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________________ साहित्य समीक्षा १. जैन शिलालेख संग्रह-(भाग ४) सम्राहक मागधी, मुक्तककाव्य, कथासाहित्य तथा अलंकार एव छन्द सम्पादक-डा० विद्याधर जोहरापुर कर, प्रकाशक भार- शास्त्रों का परिचय दिया गया है। मागम साहित्य का भी तीय ज्ञानपीठ काशी। पृष्ठ संख्या पाँचसौ से अधिक सक्षिप्त परिचय इसमें निहित है, इससे पाठको को प्राकृत मूल्य सात रुपये। भाषा के साहित्य का सहज ही परिचय मिल जाता है। प्रस्तुत ग्रंथ माणिकचन्द्र जैन ग्रन्थमाला के अन्तर्गत प्राकृत भाषा के साहित्य को तीन कालो मे विभाजैन शिलालेख संग्रह का यह चौथा भाग है। इस सग्रह जित किया जा सकता है। प्राचीन, मध्य कालीन और मे ईस्वी पूर्व गैथी सदी से लेकर १८वीं सदी तक के अर्वाचीन । प्राकृत का प्राचीन साहित्य भागम भोर ६५४ लेखों का सकलन किया गया है। ये लेख विविध अध्यात्म साहित्य पाया जाता है। मध्यकालीन कथाप्रान्तों के और विविध भाषामों का प्रतिनिधित्व भी करते साहित्य भौर कालिदास के नाटको में पाया जाता है और हैं । इनमें सबसे अधिक लेख मंसूर प्रान्त के ४४७ लेख अर्वाचीन प्राकृत साहित्य को अनेक छोटी कृतियाँ हैं। हैं, जो कन्नड भाषा के हैं। यद्यपि प्राकृत के १८, सस्कृत और उसका रूप प्रप्रभ्र श- साहित्य में पाया जाता है। के ८८, हिन्दी के ३, तेलगु ८, तमिल के ७७ पौर लखकन वज्ञानिक विश्लषण, काल विभाजन द्वारा ग्रन्थ की, कनाडी भाषा के कुल ८६० लख सगहीत है । डा. जोहरा पठनीय और रोचक बनाने के लिए अच्छा परिश्रम किया पुर करने इसका परिश्रम पूर्वक सम्पादन किया है। इस है। प्रस्तुत ग्रन्थ प्राकृत भाषा के जिज्ञासुमो को मंगा कर लेख संग्रह की विशेषता है कि इसमे नागपुर के दि. जन अवश्य पढ़ना चाहिये। मन्दिरो की मूर्तियों के लेख भी संकलित किये गये है। ३. जनदर्शन-लेखक डा. महेन्द्रकुमार जैन, प्रका सम्पादक जी ने प्रस्तावना और प्रागत लेखो मे राज- शक श्री गणेशप्रसाद वर्णी, जैन ग्रन्थमाला, काशी, पृ० वशों तथा गण-गच्छों पर भी प्रकाश डाला है। अभी मध्य- ६००, मूल्य ७ रुपया। प्रदेश प्रादि के बहुत से अप्रकाशित लेख पड़ हए है, जो प्रस्तुत ग्रन्थ मे जैन दर्शन का मौलिक, प्रामाणिक अभी तक जनसाधारण मे प्रकाश मे नही माये, और न और तुलनात्मक विवेचन दिया हुमा है। जहाँ कही भी उन पर उचित विचार ही हो सका है। प्राशा है डा. मालोचन की मावश्यकता हुई लेखक ने बड़े ही सयत साहब उन लेखो का सकलन भी जैन जगत के सामने शब्दो मे उसे देने का प्रयास किया है। पुस्तक की महत्ता रखने का प्रयत्न करेंगे। इसी से स्पष्ट है कि यह उसका द्वितीय एडासन है । अन्त ग्रथ का प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ के अनुसार उत्तम में जन दार्शनिक साहित्य की सूची भी दी हुई है, जिससे है । इस उपयोगी ग्रन्थ को प्रत्येक लायब्ररी, और अनु- पाठक उससे यथेष्ट लाभ उठा सकता है। इससे लेखक सधाता प्रिय विद्वानो को मगाकर रखना चाहिए। की प्रतिभा का ज्ञान सहज हो जाता है। उनसे जैन ____२. प्राकृत भाषा मोर साहित्य का मालोचनात्मक समाज को बहुत बडी पाशा थी, काश वह और रहते तो इतिहास-लखक डा. नेमिचन्द शास्त्री पारा, प्रकाशक जैन दर्शन की अनेक गुत्थियो को सुलझाते । लेखक को तारा पब्लिकेशन्स कमच्छा वाराणसी। पृष्ठसख्या ६४० यह कृति महत्वपूर्ण है। इनके द्वारा सम्पादित सिद्धिमूल्य २० रुपया। विनिश्चय ग्रन्थ बड़ा ही महत्वपूर्ण प्रौर गभीर है। प्रस्तुत ग्रन्थ मे डा० नेमिचन्द जीने ई० पूर्व ६०० से वर्णी ग्रन्थमाला के मत्री दरबारीलाल जी कोठिया ई० सन् की १८वी सदी तक के प्राकृत भाषा साहित्य का का यह प्रयास प्रशसनीय है। प्राशा है, भविष्य में उससे परिचय करता हुमा उसका पालोचन भी किया है। ग्रन्थ और सुन्दर ग्रन्थो के प्रकाशन का प्रायोजन किया जायगा। नौ अध्यायो मे विभक्त है, जिनमें प्राकृत भाषा, ध्वनि ४. सुगध दशमी कथा-सम्पादक डा.हीरालाल जैन और व्याकरण सम्बन्धी विचार व्यक्त करते हुए प्राकृत एम० ए० डी० लिट् प्राध्यापक तथा विभागाध्यक्ष संस्कृत, भाषा के महाकाव्य, खण्डकाव्य, चरितकाव्य, चम्पूकाव्य, पाली व प्राकृत इन्स्टीट्यूट प्राव लेंग्वेज एण्ड रिसच
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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