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________________ मन्दसोर में जनधर्म किया३३ । इसके पश्चात् मथुरा ग्रादि का भ्रमण करके ३४ कायक्रम३६ मे, सभव है ये पुनः दशपुर प्राये हों। दशपुर य एक बार पुन. दशपुर पाये ३५ और शेष जीवन भी में जैनधर्म का प्रचार मध्यकाल में भी अवश्य रहा होगा उन्होने कदाचित् वहीं व्यतीत किया। इस प्रकार दशपुर, पर उसके कोई उल्लेखनीय चित्र नहीं मिलते। '१५वी प्राचार्य प्रार्यरक्षित मूरि की जन्मभूमि ही नही बल्कि शताब्दि के माडवगढ के मन्त्री सम्राम सोनी के द्वारा यहा कर्मभूमि भी रही ३६ । जैन मन्दिर बनाने का उल्लेख प्राप्त है। "जैनतीर्थ सर्वद्वितीय शती ई० मे, जैन दर्शन और प्राचार के संग्रह" ग्रन्थ के अनुसार यहा के खलचीपुर के पार्श्वनाथ महान व्याख्याता आचार्य समन्तभद्र ने अपने विहार द्वारा मन्दिर की दीवार में लगी हुई द्वारपालो की प्रतिमा भी दशपुर को पवित्र किया था३७ । उन्होने स्वय लिखा गुप्तकालीन है और खानपुरा सदर बाजार के पाश्वनाथ है : 'काञ्ची में मैं नग्न (दिगम्बर साधु के रूप में) के घर देरासर (गृह मन्दिर) मे पपावती देवी की प्रतिमा विहार करता था और मेरा शरीर मल से मलिन रहा भी प्राचीन है। अत इस नगर में और उसके मातपास करता था। (बाद में भस्मक रोग को शान्त करने की जो भी श्वेताम्बर और दिगम्बर जैन मन्दिर है उन मन्दिरी इच्छा में) लाम्बुश पाकर मेने शरीर में भस्म रमा ली और मूतियो तथा खण्डहगे की खोज की जाना प्रत्यन्त (और शैव साधु का वेश धारण कर लिया)। पुण्डोण्ट प्रावश्यक है। मम्भव है उनमे कोई एमा लेख भी मिल मे मे बौद्ध भिक्षु के रूप में पहुँचा। दशपुर नगर में मै जाय जिसमें इस नगर के प्राचीन जैन इतिहास पर कुछ परिव्राजक बन बैठा और (वहा के भागवन मठ में) प्रकाश पड़ सके४० । ग० १६१८ (१५६१ ई.) मे, मिष्टान्न खाने लगा। वाराणसी पहुंच कर मैन चन्द्र. इसी नगर में साण्डे र गच्छ के ईश्वर सूरि ने 'ललिता किरणो के समान उज्ज्वल भस्म रमायी और (शैव) चरित' नामक रासो काव्य की रचना की थी४१। इसका माधु का कप धारण कर लिया। इतने पर भी मैं दिगम्बर वाराणस्यामभूव शशधरधवल. पाण्डुरा गस्तपस्वी जैनधर्म की वकालत करता हूं, हे गजन् (शिवकोटि)' गजन यस्यास्ति शक्ति म बदतु पुरतो जननिग्रंन्यवाद।। जिमकी हिम्मत हो वह मेरे सामने आये और शास्त्राथ कर ले३८ ।' अपने मालव और विदिशा के विहार के -परम्पराप्राप्त श्लोक ३६ पूव पाटलिपुत्रमध्यनगर भरी मया ताडिता ३३ इतश्च रक्षिताचायगंतर्दशपुर तत । पश्चान्मालव सिन्धुठक्कविषये काञ्चीपुरे वैदिशे । प्रव्राज्य स्वजनान् सर्वान् सौजन्य प्रकटीकृतम् ॥ प्राप्तोह करहाटक बहुभट विद्योत्कट सकट -वही, श्लोक १३६ । वादार्थी विचराम्यह नरपते शार्दलविक्रीडितम् ।। ३४. प्रथाय रक्षिताचार्या मथुरा नगरी गताः । -श्रवणबेल्गोल-शिलालेख, सख्या ५४ । -वही, श्लोक १७५ । ३५. अथान्यदा दशपर यान्तिस्म गुरव क्रमात् ।। ४०. नाहटा, अगर चन्द जैन साहित्य में वशपुर . दशपुर जनपद सस्कृति (सम्पादक . मांगीलाल मेहता, -वही, श्लोक १८६। ३६. अपन शिष्य विन्ध्य की प्रार्थना पर इनके द्वारा प्रकाशक प्राचार्य, बुनियादी प्रशिक्षण महाविद्यालय, किया गया अनुयोगों का विभाजन जन साहित्य के मन्दसोर), पृ० १२०-२१ । इतिहाम में तीसरी ग्रागमवाचना के रूप में प्रसिद्ध ४१ 'महि महति मालवदेस, हप्रा। धण कणय लच्छि निवेम। ३७. विस्तृत परिचय के लिए देखिए, मुख्तार ग्रा. धीजुगल तह नयर मण्डव दुग्ग, किगार । --स्वामी समन्तभद्र अहिनवउ जाण हि मग ॥ ३८. काच्या नग्नाट कोह मलमलिनतनुलाम्बुग पाण्डुपिण्ट तिहं अतुलबल गुणवन्त, पुण्डोण्ट्र शाक्यभिक्षुदंगपुरनगरे मिष्टभोजी परिवाट। श्रीग्यास मुत जयवन्त ।।
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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