SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथ पौली मंदिर, शिरपुर का उल्लेख मिलता है। अगर यह मंदिर दमवीं सदी के तो भी उस मंदिर के ऊपर शिखर नहीं है। ईल राजा ने ही बंधाया है तो उस पर १४वी या १५वी ऐसा लगता है कि बरतीके मदिर की पच परमेष्ठी की सदी और जयसिंह चालुक्य (अन्तिम ई० स० १३०४) पाषाण की बड़ी प्रतिमा औरंगजेब के जिस सरदार ने का उल्लेख कैसा? यह लेख पढ़ने वाले कुछ पाश्चात्य खडित की उसी सरदार ने इस मंदिर का दर्शनीय भाग को विद्वान कहते हैं कि-'इस लेख की खुदाई के कम से कम नष्ट कर मदिरके विध्वंस की चेष्टा की होगी । बाद में श्री सौ साल पहले यह मंदिर बाधा गया होगा। जिनसेन जी भट्टारक महाराज ने यहाँ प्रपना लम्बा जीवन सानोमा खटाया होगामा (ई० स० ...... तक) बिताया और इस मंदिर की चूना माकपा और ईटो से दुरुस्ती की। इसको भी मधूरा जान कर करने का प्रयत्न उस समय हुना होगा और वैसा उन्लेख भट्टारक श्री पद्मनन्दि के उपदेश से ई० स० १८२० के या 'जीर्णोद्धारक' ऐसा जयसिह का नाम होगा तो उचित दरम्यान महाद्वार की मरम्मत की गयी, इस मदिर के ही होगा। तथा मदिर के अन्दर गर्भागार के पास सभा- ऊपर फिर ईट और चूना से छत की गयी और शिखर मडप का काम देखने से ऐसा लगता है कि गर्भागार का बनाना प्रारम्भ किया । मदिर मे जहा-जहा गोल काम पहले ही किया गया होगा बाद में सभामंडप जुडाया गुम्मट की रचना की है वहा-वहां अगर शिखर बांधा जाता गया होगा। इसका कारण भी स्पष्ट है कि भगवान की तो यह मदिर छह शिखर वाला होता, और अभी भी पांच मूर्ति बाहर धूप मे थी। अत. जड से जमीन तक का और शिखर वाला बन सकता है। तो भी उस समय भी वहा मदिर का सम्पूर्ण तलकाम तो एकदम चालू किया गया एक भी शिखर पूर्ण न हो सका। आज भी वही हालत होगा मगर मूर्ति को जल्दी से जल्दी अन्दर विराजमान कायम है। करने की दृष्टि से पहले गर्भागार का काम कर लिया है समाधि :- इस मदिर के सामने ४ दिगबर जैनों की और बाद मे सभामडप जुड़ाया है। इस समय भगवान की समाधिया है-(१) भट्टारकजी श्री जिनसेन उर्फ कुबडे मूर्ति को यहा लाने का प्रयत्न किया गया, लेकिन वह स्वामी (२) भट्टारक श्री शांतिसेन महाराज (३) पं० अपने ही स्थान पर स्थिर रहने से बस्ती में उमी स्थान जीतमलजी (४) ५० गोविद बापुजी। पर एक नया मदिर बाधा गया। इम मदिर बावत साहित्यिक उल्लेख तथा लोकमतइस तरह गांव मे दूसरा मदिर बनने से इम मंदिर के इस बाबत सबसे प्राचीन उल्लेख 'गुरु नती' में मिलता तरफ स्वभावत: दुर्लक्ष हो गया और ई० स० १०२० के है। उसमें लिखा हैदरम्यान शाह अब्दुल रहमान गाजी के साथ ईल राजा का "विवादि भूतवाद हि त्यक्त्वा श्री जिलयम् । युद्ध हो गया। बाद में कुछ दिन के भीतर ही राजा का नुतनं विरचय्यासौ दक्षिणापथगावभत ॥" पच पिगे द्वारा खून हो गया। इससे इस क्षेत्र को मिला श्री मलधारि पद्मप्रभदेव प्राचार्य जब श्रीपुर बुलाये हुप्रा राजाश्रय बन्द हुप्रा । शायद चालुक्य राजा जयसिह गये, तब उन्होंने इस मदिर मम्बन्धी वाद को जानकर मूर्ति (द्वितीय वा तृतीय) इन्होने इस मदिर को पूरा करने के जहा रुकी थी वहा ही नया मदिर बघाया। उस समय लिए मदद दी होगी। इसीलिए उनका नाम उस मदिर के दूसग मदिर निर्माण होने से पहला यह मदिर अधूरा रह शिलालेखो में मिलता है। गया हो तो प्राश्चयं नहीं। यद्यपि उस समय भी यह मदिर शिखर बन्द न हो (२) भट्टारक श्री महीचद्र जी (स. १६७४) श्री सका तो भी उसका काम बहुत कुछ हो गया था। या यो अ. पा० विनती मे लिखते है-"राजा को प्रतिमा का कहिए कि उस समय शिखर विरहित भी जिनमदिर बनते साक्षात्कार होने से राजा ने प्रथम मदिर का काम शुरु थे। जिन्तूर (जि. परभणी) के पास मे नेमगिरी करके किया। बाद में मूर्ति को कर प्राप्त उसे एलिचपुर ले एक अतिशय क्षेत्र है, वहां बड़े विशाल तीन जिनबिंब है जना चाहा । लेकिन वह वहा ही स्थिर होने से राजा के हा ।
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy