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________________ भनेकान्त उन्होंने विद्रुम (मुंगा) रत्नों और पाषाण प्रादि की अनेक कब तक रहा यह भभी अन्वेषणीय है। साहू नेमिदास की जिन मूर्तियों का निर्माण कराया था और मन्दिर बनवा प्रेरणा से कवि रइधू ने पुण्यास्रव कथाकोष की रचना की कर उसकी प्रतिष्ठादि का कार्य भी सम्पन्न किया था। थी। ग्रंथ में सम्यक्त्व, देवपूजा, भक्ति और पुण्य को यह चन्द्रवार के चौहान वंशी राजा रामचन्द्र के पुत्र रुद्र बढ़ाने वाली रोचक कथाएं दी हुई हैं। जिनसे सम्यक्त्व प्रताप से सम्मानित १। संभवत: १४६८ में वहां रामचन्द्र प्रादि की महत्ता पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। राज्य कर रहे थे। उसके बाद सं. १४७५ के मास-पास विक्रम की १६वीं शताब्दी में रोहतक निवासी प्रमप्रतापरुद्र ने राज्यभार संभाला होगा। यह राजा प्रतापी वाल वंशी चौधरी देवराज थे। जो धर्मनिष्ठ और पौर न्यायी था। इसके शासन में प्रजा सुखी थी। चन्द्रवाड़ श्रावक के ब्रतों का अनुष्ठान करते थे। आपने जिनभक्ति उस समय व्यापार का केन्द्र बना हुमा था। वहां का व्यापार से प्रेरित हो जैसवाल कवि माणिकराज से अमरसेन यमुना नदी में बड़ी बड़ी नौकामों द्वारा होता था, याता- चरित की रचना रोहतक के पार्श्वनाथ मन्दिर में संवत् यात भी नौकानों द्वारा होता था। उस समय नगर सम्पन्न १५७५ में कराई थी। और जन धन से परिपूर्ण था। सं० १५०६ की उसके ग्वालियर निवासी अग्रवाल वंशी साहू वाटू के चतुर्थ राज्य की एक प्रतिष्ठित मूति कुरावली के जैन मन्दिर में पुत्र हरिसीसाह के अनुरोध से कवि रइधू ने श्रीपाल विराजमान है । इसके पश्चात् उनका राज्य वहां मौर चरित की रचना की थी। ग्रंथ की पाद्यन्त प्रशस्ति में १. णिव पयावरुद्द सम्माणिउ। हरिसी साहु के परिवार का अच्छा परिचय दिया गया है। -जैन ग्रंथ प्रशस्ति संग्रह म०२ सं० १९१०-११ में प्रागरा में धर्मपाल नाम के एक २. अमरकीति के षट्कर्मोपदेश ग्रंथ की लिपि प्रशस्ति, धर्मात्मा एवं सम्पन्न सेठ रहते थे। उनकी जाति अग्रवाल नागौर भंडार। और धर्म जैन था। वे जैन सिद्धान्त के अच्छे विद्वान और ३. सं० १५०: ज्येष्ठ सुदी 'शुक्र चन्द्रपाट दुर्गे पुरे व्याकरण शास्त्र के पाठी थे। यह उस समय मोती कटरा चौहान वंशे राजाधिराज श्रीरामचन्द्रदेव युवराज के मन्दिर में शास्त्र प्रवचन करते थे। इन्हीं दिमों साधर्मी श्री प्रतापचन्द्रदेव राज्य प्रवर्तमाने श्रीकाष्ठा संघे भाई रायमल्ल घागरा गये थे और उनके प्रवचनों में माथुरान्वये पुष्करगणे प्राचार्य श्री हेमकीतिदेव तत्पट शामिल हुए थे। उनसे तत्वचर्या भी हुई थी। इनके भ. श्रीकमलकीतिदेव । पं० प्राचार्य रघु नामधेय प्रवचनों में उस समय सौ-दो सौ साधर्मी भाई शामिल तदाम्नाये अग्रोतकान्वये वासिल गोत्रे साह त्योंधर होते थे। और प्रवचन सुनकर उनका मन प्रमुदित होता भार्या द्वौ पुत्री द्वौ सा. महराज नामानौ त्योंधर था। कुछ दिनों के बाद रायमल्ल जी जयपुर वापिस भार्या श्रीपातयो तयोः पुत्राश्चत्वारः संघाधिपति आ गये। उन्होंने अपने परिचय में उसका उल्लेख किया गजाधर, मोल्हण जलकू रतू नाम्नः संधाधिपति गजे है। भार्या रायश्री गांगो नाम्ने संघाधिपति मोल्हण इस तरह अन्वेषण करने पर अग्रवाल जैन समाज भार्या सोमश्री पुत्र तोहक, संघाधिपति जलक भार्या द्वारा सम्पन्न होने वाले कार्यों का अन्वेषण करने पर महाश्री तयोः पुत्रौ कुलचन्द्र मेघचन्द्रो, संघपति रत अनेक व्यक्तियों के कार्य प्राप्त हो सकते हैं। अनेक मनभार्या प्रभयश्री । साधु त्योंधर पुत्र महाराज भायाँ वाल जन वाल जनों ने कांग्रेस में रह कर सेवा कार्य किया है, जेलों मवनधी पुत्री द्वौ। माणिक भार्या शिवदे......संघ- की यातनाएं भोगी हैं। फिर भी देश-सेवा से मुख नहीं पति जयपाल भार्या मुगापते। संघाधिपति गजाधर मोड़ा। धर्म, समाज और राष्ट्र की सेवा करना जैनों का संघा० भोला प्रमुख शान्तिनाथ बिम्ब प्रतिष्ठापितं परम कर्तव्य रहा है, जिसका कुछ संकेत मागे किया प्रणमितं च। जायगा। (क्रमशः) -प्राचीन जैन लेख संग्रह बाबू कामता प्रसाद ४. देखो, वीरवाणी वर्ष १मंक २ पृ० ८।
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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