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________________ अपनश-चरितकाम्य हरिभद्रसरि विरचित "णेमिणाहचरित" चरितकाव्य है। की संख्या अधिक है। सामान्यतया कथाकाव्य उपन्यास परन्तु उसके अन्तर्गत वणित सनत्कुमार की कथा कथाकाव्य की भांति रोचक तथा कुतूहल वर्मक शैली में लिखे गये हैं। है जिसे खण्डकथा भी कहा जा सकता है१ । कथाकाव्य सभी कथाकाव्य पद्यबद्ध हैं । इनमें वर्णित कथावस्तु लोकवह प्रबन्ध-रचना है जिसमें निजन्धरी की कथा महाकाव्य कथा एवं कल्पित है जो विस्मय, प्रौत्सुक्य, कुतूहल तथा की भांति उदात्त शैली में तथा सन्धिबद्ध एव पद्यबद्ध रूप भावनातिरेक से अनुरंजित लक्षित होती है । कथाकाव्य के में वर्णित रहती है। परन्तु चरितकाव्य मे किसी एक महा- नायक लोकजीवन के जाने-माने पौर पहिचाने हुए साधापुरुष का चरित प्रायः पौराणिक शैली में वर्णित होता है। रण पुरुष होते हैं जो सुख-दुख से मनुपाणित पाशा-निराशा, अतएव किसी भी रचना के पीछे "चरिउ", "कहा", धीरज-अधीरता, हर्ष-विषाद और भय एव साहस के हिंडोलों पुराणु या "कव्व" शब्द जुडा होने से वह चरित, कथा, मे झूलते हुए दिखाई पड़ते हैं। जहां उनके जीवन में पुराण या काव्य वाचक नही हो सकती । क्योकि अपभ्रंश अन्धकार है वही प्रकाश की उज्ज्वल किरने मुस्कराती हुई के कवि जिस रचना को कथा कहते हैं उसी को चरित भी। लक्षित होती हैं और अनुराग से रजित प्रकृति सहानुभात वे रामकथा या रामचरित अथवा भविष्यदत्तकथा और प्रकट करती हुई जान पड़ती है। अधिकांश चरितकाव्यों भविष्यदत्तचरित में अन्तर मान कर नही चलते । परन्तु मे पादर्श की प्रधानता है और कथाकाव्यों मे यथार्थ की। अर्थप्रकृतियाँ, कार्यावस्थाए, नाटकीय सन्धिया, कार्यान्विति यद्यपि दोनों में ही नायक या नायिका के प्रसाधारण कार्यों तथा कथा-तत्वो की सयोजना में इन दोनों में अन्तर का वर्णन रहता है परन्तु एक में वह देवी सयोग, और दिखाई पड़ता है । यथार्थ मे चरित लोक मे देखा जाता है, धार्मिक विश्वासों से सम्बद्ध होता है और दूसरे में काव्य में तो वस्तु ही प्रधान होती है। लेकिन चरितकाव्य (चरितकाव्य मे) प्रतिलौकिक एव असंभव घटनामों से मे मूल चेतना कथा न होकर कार्य-व्यापार होती, जिसमे अनुविद्ध । यही कारण है कि चरितकाव्यों में प्रादशं चरित्रों नायक का प्रभावशाली चरित्र चित्रित किया जाता है। की प्रधानता रहती है और उनके जीवन की सिद्धि तथा डा. शम्भूनाथसिंह ने अपभ्रश काव्यो की दो शैलियां पूर्णता का वर्णन किया जाता है। निश्चय ही परितकाव्य मानी है-पौराणिक और रोमाचक। इन दोनो शलियो मे का नायक लौकिक जीवन की सीमानों में कार असाधारण लिखे गये काव्यो को चरितकाव्य कहा गया है । संस्कृत के गुण, शक्ति, ज्ञान प्रादि से समन्वित पूर्ण पुरुष के रूप में चरितकाव्य चारों शैलियो (शास्त्रीय, पौराणिक, रोमाचक, चित्रित किया जाता है। परन्तु कथाकाव्य में वे यथार्थ के ऐतिहासिक) मे तथा प्राकृत के तीन शैलियो मे लिखे गये अधिक निकट हैं । यथार्थ मे चरितकाध पुराणों है२ । परन्तु तथ्य यह है कि अपभ्रश के चरितकाव्य से विकसित हुए हैं इसलिए पाख्यान तथा इतिवृत्त के मधिकतर पौराणिक शैली में लिखे गये हैं और कथाकाव्य साथ साथ ही पौराणिक पुरुष के रूप मे उनका प्रसभव तथा रोमाचक शैली मे । "विलासवईकहा" रोमांचक शैली मे अकल्लित रूप भी वणित रहता है । कथाकाव्य में भले ही लिखा हुमा उत्कृष्ट कथाकाव्य है। यद्यपि ही भेदकरेखा प्रादर्श पुरुष का जीवन विन्यस्त हुमा हो, परन्तु पूर्ण पुरुष नहीं मानी जा सकती परन्तु कहीं-कही शैलीगत यह अन्तर के रूप में उसका चित्रण नहीं किया जाता। और फिर, अवश्य मिलता है। अपभ्रंश के अधिकतर काव्य पौराणिक चरितकाव्य की वस्तु अधिकतर पुराणो से अधिग्रहीत होती शैली में लिखे गये है। इसलिए कथाकाव्यो से चरितकाव्यों है किन्तु कथाकाव्य की कथावस्तु लोक-जीवन तथा लोक तत्त्वों से समन्वित होती है। १ ग्रन्थान्तरप्रसिद्ध यस्यामितिवृत्तमुच्यते विबुधैः। अपभ्रंश-कथाकाव्यों में जहाँ सामाजिक यथार्थता मध्यादुपान्ततो वा सा खण्डकथा यथेन्दुमती ॥ वही लक्षित होती है वहीं धार्मिक वातावरण तथा इतिहास के २ हिन्दी महाकाव्य का स्वरूप विकास-डा०शम्भूनाथ परिप्रेक्ष्य मे जातीयता और परम्परा का भी बोधन होता सिंह, पृ० १७४ है। उपन्यास की भांति इनमें भी तथ्य, कल्पना, यथार्थता
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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