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________________ २०२ साहित्य-समोसा अबलपुर विश्वविद्यालय (म.प्र.), प्रकाशक भारतीय ५. पयोदय चम्मू (हिन्दी अनुवाद सहित) मुनि कानपीठ दुर्गाकुण्ड रोड़, वाराणासी । बड़ा भाकार पृष्ठ श्री ज्ञानसागर जी, सम्पादक पं. हीरालाल सिद्धान्त १९२ मूल्य ११) पया। शास्त्री, प्रकाशक पं. प्रकाशचन्द्र जैन, व्यावर, पृष्ठ १६२ प्रस्तुत अन्य में सुगन्ध शमी व्रत की कथा अपभ्रंश, मूल्य १.५० पैसा। संस्कृत, गुजराती, मराठी और हिन्दी इन पांच भाषाम्रो प्रस्तुत ग्रन्थ एक महत्वपूर्ण कृति है जिसमें एक में पद्यमय प्रकाशित की गई है। उदयचन्द की अपभ्रंश ऐतिहासिक व्यक्ति की कथा दी गई है जो हिंसा द्वारा कथा और मलसागर की संस्कृत कथा का अनुबाद भी अपनी माजीविका को सम्पन्न करता था। उसने साधु के साथ में दिया गया है। ब्रह्मारिनदास की गुजराती कथा उपदेश से केवल इतना ही नियम लिया था कि जाल मे पौर सुवासचन्दकी हिन्द कथा के साथ जिनसागर की पहली बार जो जीव पायगा उसकी मैं हिंसा नहीं मराठी कथा को सचित्र प्रकाशित किया है। जिन में ४ करूया। उसने इस नियम का दृढ़ता से एक दिन ही चित्र रंगीन और शेष ६७ बत्र इकाईये हैं। पालन कर पाया कि वह मृत्यु को प्राप्त हो गया। पौर काक्षी नरेश पप नाम की रानी श्रीमती ने एक उस लघ अहिंसा के प्रभाव से अगले ही जन्म में एक तपस्वी मुनि को देषभाव से कटुक फलों का प्राहार नमन कलीन मेटघर पेटामा और पन्त कराया। जिसके विषम प्रभाव से मुनि मूठित हो गए। यो मोन ममापिय पर और पगले इससे राजा ने रानी को निकाल दिया। रानी ने अपने जन्म में कर्मबन्धन से मुक्त हो अविनाशी सुख का पात्र पाप फल से अनेक पायोनियों में जन्म लिया, पश्चात् बना। मनुष्य योनि में दुगंधित शरीर पाया। भाग्यवश दयालु इस दयोदय काव्य के रचयिता मुनि श्री ज्ञानसागर मुनिराज ने एक व्रत पालने का उपदेश दिया, जिससे वह जी हैं, जो जयपुर के पास राणोली ग्राम के निवासी हैं । अगले भवमें सर्वांग सुन्दर तिनकमती नामक रानी हुई और इनका कुल खंडेलवाल और गोत्र छाबडा है, पितामह का अन्त में समाधिमरण करके ईशान स्वर्ग में देवी हुई। नाम मुखव और पिता का नाम चतुर्भुज तथा माता ऐतिहासिक दृष्टि से कथा का मूल रूप प्राचीन जान घृतवरी देवी था। उनके पांच पुत्रों में से पाप द्वितीय हैं। पड़ता है। सम्पादक महोदय ने अपनी प्रस्तावना मे इस सं० १९५६ में पिताका असमय में स्वर्गवास हो गया, उस पर अच्छा प्रकाश डाला है, और कथानक के विभिन्न समय प्रापकी अवस्था १० वर्ष की थी, अपने गांव के रूपों पर विचार करते हुए उसकी मौलिकता और स्कूल में प्रारम्भिक शिक्षा पाई। मापने बनारस के स्याद्वाद रोचकता का भी निर्देश किया है । फॅच और जर्मन कथा महाविद्यालय में अध्ययन किया । आपमें प्रतिभा थी, और से भी तुलना की गई है। महाभारत के कथानक से अध्यवसायी थे, बुद्धि तीव थी, पढ़े हुए पाठ को जल्दी ही सुगन्ध दशमी कथा के मूलाधार पर भी प्रकाश डाला है। कण्ठान कर लेते थे। ब. ज्ञानानन्द जी से प्रापको डा.साहब ने ग्रंथ को सर्वोपयोगी बनाने का प्रयत्न अध्ययन करने का प्रोत्साहन मिला । कौन जानता था कि किया है। वास्तव में कथा प्रथों के ऐसे ही सुन्दर वही विद्वान परिग्रह का परित्याग कर बाल ब्रह्मचारी रह संस्करण प्रकाशित होने चाहिये जिससे कथामों का मूल्य कर साधुवृत्ति का पाचरण करेगा । माज अापकी कवित्व बांका जा सके, और पाठकों को उसकी महत्ता का भी शक्ति और प्रतिभा तथा निन्य मुद्रा का अवलोकन से दिग्दर्शत हो । भारतीय ज्ञान पीठ का यह प्रकाशन बहुत मापके प्रति श्रद्धा का भाव महज ही जाग्रत हो जाता है। सुन्दर है। इसके लिये वह ौर डा. साहब धन्यवाद के मापने भनेक अन्यों का निर्माण किया है। समाज को पात्र हैं। जैन समाज में यह कथा भाद्रपद पढ़ी में जाती है। चाहिये कि मापके काव्यों, ग्रन्थों का प्रकाशन करें। इसे मंगाकर प्रत्येक मन्दिर और सरस्वती भवनों में प्रस्तुत ग्रन्थ सुन्दर है। इस मंगाकर पढ़ना चाहिये। विराजमान करना चाहिये। परमानन्द शास्त्री
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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