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________________ 'जसहर चरिउ' की एक कलात्मक सचित्र पाण्डुलिपि डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल एम. ए. पी-एच. डी. राजस्थान के 'जैन ग्रन्थ संग्रहालय' साहित्य एवं कला खूब लिखा है और अच्छा लिखा है। अपभ्रंश में इनके के महत्वपूर्ण भण्डार हैं। जो कुछ भारतीय साहित्य' जीवन पर सर्व प्रथम लिखने वाले 'महाकवि पुष्पदन्न' थे एवं विशेषतः जैन साहित्य सुरक्षित रह सका है। जो दसवीं शताब्दी के विद्वान थे। 'पुष्पदन्त' ने 'जसहर उसमें राजस्थान के इन संग्रहालयों का विशेष चरित' लिखकर यशोधर के जीवन को पौर भी लोकप्रिय योग है। इस प्रदेश की भूमि साहित्य सेवियों को बनाने में योग दिया। कवि की यह कृति भी अत्यधिक जन्म देने में सदा उर्वरक रही है। आज भी इस जनप्रिय रही और यही कारण है कि राजस्थान के जैन प्रदेश में १५० से भी अधिक जैन ग्रन्थ भण्डार है, ग्रन्थ भण्डारों में इसकी पचासों प्रतियाँ उपलब्ध होती जिनमे प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, हिन्दी एवं राजस्थानी हैं। भाषा की महत्वपूर्ण एवं प्राचीनतम पाण्डुलिपियो का 'जसहर चरिउ' एक खण्डकाव्य है-जो चार सन्धियों संग्रह उपलब्ध है। ये सभी भण्डार साहित्यकारों के लिए में विभक्त है। कवि ने इसे अपभ्रंश के सर्वाधिक प्रिय हैं। जिनकी यात्रा किये बिना कोई भी विद्वान जैन कड़वक एवं पत्ता छन्दों में निबद्ध किया है। संधि के साहित्य के अन्तस्तल तक नहीं पहुंच सकता। वास्तव में इन अनुसार काव्य में इन छन्दों की संख्या निम्न प्रकार हैग्रन्थ-भण्डारी में साहित्य की अमूल्य निधियां निहित है। प्रथम सन्धि-२६ कड़वक । साहित्यिक पाण्डुलिपियो के अतिरिक्त इन भण्डारी द्वितीय संधि-३७ कड़वक-महाराज यशोधर के में कलात्मक एवं सचित्र प्रतियों का भी अच्छा संग्रह है। भवांतरों का वर्णन । श्रावक एवं साधुवर्ग दोनों ने ही सचित्र प्रन्थों को लिखने तृतीय संधि-४१ कड़वक महाराज यशोधर के लिखवाने एवं संग्रह करने में अपनी विशेष रुचि दिखलायी मनुष्य जन्म का वर्णन। है। ये लोग चित्रकला के अच्छे पारखी रहे हैं। इसलिए चतुर्थ संधि-३० कड़वक । भारतीय चित्रकला की विविध शैलियों के चित्र राजस्थान प्रस्तुत काव्य का नायक 'यशोधर' है। जो प्रभय. के इन जैन भण्डारों में देखने को मिलेंगे। इनके अध्ययन रुचि के रूप मे स्टेज पर माते है। वे जैन सन्त हैं। गांवके प्राचार पर भारतीय चित्रकला के विकास पर अच्छा गांव में विहार करके स्व-पर कल्याण करना ही जिनका प्रकाश डाला जा सकता है। प्रस्तुत लेख मे 'महाकवि प्रमुख है। जब वे राजा मारिदत्त के सिपाहियों द्वारा पुष्पदन्त' विरचित 'जसहर चरिउ' की एक कलात्मक पकड़ कर राजा के सामने लाये जाते हैं तो उनकी भव्य सचित्र पाण्डुलिपि पर प्रकाश डाला जा रहा है- माकृति को देख कर स्वय राजा भी मुग्ध हो उठता है जन-साधारण में 'महाराज यशोधर' का जीवन-चरित्र और उनसे जगत मे इस रूप में विचरण करने का कारण इतना अधिक लोकप्रिय रहा है कि प्रत्येक भारतीय भाषा जानना चाहता है। और इसी प्रसंग में 'अभयरुचि' अपने में उनके जीवन पर काव्य, चरित, कथा, रास आदि के पूर्व भवो की पूरी कथा कहता है। यह कथा 'यशोधर रूप में रचनाएँ उपलब्ध होती हैं। राजस्थान के किसी- राजा' के भव से प्रारम्भ होती है और प्रभय रुचि' तक भण्डार में तो 'यशोधर चरित' की १५ से भी अधिक प्राकर समाप्त हो जाती है। अन्तिम सन्धि में राजा प्रतियां मिल जाती हैं। यही नही संस्कृत, अपभ्रंश एवं मारिदत्त एवं भैरवानन्द की भी पूर्व जन्म कथा का भी हिन्दी-राजस्थानी में विभिन्न विद्वानों ने इनके जीवन पर वर्णन है, जो उनको हिसामयी मार्ग से छुड़ाने के लिए
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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