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________________ मध्य भारत का बैन पुरातत्व जिन पर खुदाई की कारीगरी पाई जाती हैं। राजपाटी के किनारे पाठ पंक्तियों का छोटा सा सं० ११५४ का एक लेख उत्कीर्ण है? जिसे चंदेल वंशी राजा कीर्ति वर्मा के प्रधान प्रमात्य वत्सराज ने खुदवाया था । यह बड़ा विद्वान् और पराक्रमी था, इसने अपने शत्रुओं से इस प्रदेश-मंडल को जीता था और इस दुर्ग का नाम 'कातिगिरि रक्खा था । कीर्तिवर्मा चंदेल वंश का प्रतापी शासक था मौर यात्रु कुल को दलित करने वाला योद्धा था, जैसा कि प्रबोधचन्द्रोदय नाटक के निम्न पद्म से प्रकट है : नीता क्षयं क्षितिभुजो नृपतेविपक्षा रक्षावती मितिरमतिरमार्थ । साम्राज्य मध्य विहितं शितिपालमौलि मालाचितं भूविषथे निधि मेलाम् ॥३ दूसरी नाहर घाटी के किनारे भी एक छोटा ७ पंक्तियों का अभिलेख अंकित है। यहाँ एक गुफा है, जिसे सिद्ध गुफा कहा जाता है । यह भी पहाड़ में खुदी हुई है, जिसका मार्ग पगढ़ पर से नीचे जाता है, इसके तीन २. चांदेल्लवश कुमुदेन्दु विशालकीर्तिः, स्पातो बभ्रुव नृपसंचनतांघ्रिपद्यः विद्याधरो नरपति: कमला निवासो, जातस्ततो विजयपालनृपो भूपेन्द्रः ॥ सरमाढमं परः श्रीमान् कीर्तिवर्मनृपोऽभवत् । यस्य कीर्तिसुधा शुभ्रत्रैलोक्यं सौधतामगात् ॥ धगदं नूतनं विष्णुमाविर्भूनमवाप्ययम् । नृपाधि तस्समाकृष्टा श्रीरस्थंयंप्रमार्जयत् ॥ राजो मध्यगतचन्द्रनिभस्य यम्य, नूनं युधिष्ठिर सदा "शिव रामचन्द्र । एते प्रसन्न गुणरत्ननिधौ निविष्टा, यत्तद् गुण प्रकर रत्नमये शरीरे ॥ तदीयामात्यमन्त्रीन्द्रो रमणीपूरविनिर्गतः । वत्सराजेति विख्यातः श्रीमान्महीधरात्मजः ॥ ख्यातो बभूवकिल मन्त्र पर्दकमात्रे, वाचस्पतिस्तदिह मन्त्रमुर्णरुभःस्याम् ॥ योऽयं समस्तमपिमन्डलमाशुशत्रोराज्य कीर्तिगिरिदुर्गमिद व्यपत्त ॥ श्री वत्सराज घट्टोयं नूनं ते नात्र कारितः । ब्रह्माण्डमुज्वलं कीति प्रारोहयतु मात्मनः ।। सं० १९९४ दि २पी (देवगढ़ शिलालेख) 22 द्वार है" दो बंगों पर छत भी प्रचस्थित है इस गुफा के अन्दर भी गुप्त समय का छोटा-सा लेख अंकित है, जो सं० २०८ सन् ५५२ का बतलाया जाता है। इसमें सूर्य वंशी स्वामी भट्ट का उल्लेख है । यह लेख गुप्त कालीन है। एक दूसरा भी लेख है जिसमें लिखा है कि राजा वीर मे सं० १३४२ में कुरार को जीता था। इस सब कथन पर से जाना जाता है कि इसका देवगढ़ नाम विक्रम की १२वीं शताब्दी के अन्त में या १३वीं के प्रारम्भ में किसी समय हुआ है । यह स्थल अनेक राजाओं के राज्यकाल में प्रबस्थित रहा है। इस प्रान्तमें पहले सहरियों का राज्य था। पश्चात् गौड़ राजाच ने अधिकार कर लिया था। गोडों को पराजित कर देवगढ़ पर गुप्तवंशीय राजाओंों का अधिकार हो गया, इस वंश के स्कन्दगुप्त आदि कई राजाओं के शिलालेख अब तक देवगढ़ में पाये जाते हैं। इनके बाद कन्नौज के भोजयंती राजाधों ने इस प्रान्त को विजित किया था। इसके पश्चात् चंदेलवशी राजाओं का इस पर स्वामित्व रहा । सन् १२९४ ई० में यह विशाल नगर था । उस समय यह बहुत सुन्दर और सूर्य के प्रकाश के समान देदीम्यमान था। इसी वंश ने दतिया के किले का निर्माण कराया था । ललितपुर के पास-पास इस वंश के घनेक लेख उपलब्ध होते हैं। इस वंश को राजधानी महोबा थी । इनके समय जंनधर्म को पल्लवित होने का प्रच्छा प्रव सर मिला था । इस वंश के शासन- समय की अनेक कलाकृतियाँ, मन्दिर भोर जंन मूर्तियाँ महोबा, महार, टीकमगढ़, मदनपुर, नावई और जलोरा मादि स्थानों पर पाई जाती हैं। महाराजा सिम्बिया की ओर से कर्नल बैपटिस्टी फ़िलोज ने सन् २०११ में देवगढ़ पर चढ़ाई की थी। उसने तीन दिन बराबर लड़कर उस पर अधिकार कर लिया। चंदेरी के बदले में महाराज सिन्धिया ने देवगढ़ हिन्द-सरकार को दे दिया था। हो सकता है कि किले की दीवार चंदेल वंशी राजाओं ने बनवाई हो, परन्तु यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। उसकी मोटाई १५ फुट की है जो बिना सीमेन्ट के केवल पाषाण से बनी हुई है। नदी की घोर की हद बंदी की दीवाल बनी होगी, तो वह गिर गई होगी, या फिर बनवाई ही नहीं
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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