SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 280
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तिजकुरुल (तमिलवेब) : एक जन रचना इस प्रसंग में यह भी एक महत्वपूर्ण प्रमाण हो सकता जैन विद्वान् जीवक चिन्तामणि ग्रंथ के टीकाकार है कि 'कयतरम्" (Kayatram) नामक तमिल निघण्टु नचिनार किनियर ने अपनी टीका में सर्वत्र तिरुकुरल के के देव प्रकरण मे जिनेश्वर के पर्यायवाची नामों में बहुत लेखक का नाम थीवर बतलाया है।४ सारे वही नाम दिये है जो कुरल की मंगल प्रशस्ति मे तमिल साहित्य में सामान्यत: पीवर शब्द का प्रयोग प्रयुक्त किये गये हैं। निघण्टुकार ने जो कि ब्राह्मण जैन श्रमण के अर्थ में किया जाता है। विद्वान हैं, कुरल के रचयिता को जैन समझ कर ही करल की एक प्राचीन पाण्डुलिपि के मुखपृष्ठ पर अवश्य ऐसा माना है। लिखा मिला है-"एलाचार्य द्वारा रचित तिरुकुरल५ । कुरल पर भनेको प्राचीन टीकाएं उपलब्ध होती है। इन सारे प्रमाणो को देखते हुए सन्देह नही रह जाना उनमे से अनेक टीकाए जैन विद्वानो द्वारा लिखी गई है। चाहिए कि कुरल के वास्तविक रचयिता भाचार्य इससे भी कुरल का जैन-रचना होना पुष्ट होता है। कुन्द कुन्द ही थे। ___सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाली टीका के रचयिता भ्रम का कारणधर्मार हैं। उनके विषय में भी धारणा है कि प्रसिद्ध यह एक कड़ा-सा प्रश्न चिन्ह बन जाता है कि जैन-बिद्वान तो थे पर धर्म से जैनी नही थे। प्राचार्य कुन्द-कुन्द (थीवर व एलाचार्य) ही इसके रचकुन्द-कन्द ही क्यो ? यिता थे तो यह इतना बड़ा भ्रम खडा ही कैसे हुमा कि कुरल को जैन रचना मान लेने के पश्चात् भी यह इसके रचयिता तिरुवल्लुवर थे? तमिल की जैन परम्परा जिज्ञासा तो रह ही जाती है कि उसके रचयिता प्राचार्य मे यह प्रचलित है कि एलाचार्य (प्राचार्य कुन्द-कुन्द) कून्द-कून्द ही क्यो? इस विषय में भी कुछ एक ऐति- एक महान साधक व गगामान्य प्राचार्य थे। अतः उनके हासिक माधार मिलते है । मामूलनार (Mamoolnar) लिए अपने प्रथ को प्रमाणित कराने की दृष्टि से मदुरा तमिल के विख्यात कवि है। उनका समय ईसा की प्रथम की सभा में जाना उचित नहीं था। इस स्थिति में उनके शताब्दी माना जाता है । उन्होंने कुरल की प्रशस्ति गाथा गृहस्थ शिष्य श्री तिरुवल्लुवर इस प्रथ को लेकर मदुरा मे कहा है-"कुरल के वास्तविक लखक थीवर है, किन्तु की सभा में गये और उन्होने ही विद्वानो के समक्ष इसे अज्ञानी लोग वल्लुवर को इसका लेखक मानते है, पर प्रस्तत किया प्रस्तुत किया। इसी घटना-प्रसग से तिरुवल्लुवर इसके बुद्धिमान लोगों को प्रज्ञानियों की यह मूर्खता भरी बाते रचयिता के रूप में प्रसिद्ध हो गये।। दसरा स्वीकार तही करनी चाहिए।"२ प्रो० ए० चक्रवर्ती ने अपने द्वारा सम्पादित तिरुकुरल 4. Ibid, Introduction, P. X. मे भली-भांति प्रमाणित किया है, कि तमिल परम्परा मे 5. Ibid, Introduction, P. XI. प्राचार्य कुन्द-कून्द के ही 'बीवर' और 'एलाचार्य' ये दो 1. Thirukkural Ed. by Prof. Chaklavart!, नाम है। Introdvetion, P. xiil. "According to the Jana tradition. 1. Thirukkural Ed. by Prof. A. Chakraverti, Elacharya was a great Nirgrantha Preface, P. II Mahamuni, a great digamber ascetic, not 2. "The real auther of the work spacks of caring for wordly honours. His lay the four topics is Thevar. But ignorant disciplc was delegateed to introduce the people mentioned the name of Valluwar work to the scholars assembled in the as the author. But wise men will not Madura acadamy of the sangha. Hence accept this statement of ignorant fool." the introduction was by Valluwor, whow -Ibid, Preface. placed it before the scholars of the 3. Ibid, Intronuction, P xii. Madura Sangha for their approval.
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy