SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१८ भनेकान्त सूरि लिखते है-"अयलपुरे दिगंबर भत्तो 'भरिकेसरी' काल होगा और पहले परिकेसरी का राज्यकाल शक राया। तेणेय काराविमो महापासाघो परट्ठावित्राणि ७०० के प्रामपाम पाता है, जो कि कलिगमय सहित तित्थयर विवाणी।" तिलगन], वेगी प्रदेश [गोदावरी जिला] पर भी शासन एलिचपुर के इतिहास मे ईल राजा के सिवाय करने वाले थे। इनके पिता सपादलक्ष [सवालख] प्रदेश किसी अन्य जैन राजा या वंश परम्परा का उल्लेख नहीं के स्वामी ये। मिलता। तो भी प्राचीनतम यह उल्लेख दिगम्बर जैनों धर्मोपदेशमाला का रचनाकाल वि० सं० ८१५ अगर की दृष्टि से बड़े महत्व का है। माने ती उसमें उद्धृत परिकेसरी [शक ७००] प्रथम ही एक बात तो निर्विवाद है कि गष्टकटों का अमल हो सकते हैं। लेकिन डा. जोहरापुरकर के मत से उन [अधिकार] दसवी सदी के प्रत तक एलिचपुर [विदर्भ] दिनों चालुक्य और राष्ट्रकूटों में शत्रुत्व था। चालुक्य उन तक चलता ही था। अतः जो परिकेसरी उन दिनों दिनों मे गगवशीय नरेशो के सामंत थे। अतः उनका यह एलिचपुर में थे वह सामंत ही होगे, निदान शत्र तो हो ही उल्लेख नहीं हो सकता। नहीं सकते। द्वितीय या तृतीय परिकेसरी का वह उल्लेख मानें गष्टकटों के सामंत में चालुक्यवशीय नरेशों की तो धर्मोपदेशमाला का रचनाकाल शक स. ११५ ही वंशावली में लीन प्ररिकेसरी का पता चलता है। निश्चित होता है। प्रत वह उल्लेख तृतीय परिकेसरी उमके प्राधार तीन हैं-१. कवि पंप के विक्रमार्जुन का ही अधिक जान पडता है। जो एलिचपुर में प्रतिष्ठा विजय [रचना काल शक स. ८६३] मे चालुक्यों की के प्रमख होंगे और धर्मोपदेशमाला की यह घटना लेखक बंशावली दी है-युद्ध मल्ल-अरिकेसरी-नरसिंह-युद्ध- को पाखो देखी घटना हो सकती है। मल्ल-बहिग-नरसिंह और केसरी। क्योकि शक स. ८१४ तक राष्ट्रकूट राजा श्रीकृष्ण२. यशस्तिलक की प्रशस्ति मे श्रीसोमदेव सूरि गजदेव [नित्यवर्ष ] शासन करते थे । और उनका प्रभाव दिगम्बराचार्य लिखते है-'चैत्र वदी १३ शक म०५१ केरल से लगा कर पूरे विदर्भ, मराठवाडा तक था इनके को राष्ट्रकटराजा श्रीकृष्णराज देव के....."चरणोपजीवी भी दिगम्बराचार्य को बहुत दान देने के उल्लेख मिलते सामंत बहिग की-जो चालुक्य वशीय परिकेसरी के हैं। इनके बाद इन्द्रराज चतुर्थ शक सं० ८६ से १०४ प्रथम पुत्र थे-राजधानी गगधारा में यह काव्य समाप्त तक गद्दी पर थे। और बाद में राष्ट्रकटों का राज्य चला गया। ३. परभणी [मगठवाडा] जिले में मिले हुए एक एक बात फिर नजर मे गती है कि-इन्द्रराज चतुर्थ ताम्र पत्र में-पंप के जैसी ही चालुक्यो को वशावनी दी के समय उनकी उपराजधानी एलिचपुर में किसी 'हरिहै और अन्त में कहा है कि बहिग के पत्र अरिकेसरी वर्ष' नाम के राजा की अपमृत्यु के बाद एक ग्वाल ने हए । इन्होंने शके ८८८ में श्रीसोमदेव सूरि को पिता के एलिचपुर का राज्य लिया था। [इसकी चर्चा अनेकात के शुभधाम जिनालय के व्यवस्था के हेतु कुछ भूमि दान पिछले अक में की गई है।] हिन्दू पुराणो मे उल्लेख दी थी। आता है कि-एलिचपुर के प्रासपास का प्रदेश 'इलावत' एक राजा का राज्यकाल सरसरी तौर पर २५ साल नाम से प्रसिद्ध था। और इलावर्त का राजा ईल था। का भी मान लेवें नो यह निष्कर्ष निकलता है-शक स. १. यादव माधव काले कृत 'व-हाड-चा इतिहास' पृष्ठ ८८८ यह तीसरे परि केसरी के राज्य का प्रारम्भकाल ७०+७१-इस एलिचपुर को इलावर्त कहते यहाँ होगा। शक ८६३ यह दूसरे भरिकेसेरी के राज्य मन्तिम ईल नरेश राज्य करते थे। है. इसकी विस्तृत चर्चा श्री प्रेमीजी ने 'जैन साहित्य २. मदिरमाला मुक्तागिरि पृ०१ [वोराकृत]-इलावर्त मौर इतिहास' में श्रीसोमदेवसूरि के लेख में की है। का राजा ईल था।
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy