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कल्याण मित्र
श्रीमान छोटेलाल जी का परिवार दयालुता एव प्रगति का मूल साधन मानते थे और इसीलिए शोध खोज उदारता के लिए सर्व-प्रसिद्ध है। वीरसेवामदिर दिल्ली करने वाले विद्वानों के साथ वे बन्धुत्व और स्नेह का तथा इसका प्रमुख शोधपत्र 'अनेकान्त' बाबूजी के जैनत्व सबध स्थापित करते थे, पर भारतीय इतिहास और जैनके अध्ययन के प्रति अनुराग के प्रतीक (स्मृति चिह्न) हैं। धर्म के क्षेत्र में काम करने वालों के प्रति तो विशिष्ट जैन व जनेतर समाज की अनेकों संस्थाए बाबू छोटेलाल रूप से प्रगाढ स्नेह रखते थे। वे अपने पास संकलित शोध जी तथा उनके परिवार द्वारा संरक्षित हुई पर प्रतिदान सामग्री मे से दूसरों, विद्वानों को सूचनाएं तथा पूर्वापर में उन्होने कोई मासारिक लाभ अथवा ख्याति एव प्रतिष्ठा संदर्भ आदि बताने में तनिक भी नहीं हिचकिचाते थे। की आशा नहीं की।
श्री छौटेलाल जी का दृष्टिकोण शोध एवं अध्ययन हमारा उनके साथ गत २५ वर्षों से बडा घनिष्ठ पूर्ण था, और वे यथार्थ में जानते थे कि कौन सा कार्य सबर
संबध है। हमने अनेको बार जैनत्व संबंधी कई महत्वपूर्ण अध्ययन को प्रगतिशील बना सकता है। उनकी "जंन विषयों पर विवेचन एवं पत्र व्यवहार किया है। बिबलोग्राफी" (कलकत्ता १९४५), जिसकी वे आधुनिक
पनिक भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन की कार्यकारिणी समिति पुनरावृत्ति प्रकाशित कराना चाहते थे, उनके जनस्व के के सदस्य के नाते उन्होंने सांस्कृतिक कार्यों में बड़ी तीव्र अध्ययन के प्रति विशाल एवं स्थायी रुचि की प्रतीक है। उत्सुकता एवं रुचि प्रकट की थी। उन्होने वीरसेवातथा बताती है कि उनका कितना विशाल अध्ययन था। मंदिर के निर्माण में बड़ा संघर्ष किया तथा वे इसे उच्च श्री छोटेलाल जैन पाडु लिपियों के सरक्षण के लिए अ
अध्ययन का प्रमुख केन्द्र बनाना चाहते थे। यद्यपि वे विशेष रूप से उत्कठित थे तथा उनके प्रकाशन और उनके
कलकता रहते थे पर उनका हृदय वीर सेवा मदिर दिल्ली विभिन्न भाषामो मे अनुदन व्याख्या विवंचन आदि। मे लगा रहता था। अाधुनिक ढंग से कराने में विशेष रूप से रुचिवान थे, वे वे मच्चे श्रावक की भांति उदार एव धार्मिक शब्दो प्राकृत टेक्स्ट सोमायटी के सस्थापक सदस्य, वीरशासन- मे सच्चे दाता थे। उनके साथ हमारे बडे घनिष्ठ सवध मघ के मंत्री, भारतीय ज्ञानपीठ की कार्य कारिणी के थे। अत. वे प्रायः मुझे कुछ लोगों के दो चार कृतघ्नता मदस्य तथा वीरसेवामदिर के अध्यक्ष प्रादि भी वे थे। पूर्ण कटु व्यवहार सुनाया करते थे फिर भी कृतघ्न लोगों इनसे उनके महत्वपूर्ण कार्यों का पता चलता है। उन्होने के प्रति उनके मन में कोई मलीनता न थी और में उनके तीर्थक्षेत्र कमेटी के सदस्य की हैसियत से भी बड़ा प्रति सदैव मृदु मुस्कान एव उदार सहानुभूति रखते थे। महत्त्वपूर्ण कार्य किया था उन्होने जैनधर्म और समाज के यद्यपि ऐसे कृतघ्नतापूर्ण कटु व्यवहार कभी-कभी उन्हे लिए जो कुछ किया वह चिरस्थाई और बहुमूल्य है, उन क्षण भर को विचलित कर देते थे पर वे इतने अधिक की निस्वार्थ सेवाएं इन क्षेत्रो के उत्साही कार्य कर्तामो महान् थे कि ऐसी बुराईया स्वयमेव नष्ट हो जाती थी द्वारा सदैव स्मरण की जाती रहेगी।
तथा उन लोगो के प्रति सदैव उदारता और सद्भाव प्रकट गत कई वर्षों से उनका स्वास्थ ठीक नही रहता था करत रहत थे। फिर भी अध्ययन के प्रति उनकी स्पर्धा अटूट और अतुल्य उनकी तीव्र अभिलापा थी कि मेरी प्रकाशित रचनाए थी। वे इतने अधिक उदार, प्रतिभाशाली मृदु स्वभावी एक जगह मलित होकर अथ रूप में हिन्दी अग्रेजी में एवं अध्ययन के प्रति तीवानुगगी थे कि जो कोई भी प्रकाशित कराई जावे, पर मैंने उनसे अनुरोध किया था उनके सम्पर्क में माता था उसमें भी वे इन सद्गुणो की कि प्रकाशित रचनामो पर धन व्यय करने की अपेक्षा उन ज्योति प्रकाशित कर देते थे।
शोध पूर्ण रचनामो को प्रकाशित किया जावे जो अब तक श्री छोटेलाल जी उन थोड़े से व्यक्तियों में एक थे मर्वथा अप्रकाशित हैं, क्योंकि शोधार्थी विद्वान प्रकाशित जो शोध के प्रति तीव्रानुरागी थे, तथा उसे ही ज्ञान की रचनामों का उपयोग तो कर ही लेगे भले ही वे किसी