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________________ एलिचपुर के राजा एल (ईल) और राजा अरिकेसरी पं० नेमचन्द्र पन्नूसा जैन एलोरा गुफा [जिला औरंगाबाद] के बाबत श्री अगर मान लिया जाय तो यह प्रथ बराबर एल राजा के मनि कांतिसागर 'खण्डहरों के वैभव' मे लिखते हैं- समकालीन ठहरता है। गने ई० सं० १९३ में ईल [एल] पश्चिमी गुफा मंदिरों मे एलागिरी एलोरा का स्थान राजा एलिचपूर मे शासन कर रहे थे तब यह ग्रंथ रचा बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। प्राकृत भाषा के साहित्य में गया है। प्रतः एलोरा मे दि. जैन गुफा निर्माण करने इमका नाम एल उर मिलता है। धर्मोपदेशमाला के विव- वाले और उसके लिए अनत द्रव्य खर्चा करने वाले एल रण में [रचना काल सं० ९१५] समयज्ञ मुनि की एक राजा दिगम्बर ही सिद्ध होते है। कथा पाई है, कि वे भृगुकक्ष नगर से चल कर 'एल उर' नगर प्राये और दिगम्बर वसही मे ठहरे। इससे जान लेकिन खण्डहरो का वैभव मे पृष्ठ १२. पर मुनिजी लिखते हैं-"नवागी वृत्तिकार से भिन्न, मलधारी श्री पडता है उन दिनों एल उर की ख्याति दूर दूर तक फैली अभयदेवसूरि ने विदर्भ में प्राकर प्रतरिक्ष पाश्वनाथ की हई थी। दिगम्बर वस्ती से गुफा का तात्पर्य नही है ?" [पृष्ठ ४८] प्रतिष्ठा वि० स० ११४२ माघ सुद्ध ५ रविवार को की। ___ यहां उन्होंने धर्मोपदेशमालावत्ति का उद्धरण वाक्य अचलपूर के राजा ईल [गल] जैन धर्मानुयायी था। उसने दिया है-तमो नदपाहिहाणो साह कारणान्तरेण पट्टविमो पूजार्थ श्रीपुर-सिरपुर गांव चढाया था।" गुरुणा दक्षिणावह । एगागी वच्चतो य परोसे पत्तो और गहाँ ईल गजा की टिप्पणी में मुनिजी लिखते एलउर।" [धर्मोपदेशमाला पृष्ठ १६१] । हैं-'ईल राजा ने अभयदेवसूरि द्वारा मुक्तागिरी तीर्थ पर एलिचपुर के राजा एल के कारण बसा हा जो भी पाश्वनाथ स्वामी की मूर्ति की प्रतिष्ठा करवायी थी। नगर वह एलउर [उर याने नगर]-एलोरा है। यह इति शील विजयजी ने इस तीर्थ की वदना की थी।' हास सिद्ध है। यहा की कई गुफाएँ भले ही एल राजा से अब सोचिए कि, वि० स० ११५ या शक संवत ८१५ प्राचीन हैं तो भं। उस स्थान को एलोर यह नाम राजा [वि०म० १०५०] में होने वाले ईल राजा, वि० सं० एल के बाद ही पड़ा, यह सुनिश्चित है। कोकि राजा ११४२ मे अभयदेवसूरि के हाथ से शिरपुर या मुक्तागिरी एल यह दिगम्बर जैन था और उसने श्रीसिद्धक्षेत्र मुक्ता - मे किस तरह प्रतिष्ठा कर सकते हैं ? गिरी, शिरपुर [जिला अकोला] और यहाँ-एलोरा मेदि. जैन संस्कृति दर्शक शिल्प निर्माण किये है। एलोरा मुनि कांतिसागर जैसे सत्यशोधक और इतिहासज्ञ काबीन व्यक्ति द्वारा ऐसा लिखा जाना कैसे उचित कहा जा मे जन दि० गुफा होने का यह ऊपर का प्रति प्राचीन उदाहरण है । धर्मोपदेशमाला वृत्ति का रचना काल मनि सकता है-इससे तो इतिहास का ही हनन होता है। जी स०१५ मानते हैं। वह विक्रम सवत मानें तो एल मुक्तागिरि यह सिद्ध क्षेत्र सर्वथा दिगम्बरों का ही गजा का काल भी इसके पूर्व या समकालीन ठहरता है। है और था भी। न वहा श्वेताम्बरों के कोई चिह्न हैं, लेकिन यह गलत है। एल राजा का काल दसवी शदी ___ न भूत में थे । न कोई इतिहास उसका साक्षी है। जान - का उत्तरार्ध सुनिश्चित है। अतः यह सवत शक संवत पड़ता है कि, एक झूठ पचाने के लिए यह दूसरा झठ १. देखो अनेकात १९६४ अगस्त के प्रक में 'राजा बताया है। जिन दि. जैन ईल राजा ने अंतरिक्ष पाश्वं. श्रीपाल उर्फ ईल' नामका मेरा लेख । नाथ क्षेत्र का निर्माण किया, उस क्षेत्र को हस्तगत करने
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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