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________________ अग्रवालों का जन संस्कृति में योगदान १७६ चिता चिता दुह विष, विदी अधिक सदीव । चरितार्थ होती है। ४५वी रचना पद संग्रह है, जिसमे चिन्ता चेतनिकों दहे, विता बहै निरजीव ॥ ३२३ भक्तिपूर्ण, भौपदेशिक और प्राध्यात्मिक सरस एब पूरन घट बोल नहीं, प्ररष भए छलकंत । सरल गीतो मे वस्तु तत्त्व का विवेचन है। गुनी गुमान करें महीं, निरगन मान करत॥" मागम विलास में भी अनेक रचनात्रों का संकलन है रचनाओं के नाम जिनमें से मुख्य ये है .-१. मागम शतक मे १५२ सर्वया १. उपदेश शतक (सं० १८५८) १२१ पद्य, हैं। अन्य कूटकर रचनाएं। २. प्रतिमा बहत्तरी दिल्ली में २. छहढाला (सं० १७५८), ३. सुखबोध पंचासिका ५२ रची गई ४६ १०, (स. १८८१), ३ विद्युत चोरकथा प०,४. धर्मपच्चीसी २७ प०, ५. तत्त्वसार भाषा ७६ ४० प०, ४. सनत्कुमार चक्रवर्ती की कथा ४७ ५०, प०, ६. दर्शन दशक ११ प०, ७. ज्ञानदेशक ११ प०, ५ दोहा ५०, ६ प्रकारादिक ५२ १०,७ वर्णद्वादशांग ८. द्रव्यादि चौबोल पच्चीसी २५५०, १. व्यसनत्याग ८. ज्ञान पच्चीसी, ६. जिनपूजाष्टक, १०. गणधर मारती पोडस १६ ५०, १०. सरधा चालीसी ४० ५०, ११. सुख ११. कालाष्टक, १२,४६, गुणजयमाला, १३. सघपच्चीसी, बत्तीसी ३२ १०, १२. विवेकवीसी २०५०, १३. भक्ति १४ सहज सिद्ध अष्टक, १५. देवशास्त्र गुरु की प्रारती, दशक सबैया ३१ सा. १०२५०, १४. धर्मरहस्यबावनी और अन्य स्फुट रचनाएं। (तेइसा सवैया) ५२ ५०, १५. चारसौ जीव समाम ३२ दशलक्षण पूजा, सोलहकारण पूजा, नन्दीश्वर पूजा, प०, १६. दशस्थान चौबीसी ३० प०, १७ व्योहार पंचमेरु, देव शास्त्र-गुरुपूजा, सिद्धपूजा, वीम विरहमान पच्चीसी २६ प०, १८. पारती दशक, १६. दशबोल पूजा और रत्नत्रय पूजा अादि । पूजाएं प्राय: प्रकाशित पच्चीसी २५ प०, २०. जिनगुण माल सप्तमी ३१ सा, हो चुकी है। किन्तु पागम विलास की अन्य सभी रच. २१. समाधिमरण १०प०, २२. पालोचना पाठ ६५०, नाएं अभी अप्रकाशित है। इस ग्रथतालिका पर से सहज २३. एकीभावोस्त्र भापा २६. १०, २४. स्वयभूस्तोत्र भाषा ही जाना जा सकता है कि कविवर द्यानतराय ने हिन्दी २५ १०, २५. पाश्र्वनाथ स्तवन १० १०, २६. तिथि भापा की कितनी अधिक सेवा की है। रचनायो को दो पोडशी १८ प०, २७. स्तुति वारसी १२ १०, २८ यति भागों में विभाजित किया जा सकता है। भक्तिपूर्ण प्रोपभवनाष्टक ६०, २६. सज्जनगुणदशक ११-३१ सा., देशिक प्राध्यात्मिक और कथा जीवन चरितात्मक । गीतो ३०. वर्तमानवीसीदशक १०प०, ३१. अध्यात्म पचा. या पदो को तीनो विभागो में रखा जा सकता है। सिका ५० ५०, ३२. अक्षरवावनी १५ ५०, ३३. नेमिनाथ तेरहवें कवि दरिगहमल्ल है। जो वत्स देशान्तर्गत बहत्तरी ७२ ५०, ३४. वजदन्तकथा ११ प०, ३५. पाठ सहजादपुर के निवासी थे, जो गंगा के तट पर वसा हुमा गण छन्द ११ १०, ६६. धर्मचाहगीत ८५०, ३७. प्रादि- था१, इनकी जाति अग्रवाल और गोत्र 'गर्ग' था। यह नाथ स्तुति ३६ प०, शिक्षा पचासिका ५० ५०, काष्ठासघ माथुरगच्छ पुष्करगण के भट्टारक कुमारसेन ३८. जुगल प्रारती २० प०, ३६. वैराग्य छत्तीसी की प्राम्नाय के विद्वान थे, और मेठ सुदर्शन के समान ३६ प०, ४०. वाणी सख्या ११२ पद्य, ४१. पल्ल- दृढ व्रती थे। इनके पुत्र का नाम विनोदीलाल था । कवि पच्चीसी २५ १०, ४२. पटगुणी हानि वृद्धिवीसी दरिगह मल के बनाये हुए अनेक पद और जबड़ी प्रादि २. प०,४३. पुरण पचासिका ५५ १०. सब रचनाए हैं, जो स्व-पर-सम्बोधक हैं। जकडी में अपने को सम्बोधित 'धर्मविलास' में प्रकाशित हो चुकी है। ४४. चर्चाशतक १ प्रस्तुत सहजादपुर प्रयाग या इलाहाबाद के पास गगा हिन्दी की महत्वपूर्ण कृति है जिसमे सैद्धान्तिक चर्चापो नदी के तट पर बसा हमा था। वहा अग्रवाल को पद्यों मे अंकित किया हुआ है। जो कण्ठ करने योग्य श्रावकों के अनेक घर थे, जिन मन्दिर था। १७वी है। इससे गूढ विषयो का भी सक्षेप मे परिचय मिल शताब्दी के कवि भगवतीदास अग्रवाल ने वहा ठहर जाता है। इसमे गागर मे सागर भर देने की नीति कर अनेक रचना रचीएं थी।
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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