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________________ अनेकान्त महत्व साहित्यिक दृष्टि से ही नहीं अपितु ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी बहुत है। इस प्रकार, दशपुर अर्थात् मन्दसोर में जैनधर्म का प्रचार-प्रसार भगवान् महावीर के समय से रहा सिद्ध होता है। वहा प्राज भी जैन समाज का महत्त्वपूर्ण स्थान है। सिरिमाल वश वयश, मानिनी मानस हंस । सोनराप जीवन पुत्त, बहु पुत्त परिवार जुत्त ॥ सिरिमालिक माफरपट्टि, हय गय सुहड बहु चट्टि । बसपुरह नयर मझारि, सिरिसंघ तराई अधारि । सिरि शान्तिसूरि सुपमाई, दुइ दुरिय दूरि पलाई । ज किमवि अलियम सार, गुरु लहिय वर्ण विचार ।। कवि कविउ ईश्वरसूरि, तं खमउ बहुगुण भूरि । शशि रसु विक्रम काल, ए चरिय रचिउ रसाल ॥ ज ध्र व रवि ससि मेर, तं जयउ गच्छ संडेर ।' -प्रशस्ति । समरथ सहस धीर, श्री पातसाह निसीर । तसु रज्जि सकल प्रधान, गुरु रूक रयण निधान । हिन्दुमा राय बजीर, श्रीपुंज मयणह धीर । तृष्णा की विचित्रता जिस समय दीनताई थी उस समय जमीमारी पाने की इच्छा हुई, जब ज़मीदारी मिली तो सेठाई प्राप्त करने को इच्छा हुई । जब सेठाई प्राप्त हो गई तब मंत्री होने की इच्छा हुई, जब मंत्री हुमा तो राजा बनने की इच्छा हुई। जब राज्य मिला, तब देव बनने की इच्छा हुई, देव हुआ तब महादेव होने की इच्छा हुई। अहो रायचन्द्र वह यदि महादेव भी हो जाय तो भी तृष्णा तो बढती ही जाती है मरती नहीं, ऐसा मानो। मह पर झुरिया पड गई , गाल पिचक गए, काली केश की पट्टियां सफेद पड़ गई , संघने, सुनने और देखने की शक्तियां जाती रही और दातो की पक्तिया खिर गई अथवा घिस गई, कमर टेढ़ी हो गई, हाड-मास सूख गए, शरीर का रंग उड़ गया, उठने-बैठने की शक्ति जाती रही, और चलने में हाथ में लकड़ी का सहारा लेना पड़ गया। परे ! रायचन्द्र, इस तरह युवावस्था से हाथ धो बैठे, परन्तु फिर भी मन से यह रांड ममता नही मरी। करोड़ों के कर्ज का सिर पर डंका बज रहा है, शरीर सूख कर रोग रुध गया है। राजा भी पीड़ा देने के लिए मौका तक रहा है और पेट भी पूरी तरह से नहीं भरा जाता। उम पर पाता पिता और स्त्री अनेक प्रकार की उपाधि मचा रहे हैं। दु.खदायी पुत्र और पुत्री खाऊ खाऊं कर रहे है। अरे रायचन्द्र ! तो भी यह जीव उधेड बुन किया ही करता है और इससे तृष्णा को छोड़कर जंजाल नही छोड़ा जाता। नाड़ी क्षीण पड़ गई, अवाचक की तरह पर रहा, और जीवन-दीपक निस्तेज पड गया। एक भाई ने इसे अन्तिम अवस्था में पड़ा देखकर यह कहा, कि अब इस विचारे की मिट्टी ठंडी हो जाय तो ठीक है। इतने पर उस दुइ ने खीजकर हाथ को हिलाकर इशारे से कहा, कि हे मूर्ख चुप रह, तेरी चतुराई पर प्राग लगे। प्ररे रायचन्द्र ! देखो, देखो, यह प्राशा का पाश कैसा है ! मरते-मरते भी बुढ्ढे को ममता नही मरी। (श्री मद्राजचन्द्र से साभार)
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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