन औरंगजेब की सवारी के बाद ही हुआ (१) श्रीपाल एक राजा मूर्ति को एलिचपूर ले जा है। औरगजेब की मृत्यु ई० सन् १७०७ में हुई। अतः रहा था, याने इस मूर्ति का मुख पूरब के तरफ ही होगा। इसके पहले इस मन्दिर का निर्माण नही हो सकता। (२) मूर्ति जगह से नही हटी यानी मूर्ति पर ही मन्दिर श्वेताम्बर लोग वि. स. १७१५ यानी ई. सन् १६५८वाँधा गया। (३) तब मृति के नीचे से अश्व सवार जाता ५६ मे इस मन्दिर का निर्माण और प्रतिष्ठा बताते है। था इतनी वह ऊँची थी। यानी जमीन से ऊपर का छत ऊपर के विवेचन से यह काल निश्चित ही भ्रामक सिद्ध कम से कम (जमीन से मूति की ऊचाई ८+ मूर्ति की होता है। सच तो यह है कि उनके जिस साहित्य में ऊँचाई ३॥+ मूर्ति से छत की ऊँचाई ३॥१६') १६ इसका उल्लेख है वह साहित्य ही पूरा काल्पनिक है । और फिट ऊँचा होना ही चाहिए। आज इस भोयरे की ऊंचाई किसी आधुनिक अनभिज्ञ व्यक्ति ने बनाकर प्राचीन भावसिर्फ ७ फुट ही है। इतने बड़े और सातिशय प्रतिमा के विजय के नाम पर प्रकाशित किया है। लिए आज है इतना ही छोटा (भोयरा) मन्दिर निर्माण दूसरा कारण ऐसा है कि पवली मन्दिर के बाहरी करना उचित नही लगता। खुदाई मे शिलालेख-स्तम्भ प्राप्त हुआ है उससे यह स्पष्ट अतः यह स्थान अधिक ऊँचा तथा बडा ही होगा। हुया कि, विक्रम संवत् १८११ ई. स. १७५४-५५ में उस इसके पश्चिम दिशा में अधिक जगह होगी। वहा त्रिलोकी मन्दिर का जीणोद्धार हो गया था। इसके कुछ साल बाद नाथ के लिये निदान ८ फुट ऊंचाई पर पूर्वाभिमुख वेदी फिर इस पर आक्रमण हुआ, जिसमे यह शील स्तम्भ बनाई गयी होगी। अथवा प्रतिमा के दोनो बाजू ८ फुट जहाँ लगा हुआ था वह सामने का सभामडप यानी मन्दिर ऊचाई पर ऐसे स्थान बनाये होगे जहा खडे होकर भगवान का दशनी भाग नष्ट किया गया। शायद इस समय में ही का अभिषेक पूजन कर सके । वेदी की ऊंचाई ८ फुट । बस्ती मन्दिर पर भी कुछ आघात हुआ होगा। जिस बताने का कारण यह है कि १४वी सदी से ऐसे साहित्य कारण यह प्राचीन मन्दिर नष्ट किया गया उस पर चक्र मे उल्लेख मिलते है कि-'मूर्ति उस समय सिर्फ एक का भव नष्ट होने मे या राज्य में स्थिरता शाति आने मे अगुल ही अधर थी। इसका कारण कलियुग है।' तबसे ४०-५० साल और भी निकल सकते है। क्योकि ऐसे यह मूर्ति आज तक एक अगुल ही अधर है। और ८ फुट समय पर तो लोगो द्वारा मूर्ति कूप मे डालने का या जमीन ऊंची वेदी पर खडा होने के लिए छत निदान ७ फुट ऊँचा म रख दनक अनक उल्लेख मिलत ह । खुद यहा क पवला रखना पड़ता ही है। मन्दिर मे ई. सन् १७५५ की प्रतिष्ठित मूर्ति हाल ही में इसी कारण से आज है उतना ही पूरा मन्दिर पहले जमीन की खुदाई में प्राप्त हुई है। अतः ऐसे स्थान पर से होगा इस मत का समर्थन नहीं होता। निदाम ई० सम् १७५५ के पहले इस नये मन्दिर का निर्माण कदापि शक्य नहीं है। तब यह नया मंदिर कब और कैसा हमा? पुराने मन्दिर से नया मन्दिर क्यो बना इसके प्रायः १. ई० सन् १९६४ मे जब मन्दिर के चौक के नीचे का दो कारण जान पड़ते है-(१) मन्दिर पुराना यानी भाग अन्दर से खोदकर देखा गया तब वह जगह जीर्ण होना तथा (२) जब औरंगजेब का सरदार यहाँ पोकल जान पड़ी तथा इस जगह दिगम्बर जैन प्रतिमा पाया था तब उसने जैसा पच परमेष्टी के मूर्ति को भ्रष्ट के खंडित अवशेष प्राप्त हुए थे।
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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