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________________ अनेकान्त कही गयी है। 'यशोधर परित' अहिंसाके प्रखरतम माहात्म्य मौजमाबाद के ही कवि थे। उन्होंने अपनी होली की कथा को बताने वाली कृति है। "किसी जीव का वध एक में इस ग्राम का निम्न प्रकार का वर्णन किया हैजघन्यतम अपराध है और वह यदि भाव वध हो तो भी यहीं के बाजार वाले मन्दिर में शास्त्र-भण्डार है. उसका उतना ही कुफल मिलता है।'-यही बतलाना जिसमें करीब २५० हस्तलिखित ग्रन्थों का संग्रह है। इन इस कृति का मुख्य उद्देश्य है। अन्यो में हिन्दी एवं सस्कृत के ग्रन्थों की अधिक संख्या यद्यपि महाकवि की यह एक लघु रचना है किन्तु है। कुछ एक तो काफी महत्वपूर्ण हैं, जिनमे प्रा. कुन्दउसमें सरसता प्रवाह एवं लालित्य सभी गुण उपलब्ध कुन्द का प्रवचनसार, जिनेंद्रव्याकरण, अमरकीति की होते हैं। भाषा में वेग है। राजा मारिदत्त की सुन्दरता षट् कर्मोपदेशमाला, माशाधर का त्रिषष्ठिस्मृति शास्त्र का एक वर्णन देखिए एवं अमितिगति का योगसार आदि के नाम उल्लेखनीय चाएण कण्णु विहवेण इंदु, स्वेण काम केतीए चंदु। हैं। इसी भण्डार में लाख चारण विरचित 'कृष्ण रुक्मिणी बजे जमविण्ण पर्यड घाउ, पर दुम बलम वलेग वा॥ वेलि' की हिन्दी गद्य टीका भी है। सुरकरि फर थोर पर बाह, महाकवि पुष्पदन्त कृत इस सचित्र पाण्डुलिपि में १४ पच्चंत जिवह मणि विष्ण बाहु । पृष्ठ हैं। पृष्ठों का प्राकार ११॥४४-३/४" है। पाण्डुभसल उल णील पम्मिल्ल सोह, लिपि संवत १६४७ (सन् १५९०) मे महाराजा जयसिंह सुसमस्य भव्ह गोहाण गोह। के शासनकाल में पामेर नगर के नेमिनाथ चैत्यालय में मोउर कबाडमा विउल वच्छ, लिखी गई थी। उस समय श्री चन्द्रकीति देव मंडलाचार्य सत्तितप पालणु बोहरच्छ। थे। इसकी प्रतिलिपि खण्डेलवालान्वयी गोधा गोत्र वाले लक्मण लमबंकित गुण समुद्धः 'साह ठाकुर' ने करवायी थी। सुपसण्ण मुत्ति षण गहिर सदु ॥ "संवत् १६४७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि तृतियायो भू(भी)मइसी काव्य की एक सचित्र पाण्डुलिपि मौजमावाद वामरे पुनर्वसु नक्षत्र श्रीनेमिनाथ जिन चैत्यालये अंबावती (राजस्थान के शास्त्र-भण्डार में संग्रहीत है, जिसका परि वास्तव्ये महाराजाधिराज श्री मानसिंघ राज्य प्रवत्तैमाने चय इस लेख में दिया जा रहा है। श्री मूलसचे नंद्याम्नाये बलात्कारगणे सरस्वती गच्छे कंद'मौजमाबाद' १७वीं शताब्दी में साहित्यिक एव कंदाचार्यान्वये भ. श्री प्रभाचन्द्र देवा तस्सिष्य भ. श्री सांस्कृतिक गतिविधियों का प्रसिद्ध केन्द्र रहा था। संवत् घर्मचद्रदेवातस्सिध्य भ. श्री ललितकीति देवा तस्सिष्य १६६४ में महाराजा मानसिंह के अमात्य नानू गोधा ने मं० श्री चन्द्रकीत्ति देवाम्नाये खडेलवालान्वये गोषा यहां एक विशाल प्रतिष्ठा महोत्सव कराया था। इस गोत्रे सा० ठाकूर तद्भायें दे प्र. डी ही द्वि० लाछि दयो प्रतिष्ठा में राजस्थान से ही नहीं किन्तु देश के दूर-दूर पत्राः सप्त प्र. सा.श्री तेजपाल तदभार्ये उ. प्र. त्रिभुभाग से लोग पाये थे। यही कारण है कि राजस्थान के वन दे द्वि०.........." बहुत से मन्दिरों में इस समय में प्रतिष्ठित मूर्तियां मिलती -इस प्रति के प्रारम्भ के ५ पत्र वाद के लिखे हुए है। स्वयं मौजमाबाद के बड़े मन्दिर में अधिकांश मूर्तियां है। सब मिलाकर इसमें ७१ चित्र है। ये चित्र समान इसी समय की है। सभी मूर्तियां विशाल एवं मनोज्ञ हैं। प्राकार वाले नही हैं। किन्तु कितनेही पूरे पृष्ठ पर हैं, कितने माज भी यहां का मन्दिर एवं उसका भौंहरा खूब प्रसिद्ध हैं ही पाये पृष्ठ पर तथा अन्य पृष्ठ के एक भाग पर दिये पौर श्रावक गण उनके दर्शनार्थ माते रहते हैं। मन्दिर के हए हैं। चित्रों की भूमि लाल रंग की है, और उस पर तीन उत्तुंग शिखर दूर से भगवान जिनेन्द्र का मानों जय- विभिन्न चित्र अंकित हैं। घोष करते रहते हैं। शिखर पूर्णत. कलात्मक है जो बहतोली: ये चित्र सामान्यतः राजस्थानी शैली के हैं ही कम स्थानों पर देखने को मिलेंगे। 'छीतर ठोलिया' और विशेष रूप से पामेर शैली के चित्र हैं। स्त्रियां पांवों
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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