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________________ एलिचपुर के राजा एल (ईल) और राजा परिकेसरी २१९ बहाल जन अन्यों में उल्लिखित इल्लि देश और यह इलावर्त अर्थात् यह घटना शके ९०४ [वि० सं० १०३६] के एक ही है। अतः राज्यारोहण समय उस ग्वाल ने श्रीपाल बाद की मालूम होती है। अतः शक ९१५ में इसका नाम धारण करने पर भी जैन पोर इतर साहित्य में उल्लेख होना अधिक महत्त्व रखता है। इससे भी स्पष्ट उसकी प्रसिद्धि इल नाम से ही हुई। इसने राष्ट्रकूटों का होता है कि दिगम्बर भक्त परिकेसरी को बुलाने वाला मामत पद स्वीकार कर लिया था। और ऐसा करने से ईल राजा दिगम्बर जैन ही था। न कि श्वेताम्बर । तथा ही वह निराबाध शासन कर सका। इसने दिगम्बर जैन ईल राजा राष्ट्रकूटों का सामत था, और राष्ट्रकूटों के धर्म स्वीकार किया था। इसको किसी समय स्वप्न के सम्बन्धित जितने भी जैन राजे, श्रावक या मुनि थे वे सब दृष्टांत से भगवान पार्श्वनाथ की एक मूर्ति की प्राप्ति दिगम्बर ही थे। [देखो-गोविंद सखाराम सरदेसाई B.A. हुई थी। बड़ोदाकृत 'हिन्दुस्थानचा अर्वाचीन इतिहास भाग २, पृ. हो सकता है कि इसकी प्रतिष्ठा के समय इन्द्रराज १६-[अनुवादित]-"चालुक्योंके समय जैनों का महत्त्व चितुर्थ] की मृत्यु हो गई होगी, इसलिए सामन्त चुडामणि शुरु हुमा । वह राष्ट्रकूटो के समय बढ़ता गया कितनेक या सामताधिपति ऐसे प्ररिकेसरी तृतीय को उस मंगल तिमेरिकेसरी ततीय को मंगल सामत राजे और वैश्य गृहस्थ जैन धर्म के कट्टर उपासक पंचकल्याण के प्रतिष्ठा के लिए बुलाया होगा और प्रमुख थे, "यह जैनधर्म का दिगम्बर पंथ था।" के नाते वह या अन्य और मूर्ति की प्रतिष्ठा इनके हाथ से ईल राजा को दिगम्बर जैन सिद्ध करने वाले पौर हई होगी। ये दिगम्बर भक्त तो थे ही। भी अनेक प्रमाण हैं, जिन पर यथा समय प्रकाश पड़ेगा ही। तो भी प्रत्यक्ष श्वेताम्बर समकालीन साहित्य से भी ३. देखो १९६३ दिसबर के अनेकांत में डा० जोहरा- ईल राजा के दिगम्बर जैनत्व पर सुनिश्चित प्रकाश पड़ता पुरकर का 'राजा एल' यह लेख । है। प्रस्तु।. प्रात्म-सम्बोधन वा दिन को कर सोच जिय मन में ॥ वनज किया व्यापारी तूने टांश लावा भारी रे । प्रोछो पंजी जना खेला, माखिर बाजी हारी रे ॥ इक दिन डेरा होयगा वन में, कर ले चलने की तैयारी॥वा दिन को॥१ झूठे नना उल्फत बांधी, किसका सोना किसका चांदी। इक दिन पवन चलेगी मांधी, किसकी बीबी किसकी बांदी। नाहक चित्त लगावे धन में ॥वा दिन को० ॥२ मिट्टी सेती मिट्टी मिलियो पानी से पानी । मरख सेती मूरख मिलियो, जानी से ज्ञानी ॥ यह मिट्टी है तेरे तन में ॥ वा दिन को० ॥३ कहत 'बनारसि' सुनि भवि प्राणी, यह पर है निरवाना रे। जीवन मरन किया सो नाहीं, सिर पर काल निशाना रे॥ सूझ पड़ेगी बुढ़ापे पन में ॥वा दिन को० ॥४
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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