SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कल्याण मित्र डा० प्रादिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये २६ जनवरी १९६६ की प्रात.कालीन पुण्यवेला मे सतत् और स्थायी रुचि थी। जैन साहित्य और भारतीय शान्तिपूर्वक धार्मिक क्रियाएँ करते हुए श्रीमान् बाबू इतिहास के क्षेत्र में काम करने वाले विद्वानो की अोर वे छोटेलाल जी का ७० वर्ष की आयु मे देहावसान हो जाने महज ही पाकृष्ट हो जाते थे और उन्हे उनके अध्ययन से एक उदार व्यक्तित्व की समाप्ति हो गई है। मे मदद करने के लिए सदैव तत्पर रहते थे । वे भारतीय श्रीमान् छोटेलाल जी सत्प्रवृत्तियो के उल्लेखनीय इतिहास परिषद् और अखिल भारतीय प्राच्य परिपद् के भंडार, अध्ययनशील स्वभाव एवं उदारचेता व्यक्ति थे। सदस्य थे, तथा इनके अधिवेशनों में उपस्थित होने का जैन माहित्य और सस्कृति के विकास के लिए वे अत्यधिक अपनी शक्ति भर पूर्ण प्रयन्न किया करते थे। उनका उत्सुक रहते थे, जैन दर्शन, भारतीय प्राचीन इतिहास, विद्वत्समागम बड़ा विस्तृत एव सम्पूर्ण भारतवर्ष मे फैला कला और पुरातत्व के क्षेत्र में काम करने वाले अनेको हुआ था यहाँ तक कि विदेशों में भी उनके माहित्यिक विद्वानों के साथ उनका निकटतम मंबंध था। मित्र थे, जो भारतीयता के अध्ययन मे तल्लीन रहते थे। ___ जो लोग श्रीमान् छोटेलाल जी के तनिक भी सम्पर्क श्री छोटेखाल जी का विश्वास था कि जैनधर्म एक मे पाये उन्होने पाया कि एक दुर्बल एवं जर्जर काया के बडा महत्वपूर्ण धर्म है व जैन साहित्य विविधतामय, समद्ध पीछे उनमे चारित्रवान सबल व्यक्तित्व, उच्चकोटि का एक विस्तृत और विशाल है तथा जन इतिहास और चिन्तन, अध्ययन के लिए तीव्रानुगग, और सबसे अधिक पुरातत्व अध्ययन के पवित्र क्षेत्र है, साथ ही वे अनुभव भारतीय पुरातत्व के ज्ञान के लिए, अतृप्त तपा विद्यमान करते थे कि अध्ययन की इन शाखाप्रो की ओर पर्याप्त ध्यान नही दिया जाता है, यदि इनका पूर्ण अध्ययन हो डा. एम. विन्टरनिन्ज ने अपने "भारतीय साहित्य जाय तो भारत की सम्पूर्ण विरासत (वपौती) पूर्णतया का इतिहास" भाग २ को भूमिका मे छोटेलाल जी का समद्ध और शानदार हो सकती है। जैन साहित्य की नाम बड़े प्रादर पूर्वक उल्लेख किया है। यह ग्रन्थ सन विभिन्न शाखामों में काम करने वाले विद्वान् सहज ही १९३३ मे कलकता विश्वविद्यालय मे अग्रेजी में प्रकाशित उनकी ओर आकृष्ट हो जाते थे और वह उनके लिए हा था। मैं ऐसा मानता है कि यदि बा० छोटेलाल जी यथार्थ ही कल्याण मित्र थे। का सहयोग न मिलता तो डा० विन्टरनिरज अपने इति- श्री छोटेलाल जी की सासारिक पाकाक्षाए कुछ भी हास मे जैन साहित्य का इतना विशाल और गम्भीर न थी उनकी एक मात्र पाकाक्षा यही थी कि जैनत्व का सर्वेक्षण प्रस्तुत न कर पाते। जिन्होंने डा. विन्टरनित्ज अध्ययन भारतीय अध्ययन की अन्य शाखाओ के साथके "भारतीय साहित्य का इतिहास भाग २" का अध्ययन साथ प्रगति करता रहे। उन्हे कीति या प्रतिष्ठा का किया है वे सहज हो कल्पना कर सकते हैं कि श्रीछोटेलाल तनिक भी लोभ न था, जो कुछ उन्हें प्राप्त हुप्रा वह वृक्ष जी ने जैन साहित्यिक सामग्री के संग्रह मे डा० विन्टरनिज पर पत्तो की भांति स्वाभाविक रूप से ही प्राप्त हुआ पर को अनन्य सहयोग देकर शोधार्थी विद्वानो को पोडी पर बहुधा वे उसे टालते ही रहे मौर मूक भाव से निविरोधकितना बड़ा उपकार एवं वरदान प्रस्तुत किया है। पूर्वक अपनी शक्ति भर सभी संस्थाओं तथा व्यक्तियों की श्री छोटेलाल जी उदार दृष्टिकोण वाले व्यक्ति थे तथा मदद ही करते रहे जिससे उनका कार्य निर्बाध रूप से जैनदर्शन, साहित्य और पुरातत्व की शोषो में उनकी प्रागे बढता रहे।
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy