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________________ निर्माण के स्वरूप में बड़ा विवाद है। हीनयान के अनुसार ही प्रहित की संभावना है। अतः प्रत्येक विषय में दो निर्माण में क्लेशावरण काही प्रभाव होता है, किन्तु अन्तों को छोड़कर मध्यम मार्ग पर चलना चाहिए। महायान के अनुसार निर्वाण में ज्ञेयावरण का भी प्रभाव हो जाता है। एक दुःखाभावरूप है तो दूसरा मानन्दरूप। १ सर्वज्ञ व्यवस्थाभदन्त. नागसेन की सम्मति में निर्वाण के बाद व्यक्तित्व जैन दर्शन के अनुसार ज्ञानावरण, दर्शनावरग, का सर्वथा लोप हो जाता है। निर्वाण का अर्थ है बुझ मोहनीय प्रोर अन्तराय इन चार घातिया कमों का नाश जाना। जब तक दीपक जलता रहता है तभी तक उसकी हो जाने पर एक ऐसा ज्ञान उत्पन्न होता है जो समस्त सत्ता है और दीपक के बुझ जाने पर उसकी सत्ता ही द्रव्यों की त्रिकालवर्ती समस्त पर्यायों को एक साथ हस्तासमाप्त हो जाती है। पञ्च स्कन्ध की सन्तान रूप प्रात्मा मलकवत् जानता है। इसे केवलजान कहते हैं । प्रतः चार का भी निर्वाण दीपक की तरह ही है। महाकवि प्रश्वघोष घातिया कर्मों के प्रभावमें भात्मा सर्वज्ञ हो जाता है। सर्वज्ञ का कहना है की सिद्धि युक्ति के द्वारा भी की जाती है । सूक्ष्म (परमाणु दीपो यथा नितिमभ्युपेतो पादि) अन्तरित (राम, रावणादि) और दूरवर्ती (सुमेरु नेवानि गच्छति नान्तरिक्षम् । आदि) पदार्थ किसी के प्रत्यक्ष हैं, क्योकि ये अनुमेय है, विशं न काचिद् विविशंन कानि जो अनुमेय होता है। वह किसी के प्रत्यक्ष भी होता है। स्नेहलयात केवलमेति शान्तिम् ॥ जैसे पर्वत में अग्नि । इस प्रकार अनुमान से सर्वज्ञ की तथा तो नितिमभ्युपेतो सिद्धि की गई है। सर्व साधक अनुमान निम्न प्रकार हैनंबानि गच्छति नान्तरिक्षम् । विशं न काचिद् विविशंकाविद सूक्ष्मान्तरित दूराःप्रत्यक्षाः कस्यचिद् यथा। क्लेशवयात् केवलमेति शान्तिम् ।। अनुमेयरवतोजन्याविरिति सर्वज्ञ . संस्थितिः॥ -सौन्दरनन्द १६।२८, २९ -प्राप्तमीमांसा कारिका ५ निर्वाण का मार्ग बौद्ध दर्शन के अनुसार ऐसा कोई सर्वज्ञ नहीं है जो जैन दर्शन में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और मम्यक् सब पदार्थों को एक साथ जानता हो। बुद्ध को समस्त चारित्र को मोक्ष का मार्ग बतलाया गया है, जैसा कि पदार्थों का ज्ञाता न मानकर हेय और उपादेय तत्वों का तत्त्वार्थसूत्र में कहा है ज्ञाता होने से ही प्रमाण माना गया है। स्व-पर कल्याण सम्यग्दर्शनशानचारित्राणि मोक्षमार्गः॥ के लिए जो प्रावश्यक बातें हैं उनका ज्ञान होना चाहिए, सम्यग्दर्शनादि तीनों एक साथ मिलकर मोक्ष के मार्ग सारे कीड़े मकोड़ों को जानने से क्या लाभ है। कोई दूर हैं, न कि पृथक-पृथक । बौद्ध दर्शन में अष्टांग मार्ग या की बात जाने या न जाने किन्तु इष्ट तत्त्व को जानना मध्यम मार्ग को निर्वाण का मार्ग कहा गया है। सम्यक मावश्यक है। यदि दूरदर्शी को प्रमाण माना जाय तो दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वाचा, सम्यक् कुर्यान्त, फिर गृद्धा का भा उपासना करनी चाहिए। इसी विषय सम्यक् माजीविका' सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मति और में धर्मकीति ने प्रमाणवार्तिक में कहा हैसम्यक समाधि ये मार्ग के पाठ भंग हैं। इसके माठ अंग हेयोपादेयतस्वस्य साभ्युपायस्य वेबकः । होने से इसका नाम पष्टांग मार्ग है। इसे मध्यम मार्ग यः प्रमाणमसाविष्टोन तु सर्वस्य बेवकः॥ १ भी कहते हैं। क्योंकि बुद्ध ने प्रत्येक बात में दो अन्तों को तस्मादनष्ठेयगतं मानमस्य विचार्यताम् । छोड़ने का उपदेश दिया था। जैसे अत्यधिक भोजन करना कोटसंख्यापरिक्षानं तस्य नः बनोपयुज्यते ॥ १।३२ और बिलकुल भोजन न करना ये भोजन के विषय में दो दूरं पश्यतु बामा वा तत्त्वमिष्टं तु पश्यतु । अन्त (छोर) है। इन्हें छोड़ना चाहिए, क्योंकि दोनों से प्रमाणं रबी देत गृध्रानुपास्महे ।। १।३३
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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