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________________ जीवन संगिनी की समाधि पर संकल्प के समन श्री रामस्वरूप बी ब्यावर रा. ब. सेठ टीकमचन्द सोनी जल्दी से जल्दी पहुंचा दें। अजमेर और सर सैठ हुकुमचन्द जी इन्दौर को पत्र लिख दिनांक २०२६-२०० कापियाँ कल दिन रजि. दिये गये हैं। हम इसी प्रयत्न की विशेष चेष्टा में है कि स्टर्ड पार्सल से पौर भेजी हैं। हमने काफी संख्या में छपाई किसी तरह रथयात्रा निकल जाय । हैं । सो अच्छी तरह बोटियेगा। एक भी विरोधी ऐसा __ दिनांक २६-हिन्दू महासभा के प्रधान मन्त्री न रहना चाहिए जिस तक इसकी प्रति न पहुंचे। ने दीवान साहब, जुडीशल सेक्रेटरी साहब और पुलिस दिनांक २२।८२६-पाज बुक-पोस्ट से २०० सुपरि० साहब को जो खत रवाना किये हैं उनकी नकल विज्ञापन भेजे हैं। ट्रैक्ट पापने बटवा दिये होंगे। न पापकी सेवा मे भेजी जाती है। बटवाये हों तो तुरन्त बटवा दीजिये और उनके बट जाने दिनांक १०२६-कृपा कर २७ तारीख तक १०-१२ घटे बाद यह नोटिस भी जरूर भिजवा दें। रोजाना एक लिफाफा भेजते रहिये जिसमे नित्य का प्रमिद्ध पत्र इगलिशमैन ने भी हाल छापा है कटिंग समाचार मालूम होता रहे। भेजते हैं। दिनांक १७४।२६-माज बुकपोस्ट से २५ वा दिनांक ६६२६-श्री चांदकरण जी शारदा को मनरजिस्टर्ड पार्सल से १०० ट्रक्ट रवाना किये जाते हैं। पत्र डाल दिया गया है और माशा है उसमें भी अपने को खास-खास विरोधियो के घरों में दुकानों में जहाँ मिलें सफलता मिलेगी। जीवन संगिनी की समाधि पर संकल्प के सुमन (स्वर्गीय बाबूजी की डायरी का एक पृष्ठ) [बाबू जी बहुत भावुक थे। उनकी धर्मपत्नी के के पुनरुद्धार की दिशा मे जो बहुमूल्य कार्य के कर गये असामयिक अवसान ने उन्हें बड़ा भाषात पहुँचाया था। वह शोध के मार्ग पर, माने वाली पीढ़ियों को सीढ़ियों इस घटना से उन्हें गहरा मानसिक क्लेश तो हुमा ही का काम देगा इसमें कोई सन्देह नहीं है। था, शरीर में भी प्रत्यन्त क्षीणता पा गई थी। एक माह के भीतर उनका भार वाईस पौड घट कर, ९१ पौण्ड रह उन दिनों बाबूजी नियमित डायरी लिखा करते थे। गया था ऐसा एक स्थान पर उन्होने लिखा है। चिर वियोग की उस श्याम प्रमा को उन्होंने जो शब्द लिखे उनमे उनका अन्तःकरण उजागर हो उठा है। उन ऐसी प्रशान्त और अस्थिर मनोदशा मे ही उन्होंने थोडे से शब्दों में एक ओर जहां उनके मन की पीड़ा का अपने भविष्य की रूपरेखा बनाते हुए शेष जीवन का एक पारावार हिलोरें लेता दिखाई देता है, वहीं दूसरी पार उद्देश्य बनाया था। प्रीङ्गिनी के प्रभाव को भूलने के अपनी कमजोरियों को मद्देनजर रखते हुए, तथा संसार . लिए उन्होने गहन व्यस्तता को माध्यम बनाया । इस की दशा पर विचार करते हए, भविष्य के कालयापन के जीवन-व्यापिनी व्यस्तता ने उन्हें पीड़ा के विस्मरण में लिए एक विवेकपूर्ण और दृढ़ सङ्कल्प भी उसमें कलकता सहयोग दिया या नहीं, यह तो हम नहीं जानते पर जीवन है। डायरी का यह भाग एक पृथक् पुस्तिका मे लिखा की अन्तिम घड़ी तक उन्होंने जो मूक पौर अनवरत हुपा उनको सामग्री से प्राप्त हुपा है जिस यहां अविकल साधना की, उसके फलस्वरूप साहित्य, संस्कृति और कला रूप से प्रस्तुत किया जा रहा है। -मीरखन]
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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