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________________ प्रणवालों का जन संस्कृति में योगदान २२९ ग्वालियर निवासी अग्रवाल वंशी साह प्राणा के पुत्र भी वे एक प्रतिष्ठित व्यक्ति माने जाते थे। उन्होंने वहां रणमल के लिए कवि रइधू ने राजा डूंगरसिंह के राज्य मादिनाथ भगवान की एक विशाल प्रतिमा का, जो ग्यारह काल में संवत् १४९६ में चार संध्यात्मक सुकोशल चरित हाथ ऊंची अत्यन्त चनोज्ञ एवं कलात्मक थी निर्माण की रचना की। कराया था। मूर्ति इतनी सुन्दर भौर चित्ताकर्षक थी कि साहू खेमचन्द योगिनीपुर (दिल्ली) के निवासी थे। दर्शकजन उसे देखते नहीं अघाते थे। उसके विमल दर्शन इनकी जाति अग्रवाल और गोत्र साण्डिल था। इनके से चित्त प्रसन्न हो जाता था। उस सातिसयी मूर्ति का पिता का नाम पजणसाहु और माता का नाम बील्हा देवी प्रतिष्ठामहोत्सव करने के लिये जब सेठ कमलसिंह ने तथा धर्म पत्नी का नाम धनदेवी था। उससे चार पुत्र राजा डूंगरसिंह से निवेदन किया तब राजा ने स्वीकृति हुए थे-सहसराज, पहराज, रघुपति और होलिवम्म। देते हुए कहा कि यह उत्तम कार्य अवश्य कीजिये। इस इनमें सहसराज ने गिरनार की यात्रा का सघ चलाया कार्य में तुम जो मांगोगे सो मैं दूंगा और राणा ने पान था। साहू खेमचन्द सप्त व्यसन रहित और देव-शास्त्र. का बीड़ा देकर उनका सन्मान किया। पश्चात् उस मूर्ति गुरु के भक्त थे। इनके अनुरोध से कवि ने पार्श्वनाथ का प्रतिष्ठा कार्य सम्पन्न हुमा और यह प्रतिष्ठा कार्य चरित्र की रचना ग्वालियर नरेश डुगर सिंह के राज्य- संवत् १४९२ से पूर्व होना चाहिये; क्योंकि उक्त संवत काल में स. १४८६ से पूर्व की है। क्योंकि सं० १४९६ मे बने ग्रन्थ में उसका उल्लेख है और साह कमलसिंह के में रचे जाने वाले सुकोशल चरित में पार्श्वनाथ चरित्र का अनुरोध से कवि रइधूने सम्यक्त्व गुणनिधान नाम का उल्लेख है। इस ग्रन्थ की प्रशस्ति में उस समय के ग्वालि- ग्रन्थ सवत् १४९२ मे बनाकर समाप्त किया था। यर की स्थिति का दिग्दर्शन कराते हुए वहा के जैन समाज साह खेमसिंह ने रइधू कवि से मेघेश्वर चरित्र (जय की धार्मिक और सामाजिक परिणति का मार्मिक विवेचन कुमार सुलोचना चरित) का निर्माण कराया था। अन्य किया है । उससे ग्वालियर के तात्कालिक इतिहास पर की प्राद्यन्त प्रशस्तियों में खेमसिंह के परिवार का विस्तृत अच्छा प्रकाश पड़ता है। परिचय अंकित है। बलहह चरिउ (राम लक्ष्मण चरित्र) ग्वालियर दिल्ली के अग्रवाल कुलभूषण साहू नेमिदास साहू निवासी अग्रवाल वंशी साहु बाटू के सुपुत्र साहु हरसी के तोस के चार पुत्रों में सबसे ज्येष्ठ थे। बड़े ही धर्मात्मा अनुरोध से बनाया था। साहु हरसी धर्मनिष्ठ, जिन उदार और श्रावकोचित पट्कर्मों का पालन करते थे। शासन के भक्त, और कषायों को क्षीण करनेवाले थे। मागम और पुराण ग्रन्थों के पठन-पाठन में समर्थ, जिन शास्त्र स्वाध्य, पात्रदान, दया और परोपकार प्रादि षट्पूजा और सुपात्रदान में तत्पर, तथा रात्रि और दिन में कार्यों में प्रवृत्ति करते थे। उनका चित्त समुदार था और कायोत्सर्ग मे स्थित होकर आत्मध्यान द्वारा स्व-पर के लोक में उनकी धार्मिकता सुजनता का सहज ही भाभास भेदविज्ञान का अनुभव करनेवाले थे। तपश्चरण से उनका हो जाता है। उन्होंने चन्दवाड़ में व्यापार द्वारा अच्छा शरीर क्षीण हो गया था। प्रात्म-विकास करना ही द्रव्य अजित किया था। और जिनेन्द्र भक्ति से प्रेरित हो उनका एकमात्र लक्ष्य था। ग्रन्थ प्रशस्ति में माह हरसी के स्ति में माहु हरसी के १. प्रतापरुद्र नृपराज विधुतपरिवार का विस्तृत परिचय दिया गया है। इस ग्रन्थ की स्त्रिकाल देवार्चन वंचिता शुभा, रचना हरिवंश पुराण के बाद की गई है। जैनोक्त शास्त्रामृतापान शुदधी: गोपाचलवासी अग्रवालकुलभूषण साहु खेमसिंह के चिर क्षिती नन्दतु नेमिदासः ॥३॥ सुपुत्र साह कमलसिंह एक धर्मनिष्ठ उदार सज्जन थे। सत्कवि गुणानुरागी श्रेयान्निव पात्रदान विधिदक्षः । गज्य में प्रापकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। राजा डूंगरसिंह तोसउ कुल नभचन्द्रो नन्दतु नित्यमेव नेमिदासास्यः।।४ उनका बड़ा सम्मान करता था। उस समय जैन समाज में -पुण्यानव कथा कोष प्रशस्ति
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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