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________________ १४ भनेकान्त मदिर तक भी न जा सकी । ज्योतिषी लोगों से राजाको यह पहले का तो निश्चित है।" हाल मालूम पडा कि यह मूर्ति राजा के मंदिर मे न प्रवेश (४) श्री रायब. हीरालाल जी-डिस्क्रिप्सन प्रॉफ करेगी तो राजा वैसा ही एलिचपुर गया। (देखो श्लोक...) लिस्ट प्रॉफ इंस्क्रिप्सन इन सी. पी. एंड वेरार १६१६ की ___इस पर से यह तो स्पष्ट है कि राजा के मदिर मे किताब मे सफा १३४ मे लिखते है-"यह अंतरिक्ष पार्श्वमूर्ति ने प्रवेश नही किया इसलिए राजा के एलिचपुर चले नाथ मदिर दिगबर जैनो का है। उस पर के शिलालेख जाने पर श्रावकों ने ही बस्ती में मदिर बधाया। आश्चर्य यह में 'अतरिक्ष पाश्वनाथ का और मदिर बांधनेवाले 'जगहै कि इसमें या अन्य दिगम्बर साहित्य मे दो मदिर और मिह' (जर्यासह) का उल्लेख पाता है।" गुरु का कोई उल्लेख नही है। श्वेताबरों के भी किसी इसी तरह इस मदिर को दिगंबर जैनो का प्रमाणित साहित्य में१ इस मूर्ति के लिए दो मदिर या किसी गुरु का करने वाले नीचे के चार प्रथ है । उल्लेख नही है। इसीलिए ईल राजा ने मूर्ति की स्थापना (५) गवर्नमेंट आफ बाम्बे जनरल डिपार्टमेंट प्राचियाकहां की थी-इस बाबत शका किसी को प्राती है। कोई लोजिकल प्रोग्रेस रिपोर्ट आफ दि प्राचियालोजिकल सर्वे कहते है कि राजा ने इसी पौली मदिर में उस मूर्ति की प्राफ वेस्टर्न इंडिया फार दि इयर एडिग ३० जून १६०२ । स्थापना की थी और वह मुगलो के प्राक्रमण के समय गाव (६) अकोला डि० गजेटियर वोलूम न० १ में लाकर प्रतिष्ठित की होगी। इस प्रकार मानने से किसी (७) मेट्रल प्रोविन्सेस एंड वेरार डिस्ट्रिक्ट गजेटियर गुरु को भी बुलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। अकोला डिस्ट्रिक्ट वोलूम ८ डिस्ट्रिक्टिव बाय-सी. ब्राऊन कोई कहते है राजा के मदिर मे मूर्ति ने प्रवेश नही पाय-सी. यस्. एड ए. ई. निलेन आय सी. यस्. जनरल किया इसलिए बस्ती में दूसरा मदिर बघाया गया। और एडोटर एड सुपरिटे डेट आफ गजेटियर्स । तथा जैसे पूजा-प्रतिष्ठा महोत्सव प्रसग में चतुर्विध संघ को (८) इपोरियल गजेटियर्स ग्राफ इंडिया वालूम २३ । मामंत्रित करने की पहले से प्रथा तो है ही, उसमे इस सातिशय मूर्ति की स्थापना किसी त्यागी के हाथ से करने (8) श्री गठी जज (वाशीम)--इस पौली मदिर की भावना होना स्वाभाविक है। सवाल यही है कि के खेत के केश के जन्मेट में लिखते है-"यह ऊपर की के खन के केश । जिस हेतु से गुरु महाराज को बुलाया गया वह हेतु सफल चारो किताबे स्पष्ट करती है कि पौली मदिर अति प्राचीन नही हुआ और दूसरा मदिर बाधना ही पड़ा। साथ मे वे है, तथा दिगबर जैनो का है। दी इपीरियल गजेटियर थे इसलिए उनके तत्वावधान में प्रतिष्ठा हई होगी, अन्यथा इसके भी आगे जाकर बताता है कि शिरपुर का अंतरिक्ष वह किसी के हाथ से तो हो ही जाती। इस प्रकार उस पार्श्वनाथ बस्ती मदिर भी दिगबर जैनो का है।" प्रसंग को खास महत्त्व न देकर किसी ने यदि वह घटना (१०) श्री यादव माधव काले-'व-हाडचा इतिहास' नही बताई तो उसका मतलब वह घटना ही नहीं घटी, पृष्ठ ७० पर लिखते हैं-"इलिचपुर को इलावतं कहते ऐसा नहीं होता। है। यहां ईल नरेश राज्य करता था। वह जैनधर्मी होकर (३) मि० कोझिन साहेब "प्रोग्रेस रिपोर्ट १६०२ महान पराक्रमी था। इसका प्रभल एलोरा तक था। इसने पृष्ठ ३ पर लिखते है-"श्री अंतरिक्ष पाश्र्वनाथ मदिर णाह दुल्हा रहिमान गाजी का प"भव किया। (तथा पृ० दिगबर जनों का है। उस पर सस्कृत मे एक शिलालेख ३०४ पर) जैनधर्मी इमारती-एक दफे बहाड पर ई० स० १४०६ का है। लेकिन वह मंदिर इससे सौ साल जैन राजा का प्रभल था। उससे वहाड में जैनधर्मी मंदिर विविजय जी की जो रचना बतायी जातीवर भी बहुत हैं। उनमे सातपुडा में मुक्तागिरी के धबधबा के कृत्रिम है। वह शायद ऊपर निदिष्ट गाविनतीको पास का मंदिर तथा शिरपुर का जैन मंदिर प्रसिद्ध है। नकल है। उसमें जो काल बताया है वह एकदम (११) मि. फर्ग्युसन साहेब-हिस्ट्री माफ इंडियन गलत है और कुछ घटना भी कपोलकल्पित है। ईस्टर्न चिटेक्चर इस किताब में लिखते है-“एलिच
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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