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________________ गई। परन्तु ऊंचाई कहीं भी २० फुट से अधिक नहीं है। देदीप्यमान प्रतीकों, तीर्थकर पार्श्वनाथ की विशालकाय उत्तरी पश्चिमी कोने से एक दोवार ११ फुट मोटी है, मूर्तियों और प्रगणित अर्हन्तों की विचार प्रेरक मुद्रामों जो ६०० फुट तक पहाड़ी के किनारे चली गई है। वाले प्रतिबिम्ब उस वनस्थली की स्तब्ध शान्ति के मूक संभवतः यह दीवार दूसरे किले की हो, जो पब स्वर मे मानन्द-विभोर दिखाई देते हैं और कहीं चक्रेश्वरी, विनष्ट हो चुका है। पद्मावती, ज्वालामालिनी, सरस्वती प्रादि जिन शासनदेवगढ का यह स्थान कितना सुरम्य और चित्ता- रक्षिका देवियो की मुद्राएँ, अद्भुत भावप्रेरक भनेक देवियो कर्षक है, इसे बतलाने की आवश्यकता नहीं। वेत्रवती के अलकृत अवयव अपनी भाव-भंगियो से मानो सुषमा नदी के किनारे-किनारे दाहिनी तरफ मैदान अत्यन्त ढालू ही उड़ेल रहे हैं। हो गया है। पहाड़ की विकट घाटी में उक्त सरिता गुप्तकालीन मन्दिर सहसा पश्चिम की पोर मुड़ जाती है। वहाँ की प्राकृतिक किले के दक्षिण-पश्चिमी कोने पर वराह का प्राचीन सुषमा और कलात्मक सौन्दर्य दोनो ही अपनी अनुपम मन्दिर खडितावास्था में मौजूद है। उसके निर्माण के छटा प्रदर्शित करते हैं। वहाँ दर्शकों को वैभव की असा- सम्बन्ध मे निश्चित कुछ भी नहीं कहा जा सकता। रता के स्पष्ट दर्शन होते हैं, जो स्पष्ट सूचित कर रहे हैं नीचे के मैदान में गुप्तकालीन विष्णु मन्दिर बना हुआ कि-हे पामर नर ! तू वैभव के महकार मे इतना क्यो है, यह पूर्णरूप से सुरक्षित है । भारतीय कलाविद इसके इठला रहा है ? एक समय था जब हम भी गर्व मे इठला कारण ही देवगढ से परिचित है। यह मन्दिर गुप्तकाल रहे थे। उस समय हमे भावी परिवर्तनो का कोई प्राभास के बाद किसी समय बना है । कहा जाता है कि गुप्तकाल नही था, किन्तु दुर्दैव के कारण हमारी यह अवनत में मन्दिरो के शिखर नही बनाये जाते थे, परन्तु इसमे अवस्था हुई है। प्रतः तू अब भी समझ और साव- शिखर होने के चिह्न मौजूद हैं। मालूम होता है कि धान हो। इसका शिखर खण्डित हो गया है। यह मदिर जिन विन्ध्य पर्वत माला की सघन वनाच्छादित सुरम्य पाषाण खण्डो से बना है, वे अत्यन्त कलापूर्ण और सुन्दर उपस्थली में यह पुण्य क्षेत्र जीवन दायिनी सलिला वेत्र हैं । इस मन्दिर की कला के सम्बन्ध में प्रसिद्ध ऐतिबती से सटी हुई डेढ़-दो मील लम्बी पहाड़ी के ऊपर एक हासिक विद्वान् स्मिथ साहब कहते हैं कि देवगढ़ में गुप्तचौकोर लम्बे मैदान के भाग में फैला हुमा पग-पग पर काल का सबसे अधिक महत्वपूर्ण और प्राकर्षक स्थापत्य मनुपम सास्कृतिक जीवन-कला की विभूनियों के मन न है वह देवगढ़ के पत्थर का बना हुमा एक छोटा-सा मदिर मोहक दृश्य उपस्थित करता है। जिसमे तल्लीन होकर : है, यह ईसा की छठी अथवा पाचवी शताब्दी का बना हमा एक बार दर्शक हर्ष विषाद, सूख-दु.ख, मोह-मत्सर, और है। इस मन्दिर की दीवारों पर जो प्रस्तर फलक लगे हैं काम प्रादि के संस्कार रूपी बन्धनों से मुक्त होकर प्रकृति उनमे भारतीय मूर्तिकला के कुछ बहुत ही बढ़िया नमूने की गोद में विलीन सा हो जाता है, और अपने सारे अंकित है। अहंकारमय ऐहिक अस्तित्व को भूलकर अपने आपको १, देखो, भारतीय पुरातत्व की रिपोट दयाराम साहनी न्यूनतम से न्यूनतम रजकण से भी तुच्छ पाता है। 2. The most important and interesting store अशान्त मूर्तियां, वेदिका, स्तम्भ, तोरण, दीवारे और temple of Gupta age is one of moderate अन्य कलात्मक अलकरण, जो यशस्वी शिल्पियों द्वारा dimensions at Deogarh. Which may be चमत्कारपूर्ण सामग्री निर्मित की गई है वह अपनी मूक assigned to the first half of Sixth or प्रेरणा द्वारा भिन्न-भिन्न विचार-मुद्रामों में प्राध्यात्मिक Perhaps to the fifth century. The Panels जीवन की झांकी का सन्देश प्रस्तुत करती है। कहीं of the walls contain some of the finest चमत्कारिक मूर्ति-निर्माणकला के छिटकते हुए सौन्दर्य से Specimens of Indian Sculpture.
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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