SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान् महावीर और बुद्ध का परिनिर्वाण १६१ सिद्धि नामक उनतीसा मुहूर्त१ था। उस समय स्वाति करेगा।" नक्षत्र के साथ चन्द्र का योग था। शक्र द्वारा प्रायु-वृद्धि को प्रार्थना प्रश्न चर्चाएं जब महावीर के परिनिर्वाण का अन्तिम समय निकट भगवान महावीर की यह मन्तिम देशना सोलह प्रहर प्राया, इन्द्र का प्रासन प्रकम्पित हमा। देवो के परिवार को थी२ । भगवान् छट्ठ-भक्त से उपोसित थे३ । देशना से वह वहा पाया। उसने प्रथपूरित नेत्रो से महावीर को के अन्तर्गत अनेक प्रश्न-चर्चाएं हुई। राजा पुण्यपाल ने निवेदन किया-"भगवन् ! अापके गर्भ, जन्म, दीक्षा अपने ८ स्वप्नों का फल पूछा। उत्तर सुनकर संसार से और कैवल्यज्ञान में हस्तोत्तरा नज्ञत्र था। इस समय उसमें विरक्त हा और दीक्षित हुमा४। हस्तिपाल राजा भी भस्म-ग्रह सक्रान्त होने वाला है। प्रापके जन्म-नक्षत्र में प्रतिबोध पाकर दीक्षित हुआ। पाकर वह ग्रह दो सहस्र वर्षों तक भापके संघीय प्रभाव इन्द्रभूति गौतम ने पूछा-"भगवन् ! आपके परि- के उत्तरोत्तर विकास मे बहुत बाधक होगा दो सहस्र वर्षों निर्वाण के पश्चात् पांचवा आरा कब लगेगा ?" भगवान् के पश्चात् जब वह अापके जन्म-नक्षत्र से पृथक होगा, ने उत्तर दिया-"तीन वर्ष साढ़े पाठ मास बीतने पर।" तब श्रमणों का, निर्ग्रन्थो का उत्तरोत्तर पूजा-सत्कार गौतम के प्रश्न पर पागामी उत्सपिणी काल मे होने वाले बढेगा । अत: जब तक वह आपके जन्म-नक्षत्र में संक्रमण तीर्थकर, वासुदेव, बलदेव, कुलकर आदि का भी नाम- कर रहा है, तब तक आप अपने प्रायुष्य बल को स्थित ग्राह भगवान् ने परिचय दिया। रखे । अापके साक्षात् प्रभाव से वह सर्वथा निष्फल हो गणधर सुधर्मा ने पूछा-"भगवन् ! कैवल्य-रूप सूर्य जायेगा।" इस अनुरोध पर भगवान् ने कहा-'शक! कब तक अस्तंगत होगा?" भगवान् ने कहा-"मेरे से आयुष्य कभी बढाया नहीं जा सकता। ऐसा न कभी बारह वर्ष पश्चात् गौतम सिद्ध-गति को प्राप्त होगा, मेरे हमा है, न कभी होगा। दुपमा काल के प्रभाव से मेरे से बीस वर्ष पश्चात् तुम सिद्ध-गति प्राप्त करोगे, मेरे से शासन मे बाधा तो होगी ।" चौसठ वर्ष पश्चात् दूसरा शिष्य जम्बू अनगार सिद्ध-गति औ को प्राप्त करेगा। वही अन्तिम केवली होगा। जम्बू के उसी दिन भगवान महावीर ने अपने प्रथम गणधर पश्चात् क्रमशः प्रभव, शय्यम्भव, यशाभद्र, सभूति विजय, इन्द्रभूति गौतम को देवशर्मा ब्राह्मण को प्रतिबोध देने के भद्रबाहु, स्थूलभद्र चतुर्दश पूर्वधर होंगे । इनमे से शय्यम्भव लिए अन्यत्र भेज दिया। अपने अन्तेवासी शिष्य को दूर पूर्व-ज्ञान के माधार पर दशवकालिक प्रागम की रचना भेजने का कारण यह था कि मृत्यु के समय वह अधिक १. संवत्सर, मास, पक्ष, दिन, रात्रि, महत्तं : इनके सह-विह्वन न हो। इन्द्रभूति ने देवशर्मा को प्रतिबोष समग्र नामों के लिए देखें; कल्पसूत्र, कल्पार्थबोधिनी, ५. सौभाग्यपञ्चम्यादि पर्व कथा संग्रह, पत्र १०६; इस पत्र ११३। टीकाकार ने इन समन नामो को 'जन ग्रन्थ के रचयिता ने महावीर की इस भविष्यवाणी शैली' कहकर अभिहित किया है। को क्रमश. हेमचन्द्राचार्य तक पहुँचा दिया है। २. षोडश प्रहरान् यावद् देशनां दत्तवान् ६. "जिनेश ! तव जन्मर्श गन्ता भस्मकदुग्रहः । -सौभाग्यपञ्चम्यादि पर्व कथा सग्रह, पत्र १००%, बाधिष्यते स वर्षाणा, सहस्रं तु शासनम् ॥ ख. सोलस प्रहराइ देसणं करेइ तस्य सङ्क्रामणं पावदिवलम्बस्व तत: प्रभो। -विविधतीर्थकल्प, पृ० ३६ भवत्प्रभाप्रभावेण, स यथा विफलो भवेत् ।। ३. कल्पसूत्र; १४७; नेमिचन्द्रकृत महावीर चरित्र, स्वाम्यूचे शक ! केनाऽपि नायु सन्धीयते क्वचित् ।। पत्र, दुषमाभावतो बाधा, भाविनी मम शासने ।। ४. सौभाग्यपञ्चम्यादि पर्व कथा संग्रह, पत्र १००.१०२ -कल्पसूत्र, कल्पार्थबोधिनी, पत्र १२१
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy