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________________ बयाना जैन समाज को बाबूजी का योगदान कपूरचन्द नरपत्येला सन १९२८ में बयाना जैन समाज दि० ६.१२-२८ से हुई थी। ले०६-१२-२८ तक जैन रथोत्सव मेला करने की भरतपुर अब क्या था हम श्रीमान् बा.छोटेलालजी कलकता सरकार से स्वीकृति प्राप्त कर चुका था। मेले की समस्त के इस प्रसाधारण बल और सहयोग को पाकर मुकदमा तैयारियां बड़े समारोह और धूम-धाम से की जा चुकी लडने में पूर्णरूप से जुट पड़े। थी कि यकायक ही अजैन जनता के विरोध करने से यह कलकत्ता और बयाना के बीच बड़ा फासला है मगर जैन रथोत्सव मेला न हो सका। बाबू जी ने इस फासले को मिटा दिया। उनके और मेला न होने से हमारे पांवों तले की जमीन खिसक हमारे बीच प्रतिदिन तारों-पत्रो, रजिस्टर्डपत्रों, पार्सलों गई। हम कि कर्तव्य विमूढ हो गये, हमारा समस्त और समाचार-पत्रों द्वारा वार्तालाप होता था। हमें यही उत्साह एक उफान की तरह थोडी ही देर में ठंडा हो मालूम न पड़ा कि बा. जी हमारे पास न होकर कलकत्ता गया। हमें चारों ओर घोर अन्धकार ही अन्धकार दिखाई में रह रहे हैं। मापने अपने सहयोग के बल पर हमें यह देने लगा। हमें यह घोर अपमान सहन करना असह्य हो पूर्ण विश्वास दिला दिया था कि यह विपत्ति मानो हम नया जैनधर्म और जैन-समाज पर लगे हुए इस कलङ्क को पर न पाकर स्वयं बाबू जी ही पर पाई है। धोना प्रसभव प्रतीत होने लगा। उस समय हमें कुछ न हम अपने साथ ऐसे उदार-त्यागी-कर्मठ सेवाभावी पर सूझा और हम अजैन समाजसे मुकदमा लड़ बैठे । मुकदमा दुखहर्ता, परम विद्वान् धर्मात्मा-कर्मवीर और महान दायर करने के पश्चात् हमे मालूम पड़ा कि हमारी परि- उत्साही व्यक्ति को पाकर निहाल हो गये। स्थिति बड़ी ही दयनीय और कमजोर है। हमें इन लोगों प्रापने इस मुकदमे के मम्बन्ध मे हमे जो सहायता के सन्मुख मफलता मिलना पाकाश-कुसुम तोड़ना है। दी वह निम्न प्रकार हैजैसे मुख के अन्दर बत्तीस दांतों से घिरी हुई जीभ रहनी १-दुख पौर निराशा के भयंकर गर्त से हमें निकल है उसी प्रकार इन अजैनों के साथ हमारा रहना था । कर आपने समय-समय पर हमारा उत्साह-वर्धन किया हम अपने कमजोर पैरों को देखकर बुरी तरह घबड़ा एव हमे अपनी प्रमूल्य सम्मति देते रहने को महान कृपा उठे। आखिर हमने समस्त जैन समाज के कर्णधारों से की। अपनी दुखभरी अपील की। समाज से सहयोग देने की २-मापने जैन एवं प्रजन श्रीमानों, धीमानों, मांग की। लेकिन बिगड़ी में कौन किसका साथी होता नेतामों, पदाधिकारियों, वकील-बैरिस्टरों और सम्पादकों है, हमे कहीं से भी सहयोग न मिला। इस समय हमे जो से हमारा सम्बन्ध स्थापित कराके उन्हें हमें सहयोग देने मर्मान्तक पीड़ा हो रही थी उसे हम ही जान रहे थे कि को बाध्य किया। अचानक ही डूबते को तिनके के सहारे समान बङ्गाल- ३-भरतपुर राज्य के दीवान साहब की सेवा में विहार-उड़ीसा दि. जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के मन्त्री श्रीमान् जैन-प्रजनों की तरफ से काफी संख्या में स्थान-स्थान से बा० छोटेलालजी जन कलकत्ता का तन-मन-धन से पूर्ण तार एवं महत्वपूर्ण पत्र भिजवाये। सहयोग देने का आश्वासन प्राप्त हुआ। इस माश्वासन ४-हिन्दी, उर्दू और इंगलिश के भनेको पत्रों मे के प्राप्त होते ही हम लोगों में उसी प्रकार शक्ति जागृत प्रापन जैन रथोत्सव को विरोधियों द्वारा रोके जाने पर हो गई जैसे कि लक्ष्मण जी में विशल्या के स्पर्श से इसके विरोध में अनेकों लेख प्रकाशित कराये तथा भनेकों
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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