SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एलिचपुर के राजा एल (ईल) और राजा परिकेसरी की। चेप्टा करके राजा के मूलस्थान पर ही माघात करने "हवि संघली विगंबर बसि, सणुनसुषोतं घणु उल्हसि ॥१५ का यह प्रयत्न है। शिरपुर नयर अंतरीक पास, अमीझरो वासीम सुबिलास। वि० सं० ११४२ की प्रतिष्ठा की जानकारी मे हमारे परगट परतो पूरि माज, नव निषि प्रापी ये जिनराज॥१४ हाथ श्वेताम्बर रचित अंतरिक्ष पार्श्वनाथ तीर्थ परिचय माश्चर्य यह है कि जहां सब दिगम्बर ही दिगम्बर पुस्तक प्राया। वहां उसके सिद्धि के लिए उन्होंने प्राचीन बसते है वहां का भगवान क्या श्वेताम्बर हो सकता है? प्राचार्यों का कोई साहित्यिक आधार तो नहीं बताया, अर्थात् शीलविजयजी के शब्दों मे उन दिनो शिरपुर से लेकिन कहा कि, विक्रम की अठारहवी शताब्दी के भाव- लगाकर समुद्र तक सब दिगम्बर बसही ही थी। विजयगणी को पद्मावती माता ने साक्षात्कार में यह इति. इतना स्पष्ट उल्लेख होने पर भी ये श्वेताम्बर कहते हास सुनाया। है-१. हमारे पूर्वजों ने यात्रा की थी। २. हमारे साहित्य न मालूम यह झूठा इतिहास बताने वाली पद्मावती में उल्लेख है। ३. हम इनके भक्त हैं। प्रादि। उसका कौन थी और वे भावविजयगणी कौन थे। यह एक स्वतत्र सीधा उत्तर है-१. हमारे दादा ने ताजमहल की यात्रा चर्चा का विषय है कि श्वेताम्बरों के इस स्व-तंत्र की पूरी की थी, तो क्या ताजमहल हमारे दादा का होगा? २ समीक्षा की जावे । जिन अभयदेवसूरि के हाथ से मुक्ता- इनके साहित्य में प्रकबर मादि बादशाह के उल्लेख हैं, गिरी व शिरपुर की प्रतिष्ठा हुई ऐसा बताया जाता है। तो क्या बादशाह इनके हो गये? या ये बादशाह के उनके शिष्य हेमचद्रसूरि ने अचलपुर प्रादि की चर्चा मे । समाज के कहलाये ? ३. हजारो हिन्दू संलानीबाबा [ज. इसका उल्लेख क्यों नही किया? १४, १५ तथा १६वी बुलढाणा] की भक्ति करते हैं, तो क्या सैलानीबाबा शताब्दी में होने वाले जिनप्रभ, सोमप्रभ और लावण्य जनके हो गये? समय मादि विद्वानों का प्रतरिक्ष पाश्वनाथ के इतिहास के इस पर वे कहते हैं, ये हमारे थे, इसीलिए हमने या लेखक ने इनका क्यों नहीं बखान किया? तथा हमारे प्राचार्यों न इनकी पूजा-वदना की, अन्यथा उनकी भावविजयगणी के समय इस बात का पता चला पजा नही करते। BAATEEर : गिना टेवा पूजा नहीं करते। इनताम्बर गुरु दिगम्बर देव को पूजते ऐसा मान भी लिया जाय और श्वेताम्बर-परिचय या नही इसके उत्तर में शीलविजयजी का ही वाक्य उद्पुस्तिका मे बताये मुजब भावविजयगणी ने वि. स. धत करता है१७१५ मे वहां प्रतिष्ठा की और बड़ा मन्दिर निर्माण "पुरवाचार्य ने वचने घरी, देव विम्बर बंधा फिरी।"१००, किया होता तो, उनके बाद सिर्फ १० और २० साल मे [तीर्थमाला] इस तीर्थ की वदना कर इतिहास देने वाले शीलविजय इस वाक्य से यह स्पष्ट है कि श्वेताम्बर समाज और तथा विनयराज इन्होंने उस इतिहास का और इस प्रतिष्ठा गुरु दिबम्बर देव को दिगम्बर जानकर ही-न कि श्वे. व उद्धार का क्यो नहीं उल्लेख किया ? शीलविजय ने न ताम्बर बना कर-पूजते थे। इसमें पूर्वाचार्य का वचन तो वि० सं० १७२१ मे ही दक्षिण भारत की यात्रा शुरु की थी और जगह-जगह का इतिहास जान कर तथा प्रत. दिगम्बर जैन तीर्थ को केवल यात्रा करने से, मांखों देखी सच्ची सामग्री उनकी तीर्थमालामे दी हुई है। या माहित्य में उल्लेख मिलने से. या इनको अनि रे जब वे नर्मदा छोड़कर बुरहाणपुर, मल्लकापुर तथा से श्वेताम्बर बताना या बनाना याने दुनिया के एक इतिदेऊलघाट माये तब वहा के नमीश्वर भगवान के दशन दास को नष्ट-भ्रष्ट कर देना है। क्या यह ही जैन धर्म कर वे लिखते हैं की शिक्षा है? १. प्रतरिक्ष पार्श्वनाथ यह क्षेत्र किसका है, इसके मालिक २. एलिचपुर के राजा दिगम्बर जैन ही ये इसका कौन हैं इसके विवाद मे दिगम्बर मौर श्वेताम्बरो के एक और उल्लेख यहाँ दे रहा है। शक स.९१५ मे रची वीच दीवानी केस अभी चालू है। हई धर्मोपदेशमाला के पृष्ठ १७७पर श्वेताम्बरीय जयसिंह
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy