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________________ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX ऐसे उपकारी जीवन को श्रद्धा सहित प्रणाम कल्याणकुमार 'शशि' बिया राष्ट्र सेवामों को, बहुचचित हादिक योग, बने रहे साहित्योन्नति में, हितकारी संयोग, गौण समझते रहे, स्वयम का शारीरिक सुख योग, भोकल रक्षा वृष्टि से, फल की इच्छा का विनियोग। अपने श्रम से दिया निरन्तर प्रौरों को विश्राम ! ऐसे उपकारी जीवन को, भद्धा सहित प्रणाम ! बड़ी बड़ी बाधामों से भी हुए नहीं भयभीत ! कर्मठता से भरा पुरा, उपकारी रहा प्रतीत ! जो बहुजन हिताय हो, था वह ऐसा प्राण पुनीत, हित चिन्तन के दृष्टिकोण से, जीवन किया व्यतीत । करते रहे, समस्यानों से जीवन भर संग्राम ! ऐसे उपकारी जीवन को श्रद्धा सहित प्रमाम! हर सुधार आन्दोलन में बढ़ता पा उनका हाथ । बढ़ते रहे सवा उनके पग, नई प्रगति के साथ ! ऊपर 'छोटे' अन्तरग में, उज्ज्वल उन्नत माथ। यहां ! "ज्ञान को भटके जीवन", बनते रहे सनाथ । जीवन वह है, जो कि प्रकारण प्राये सब के काम ! ऐसे उपकारी जीवन को, श्रवा सहित प्रणाम ! उनके द्वारा पुरातत्व का बड़ा निरन्तर मान । पुरातत्व ही संस्कृतियों का निर्मल गौरव मान । शोष कार्य में किया इस तरह, अपना योग प्रदानजिसके धारा बढ़ा सका पग, मूतन अनुसन्धान । जीवन वह है, जिस जीवन में गर्मित शुभ परिणाम ! ऐसे उपकारी जीवन को श्रद्धा सहित प्रणाम ! Xxxkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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