SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त प्रस्तुत सकलचन्द्र मूलसंघ काणरगण तिन्त्रणीगच्छ अर्जुरिका स्थान में सोमदेव ने शक संवत ११२७ में के विद्वान थे और महादेव दण्ड नायक के गुरु थे। उन शब्दार्णवचन्द्रिका नामक ग्रन्थ की रचना की थी। महादेव दण्ड नायक ने 'एरग' जिनालय बनवा कर उसमें इस सब विवेचन पर से स्पष्ट है कि दोनों माधवचंद्र शान्ति भगवान की मूर्ति को प्रतिष्ठित कर शक वर्ष विद्यदेव भिन्न-भिन्न हैं, वे एक नहीं हो सकते। और न १११६ (वि० सं० १२५४) में उक्त मकलचन्द्र भट्टारक गद्य क्षाणामार के कर्ता को त्रिलोकसार की टीका का के पाद प्रक्षालन पूर्वक हिडगण तालाब के नीचे दण्ड से कर्ता बनाया जा सकता है दोनों भिन्न-भिन्न समयवर्ती है। नाप कर ३ मत्तल चावल की भूमि, २ कोल्ह और एक दोनों भोजदेव भी भिन्न-भिन्न हैं। उनका समय भी भिन्नदुकान का दान किया था२ । प्रस्तुत सकलचन्द्र मुनिचन्द्र भिन्न है।सी स्थिति में पण्डित जी ने जो विचार उपऔर कुलभूषण के शिष्य थे। स्थित किया है, वह मेरी दृष्टि में उचित प्रतीत नहीं दुदुभि शक ११२५ (वि० सं० १२६०) में होने होता। माशा है पण्डित जी ऐतिहासिक दृष्टि से उस पर वानी क्षपणासार की रचना दो वर्ष बाद इन्हीं शिलाहार विचार करेंगे। श्रद्धय प्रेमी जी की राय का उन्होंने स्वयं वंशी वीर भोजदेव राज्य में कोल्हापूर के देशान्तवर्ती ही उल्लेख किया है। अन्य विद्वान भी इस पर विचार कर वस्तुस्थिति को मामने लाने का यत्न करेंगे। २. देखो, जैन शिलालेव मग्रह भा० ३ लेव नं० ४३१। ३. देखो, जैन ग्रंथ प्रशस्ति मं० भा० १ पृष्ठ १६६ । वीर-शासन-जयन्ती महोत्सव इस वर्ष वीरशासन-जयन्ती का उत्सव वीर सेवा मन्दिर की ओर से श्री दिगम्बर जैन लालमन्दिर जी में प्राचार्य श्री देश भूपण जी के सानिध्य में मनाया गया था। जनता की उपस्थिति अच्छी थी। १० परमानन्द शास्त्री के मंगलाचरण के पश्चात् प० बालभद्र जी न्यायतीर्थ, प० जीवधर जी न्यायतीर्थ इन्दौर पं० राजेन्द्रकुमार जी न्यायतीर्थ मथग, ब्रह्मचारी सरदारमल जी मिरोज और आचार्य श्री का भाषण हुआ। सभी भाषण मक्षिप्त सार गभित तथा महत्वपूर्ण थे, उनमे भगवान महावीर के सिद्धान्तो का विश्लेषण करते हुए उनकी महता पर अच्छा प्रकाश डाला गया। माथ ही अपने जीवन में उन्हें यथा शक्ति अपनाने पर भी बल दिया गया । और विश्व की अशान्ति को दूर करने के लिए महावीर के हिसा अनेकान्त और अपरिग्रह आदि सिद्धान्तों का लोक में प्रचार एवं प्रसार करने की प्रेरणा की। और धर्म रक्षा के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने की विशेष प्रेरणा दी गई। अन्त में वीर-सेवा-मन्दिर के उपाध्यक्ष राय साहब उलफतराय जी ने आगन्तुक सज्जनों का आभार प्रदर्शन किया और महावीर की जय ध्वनि पूर्वक उत्सव समाप्त हुप्रा। -प्रेमचन्द जैन
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy